scriptपूंजीपति होंगे मजबूत, कामगार होंगे कमजोर-अरबिंद | Capitalists will be strong, workers will be weak through new labor law | Patrika News

पूंजीपति होंगे मजबूत, कामगार होंगे कमजोर-अरबिंद

locationनई दिल्लीPublished: Oct 06, 2020 03:32:56 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

असंगठित मजदूर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरबिंद सिंह का कहना है, सरकारों के चीन का उदाहरण लेकर चलने से समस्या, जर्मनी का उदाहरण भी लिया जा सकता है। श्रमिक संगठनों को कमजोर करने से उत्पादकता बढऩे की सरकार की सोच ठीक नहीं है। पेश है बातचीत के चुनिंदा अंश…
 
 

highcourt

final hearing


1- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही गुजरात सरकार के दो नोटिफिकेशन खारिज करते हुए कहा कि श्रमिकों के कामकाज से जुड़ी मानवीय स्थितियों की शर्तों का पालन जरूरी है, और ओवरटाइम से कामगारों को वंचित नहीं किया जा सकता। श्रमिकों के अधिकारों से क्यों हो रहा है खिलवाड़?
जवाब: दरअसल, भाजपा की सरकार चीन का उदाहरण लेकर आगे बढऩा चाहती है। चीन की तरक्की को बताया जा रहा है, जबकि यह सही नहीं है। चीन कई पैमानों पर गलतियां कर रहा है। सरकार चाहे तो जर्मनी जैसे देशों के अच्छे उदाहरण भी ले सकती है। जर्मनी में कार्य का समय घटाया जा रहा है, जिससे कामगारों की उत्पादकता दर बढ़ेगी। जर्मनी में प्रति सप्ताह 40 घंटे से कम कर 38 घंटे पर लाया जा रहा है। कामगारों के लिए अच्छी वर्किंग कंडीशन की बात होनी चाहिए। कोरोना महामारी के बहाने पर कुछ राज्य सरकारों ने ओवरटाइम समेत कुछ अन्य बातों को लेकर नोटिफिकेशन जारी किए थे। मजदूरों को अधिक समय काम कराने से औद्योगिक रफ्तार बढ़ाने की मानसिकता ही गलत है।
2 -केंद्र और राज्य सरकारें श्रमिकों के हितों पर एकमत कैसे होंगी?

जवाब: केन्द्र सरकार को यह कानून बनाने से पहले राज्यों से बात करनी चाहिए थी। कई राज्यों में श्रमिकों के लिए अच्छी योजनाएं चल रही है। केन्द्र को जिसकी जानकारी तक नहीं है। केन्द्र यदि राज्यों से बात करता तो शायद राज्यों की अच्छी बातों को इस विधेयक में शामिल कर सकता था। केन्द्र ने अपनी मनमर्जी से कानून बनाकर थोप रहा है।

3. हाल ही संसद से श्रम कानूनों में सुधार से जुड़े तीन विधेयक पारित हुए। इन्हें लेकर श्रमिक संगठन आशंकित क्यों हैं?

जवाब: सरकार की सोच है कि श्रमिक संगठनों को कमजोर करने से उत्पादकता बढ़ेगी। यह ठीक नहीं है, जबकि सरकार को श्रमिक संगठनों को सकारात्मक लेना चाहिए। यह संगठन कामगारों और मजदूरों के हितों की रक्षा करता है। सभी जानते हैं कि उद्योगपति कामगारों को दबाने के लिए किस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। हमारे देश में स्थिति ऐसी है कि आवाज उठाने वाले लोगों की हत्या कर दी जाती है। मजदूर तो पूंजीपति व्यवस्था का सबने कमजोर अंग है। ऐसे हालात में श्रमिक संगठन कानूनी रूप से मजबूत नहीं रहेंगे तो फिर मजदूरों की आवाज कौन उठाएगा।
4. कहा जा रहा है कि असंगठित श्रेत्र में श्रमिक बढ़ेगे?

जवाब: भारत में 93 फीसदी और जिन राज्यों में जहां उद्योग नहीं है, वहां 95 फीसदी असंगठित मजदूर बोला जाता है। भारत सरकार व राज्य सरकारों को असंगठित मजदूरों के मुद्दों पर चर्चा कर उनके लिए सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं को पुख्ता करना चाहिए। अटल पेंशन, प्रधानमंत्री सुरक्षा जैसी योजनाओं को बंद कर राज्यों की अच्छी योजनाओं को राष्ट्रीय पैमाने पर लाना चाहिए।

5. नए विधेयकों के कारोबारियों की तरफ झुके होने के भी आरोप लग रहे हैं?

जवाब: अब सरकार ने 100 की बजाय 300 कामगार वाले उद्योग को बंद करने के लिए सरकार से मंजूरी नहीं करने का प्रावधान कर दिया है। इससे 98 फीसदी उद्योगों को मनमर्जी करने की कानूनी छूट मिल गई है। नए कानूनों में कामगारों के लिए कुछ नहीं है। यह विधेयक पंूजीपतियों को मजबूत करेंगे और कामगार कमजोर होंगे। इसके चलते ही हम इस सरकार पर उद्यमियों के हाथ में खेलने का आरोप लगाते रहे हैं। हम भी चाहते हैं कि उद्योग बढ़े, लेकिन उद्यमियों को खुली छूट नहीं मिलनी चाहिए। सरकार ने पुराने सभी 44 कानूनों को मिलाना गलत है। इंटर स्टेट माइग्रेशन एक्ट को सरकार ने समाप्त कर दिया। लॉकडाउन के समय हमने प्रवासी मजदूरों के पलायन की समस्या को देखा है। ऐसी सूरत में इस कानून को मजबूत कर मजदूरों की सुरक्षा करना चाहिए था।

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