scriptद वाशिंगटन पोस्ट से… खामियां दूर हो सकती हैं, पर हमें कीमत चुकानी होगी | Business model of social media platform is dangerous for the society | Patrika News

द वाशिंगटन पोस्ट से… खामियां दूर हो सकती हैं, पर हमें कीमत चुकानी होगी

locationनई दिल्लीPublished: Nov 12, 2021 08:21:58 am

Submitted by:

Patrika Desk

फेसबुक: समाज के लिए घातक साबित हो रहा है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बिजनेस मॉडल।फेसबुक सेवा के सरकारी नियमन और शुल्क लेने पर राजनीतिक बहस जारी रहेगी, जैसे इन दिनों जलवायु परिवर्तन पर हो रही है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन पर कर लगा दिया जाए ।

द वाशिगंटन पोस्ट से... खामियां दूर हो सकती हैं, पर हमें कीमत चुकानी होगी

द वाशिगंटन पोस्ट से… खामियां दूर हो सकती हैं, पर हमें कीमत चुकानी होगी

चार्ल्स लेन, (स्तम्भकार, आर्थिक और वित्तीय नीति के मामलों में विशेषज्ञता)

फेसबुक लगभग हर चीज के लिए दोषी है। इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के आलोचक यही आरोप लगाते आए हैं कि फेसबुक गलत जानकारियां फैलाता है, भले ही वह 6 जनवरी की घटना हो या कोरोना वायरस महामारी। फेसबुक आक्रोश भड़काता है और स्थितियां बिगाड़ता है। और तो और, यह कथित तौर पर ध्रुवीकरण और भीड़ में हिंसा का कारण बनता है। फेसबुक की मूलभूत समस्या है-इसका बिजनेस मॉडल। इसकी पेरेंट कंपनी मेटा यूजर्स को अपने साथ ‘संबद्ध’ रखती है, जो इस निशुल्क सेवा से जुड़ते हैं। कंपनी इनके पर्सनल डेटा संग्रहित करती है। यही डेटा कंपनी विज्ञापनदाताओं को दे देती है। विज्ञापनदाता डेटा के आधार पर बने एलगोरिद्म के जरिये इन यूजर्स को साधने की कोशिश करते हैं। साल की तीसरी तिमाही में 28.2 बिलियन डॉलर के विज्ञापन आए या यों कहें कि प्रतिदिन 1.93 बिलियन यूजर्स के हिसाब से प्रति यूजर करीब 15 डॉलर के विज्ञापन आए।

इसके नतीजे काफी घातक हैं, जहां फेसबुक और सहयोगी एप इंस्टाग्राम को यूजर्स के आधार पर न केवल विज्ञापन मिलते हैं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा वक्त अपनी स्क्रीन पर बनाए रखने के लिए यूजर्स की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ किया जाता है। व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हॉगन के अनुसार, ‘हमारे पास ऐसा सोशल मीडिया हो, जो मानवता के लिए श्रेष्ठतम कार्य करे। ऐसा तब तक नहीं हो सकेगा जब तक कि हम फेसबुक को इस दिशा में प्रवृत्त नहीं कर देते यानी फेसबुक के उत्प्रेरक घटकों की दिशा नहीं बदल देते।’

सही है, इसके लिए हमें यूजर्स के लिए कुछ बदलाव करने होंगे। अगर यूजर्स से इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आने के लिए पैसा लिया जाए और बदले में उन्हें डेटा पारदर्शिता से आजादी दे दी जाए तो यूजर्स भी साइट पर सार्थक उद्देश्य से सही ढंग से संबद्ध हो सकेंगे। फेसबुक कुछ विज्ञापन बेच कर भी सेवा को वित्तीय सहायता देना जारी रख सकता है। हो सकता है कुछ यूजर्स के अभिभावक यह कहने लगें – ‘बच्चों! इंस्टाग्राम यूज करना कुछ महंगा पड़ता है।’ (ऐसा शायद ही कभी हो।)

यह शुल्क नेटफ्लिक्स के मासिक सब्सक्रिप्शन जैसा हो सकता है या फिर हर ‘लाइक’, ‘शेयर’ या ‘कमेंट’ के लिए भुगतान के रूप में। सुधारवादी तो 2014 से ही पेड सोशल मीडिया की पैरवी कर रहे हैं। एपल प्रमुख कार्यकारी अधिकारी टिम कुक भी इसका समर्थन कर चुके हैं। इससे यूजर्स को फेसबुक पर दिए जाने वाले समय और डेटा प्राइवेसी जैसी प्राथमिताओं के बीच चुनने का मौका मिलेगा। वे इसका बेहतर सामाजिक उपयोग कर सकेंगे। अचरज है कि फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग ‘निशुल्क’ की आड़ में सब कुछ दरकिनार कर बैठे हैं। वह केवल ‘अमीरों के लिए’ इस सेवा का शुल्क लेने से इनकार करते आए हैं। ऐसा भी किया जा सकता है कि यह विज्ञापन से वित्तपोषित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सेवा उन लोगों के लिए निशुल्क कर दी जाए जो इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते हैं और अन्य के लिए ‘पेडÓ कर दी जाए।

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने गत 29 अक्टूबर को ‘सोशल मीडिया को कैसे ठीक करें’ विषय पर 12 शिक्षाविदों, राजनेताओं, व्यापारियों और तकनीकी विशेषज्ञों के निबंध प्रकाशित किए। ज्यादातर लोगों का मत था कि सरकारी नियमन किया जाए या तकनीकी उपाय अपनाए जाएं। केवल एक ने कहा कि इस सेवा के लिए यूजर्स से पैसे लिए जाएं। सरकारी नियमन और शुल्क लेने पर राजनीतिक बहस जारी रहेगी, जैसे इन दिनों जलवायु परिवर्तन पर हो रही है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन पर कर लगा दिया जाए। ध्यान रखिए, एक जापानी कहावत है ‘मुफ्त से ज्यादा महंगा कुछ नहीं है’ यानी मुफ्त सबसे महंगा पड़ता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो