जातीय जनगणना की मांग-
लगभग हर जनगणना से पूर्व जातिगत जनगणना की मांग उठती है। अमूमन ओबीसी व वंचित वर्ग से जुड़े लोग ही यह मांग करते हैं, जबकि उच्च जाति वर्ग इसका विरोध करता आया है। नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी और अठावले के अलावा बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव पंकजा मुंडे ने भी ट्वीट कर ऐसी ही मांग की थी। महाराष्ट्र विधानसभा ने 8 जनवरी को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से आग्रह किया था कि 2021 की जनगणना जाति आधारित हो। 1 अप्रेल को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने सरकार से जनगणना 2021 में ओबीसी जनसंख्या के आंकड़े दर्शाने की मांग की थी। हैदराबाद के जी.मल्लेश यादव ने जातिगत जनगणना की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई है।
कैसे रुकी जातीय जनगणना-
स्वतंत्र भारत में वर्ष 1951 से 2011 के बीच प्रकाशित जनगणना में अनुसूचित जाति-जनजाति संबंधी आंकड़े दिए गए हैं, लेकिन अन्य जातियों के नहीं। 1931 तक जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल किए जाते थे। हालांकि, 1941 में, जाति-आधारित डेटा एकत्र किया गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया था। तत्कालीन जनगणना आयुक्त एम.डब्ल्यू.एम. येट्स ने एक नोट में कहा, ‘कोई अखिल भारतीय जाति तालिका नहीं होती… । केंद्रीय उपक्रम के हिस्से के रूप में इस विशाल और महंगी तालिका के लिए समय बीत चुका है।Ó यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान था। तब से यह काम अटका हुआ है।
इस बार होगी डिजिटल जनगणना –
वर्ष 1872 में शुरू हुई जनगणना प्रक्रिया में समय के साथ कई परिवर्तन हुए हैं। 2021 की जनगणना डिजिटल होगी यानी पूरी तरह से कागज रहित। जनसंख्या के आंकड़ों के संग्रहण तथा वर्गीकरण की प्रक्रिया पूर्णतया डिजिटल होगी। जनगणना की प्रक्रिया में मोबाइल एप का प्रयोग किया जाएगा। जनगणना की देखरेख के लिए एक जनगणना पोर्टल विकसित किया जाएगा। इसमें जनसांख्यिकी और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मापदंडों जैसे शिक्षा, एससी/एसटी, धर्म, भाषा, विवाह, विकलांगता, व्यवसाय और व्यक्तियों के प्रवास पर डेटा एकत्र किया जाना है। प्रवासन के कारणों का डेटा भी एकत्र किया जाएगा।