जापान में तो बुलेट ट्रेन की शुरुआत १९६४ में हो गई थी। मुझे तो इस बात का अचरज है कि कांग्रेस ने लंबे समय सत्ता में रहने के बावजूद इस बारे में क्यों नहीं सोचा कि हमारे देश में भी बुलेट ट्रेन चल सकती है। वैसे भी गति ही जीवन है और हम इस गति को रोक नहीं सकते। हमारे पुरखे बैलगाड़ी की सवारी करते थे तो हम साइकिल और मोटरकार से होते हुए हवाई जहाज तक पहुंच गए। किसी भी क्षेत्र में कोई भी नयापन होता है तो लोग तरह-तरह के सवाल उठाएं यह स्वाभाविक है। लेकिन जो लोग बुलेट ट्रेन को औचित्यहीन बता रहे हैं, उनके पास इसके खिलाफ कहने के लिए ठोस तर्क नहीं है। वे सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध कर रहे हैं। जब रेलमार्ग पर शताब्दी एक्सपे्रस की शुरुआत हुई तो सिर्फ दिल्ली-आगरा के बीच संचालित होती थी। अब यह अधिकांश राज्यों की राजधानियों से जुड़ गई है।
यह बात सही है कि बुलेट ट्रेन में सवारी करना गरीब तबके के बस की बात नहीं। यह तबका तो आज रेल में भी साधारण श्रेणी में यात्रा करता है। बुलेट ट्रेन पर सवाल उठाने वालों को यह बात भी समझनी चाहिए कि हवाई जहाज में भी एक वर्ग ही सफर कर पाता है। इसका मतलब यह नहीं कि रफ्तार वाली गाडिय़ों के बारे में सोचना ही बंद कर दिया जाए। रहा सवाल बुलेट ट्रेन व इसके मार्ग की लागत का, जापान ने नाममात्र के ब्याज पर हमें सहायता दी है। जापान से पहले भी हम तकनीकी सहायता हासिल करते रहे हैं। एक तरह से बुलेट ट्रेन के लिए दी गई इस राशि को जापान की तरफ से ‘दोस्ताना कर्ज’ही कहा जाना चाहिए।
दरअसल कांग्रेस व दूसरे विपक्षी दलों के जो नेता बुलेट ट्रेन को देश पर बोझ बता रहे हैं वे ऐसा सिर्फ इसीलिए कह रहे हैं क्योंकि इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को जा रहा है। रेलवे के सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के प्रयास कांग्रेस शासन में किए गए होते तो आज रेल हादसों का यह दौर भी शायद देखने को नहीं मिलता। मौजूदा केन्द्र सरकार तो कांग्रेस के छोड़े गए गड्ढों को भरने में ही जुटी है। केवल अमीरों के ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर बुलेट का खर्चा करने का आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि महज दो घंटे में अहमदाबाद से मुम्बई का सफर कितना अचरज भरा होगा।
हर भारतीय का इस उपलब्धि से सिर ऊंचा होगा क्योंकि हम उन गिने-चुने देशों में शामिल होंगे जहां तेज रफ्तार वाली बुलेट ट्रेन होंगी। बुलेट ट्रेन का नया कॉरिडोर बनेगा तो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलेगा। सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध करने वालों को इसके फायदे बाद में समझ आएंगे। हमे याद होना चाहिए कि दिल्ली में मेट्रो ट्रेन को लेकर भी ऐसे ही सवाल उठे थे लेकिन यही मेट्रो आज दिल्ली की लाइफलाइन साबित हो रही है।