वर्ष 2006 में बना यह संगठन इस समय देश के 23 राज्यों में सक्रिय है। लगातार इसका प्रभाव बढ़ रहा था। पीएफआइ जैसे संगठनों के बैनर तले लोग कट्टरवाद के खिलाफ बोलने वालों को भी लगातार निशाना बना रहे हैं। इस संगठन की संदिग्ध गतिविधियों के चलते पूरे देश में छापे मारे गए। इनमें करीब 278 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई। दरअसल, यह कार्रवाई ऐसे वक्त हुई है, जब पूरी दुनिया में कट्टरवाद को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अमरीका से लेकर यूरोपीय देशों में भी इस्लामी कटï्टरवाद मुद्दा बना हुआ है और ऐसे संगठनों को पूरी दुनिया के लिए खतरा माना जा रहा है।
सरकार की इस कार्रवाई पर राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। ऐसे मामलों में राजनीति ठीक नहीं है। इस वक्त सबसे जरूरी बात यह है कि सरकार देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे संगठनों और लोगों पर सख्ती दिखाए। बड़ी चुनौती यह भी है कि जिन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया है, वे किसी नए संगठन से न जुड़ जाएं। पिछला अनुभव भी ऐसा ही है। ऐसे संगठन प्रतिबंध के बाद नई शक्ल लेकर वापस आते रहे हैं। पीएफआइ का उदाहरण सबके सामने है, जो सिमी पर प्रतिबंध के बाद जन्मा। सिमी के तमाम लोग प्रतिबंध के बाद पीएफआइ संगठन के नाम से फिर देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय हो गए। ऐसे में सरकार को प्रतिबंध के बाद अब इनकी गतिविधियों पर भी पूरी नजर रखने की व्यवस्था करनी होगी।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार अब देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले हर संगठन के खिलाफ पूरी ताकत से खड़ी होगी। प्रतिबंध के साथ ही सरकार को ऐसे संगठनों की जड़ को तलाश कर उस पर प्रहार करना होगा। साथ ही इन संगठनों की विदेशी फंडिंग के तमाम रास्तों को भी बंद करना होगा। ऐसा होने पर आतंक के पर्याय बन रहे संगठनों और उनसे जुड़े लोगों की कमर टूट जाएगी।