गोवंश आधारित जैविक खेती मूल्यवान कृषि उपज का मंत्र
- लोगों के खाली समय और खाली मन को गोवंश से युक्त सकारात्मक प्रयोजनों में लगा देने से श्रम व शक्ति का सही दिशा में नियोजन होगा
- गोरक्षा से सुनिश्चित होगी कम लागत पर कृषि की उच्च गुणवत्ता

राजीव गुप्ता
आज गोवंश सर्वाधिक उपेक्षित है, जबकि संतों का सत्य और सारगर्भित वचन है कि भारत की गरीबी दूर करने के लिए, भारत को समृद्धिशाली बनाने के लिए गोरक्षा अत्यंत आवश्यक है और सभी को गोरक्षा में तत्पर हो जाना चाहिए। यह सर्वविदित है कि संतों के वचन केवल मान्यताओं या आस्था का विषय नहीं हैं, बल्कि उनमें गंभीर दर्शन, अनुभूति एवं व्यावहारिकता निहित होती है। वर्ष 2025 में गुजरात सरकार के पूर्ण गोवध बंदी के कानून का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समर्थन किए जाने का भी यही आधार है। हालांकि देश के अधिकांश राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ण गोवध बंदी के कानून बने हुए हैं, इसके बावजूद वहां गोवंश के वध की घटनाएं हो रही हैं। यदि कहीं पुलिस-प्रशासन की सख्ती के कारण गोवध पर अंकुश लगाने में सफलता मिल रही है, तो भी आश्रयहीन गोवंश खेतों में फसल खाने को विवश या सड़कों पर दुर्घटनाग्रस्त हो रहा है। आश्रय गृह सरकारी हों या सामाजिक संस्थाओं के, धन की कमी या रखरखाव की व्यवस्था के अभाव से मुक्त नहीं हैं।
दुग्ध के अतिरिक्त कृषि कार्यों में गोवंश के उपयोग की व्यवस्था में विक्षेप ने अनेक सामाजिक विकृतियों को जन्म दिया है। कोरोना वायरस महामारी के बाद काफी लोग गांवों को लौटे हैं। उन्हें गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराया जाना नितांत आवश्यक है, जिसमें गोवंश आधारित कृषि, भार वाहन एवं कुटीर उद्योग बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। इसमें जैविक खेती की विशेष भूमिका है। यदि हर वर्ष 20-25 फीसदी रासायनिक कृषि को जैविक कृषि से प्रतिस्थापित किया जाए तो भूमि को वे जैविक तत्व प्राप्त होंगे जो रासायनिक खाद से प्राप्त नहीं हो रहे हैं। यह प्रक्रिया अपना कर किसान आगामी पांच वर्ष की अवधि में पूरी तरह जैविक खेती अपना सकते हैं। इससे न केवल उच्च गुणवत्ता की फसल होगी बल्कि गोबर-गोमूत्र का भी समुचित उपयोग होगा। इनसे खाद-कीटनाशक तैयार कर खेत में उपयोग करने तथा बैलचालित कृषि यंत्रों का उपयोग करने से किसान और उसके परिवार की श्रम शक्ति का समुचित नियोजन भी होगा। भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार होगा तथा ऊसर भूमि को भी कृषि योग्य बनाया जा सकेगा।
देश में करीब २० करोड़ गोवंश हैं, जिनके भोजन व रखरखाव पर प्रतिवर्ष खर्च होने वाली राशि का बड़ा अंश दूध से प्राप्त हो जाता है तथा शेष राशि की व्यवस्था रासायनिक खाद व कीटनाशक का इस्तेमाल कम करने से होनी वाली बचत के माध्यम से की जा सकती है। चारागाहों का विकास कर, खाली भूमियों पर उन्नत चारा प्रजातियों का रोपण कर, आबादी की जरूरत के अतिरिक्त खाद्यान्न को पशुओं के लिए उपलब्ध करा कर गोवंश के आहार पर होने वाले व्यय को बहुत कम किया जा सकता है। इस तरह गो-आधारित जैविक कृषि से ही सम्पूर्ण गोवंश के आहार एवं रखरखाव की समुचित व्यवस्था की जा सकती है तथा उच्च गुणवत्ता का अधिक मूल्यवान कृषि उत्पादन कम लागत पर प्राप्त किया जा सकता है।
गोवंश की देसी नस्लें उच्च गुणवत्ता की हैं। नस्ल सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है। कड़़े निर्णय लेकर यह सुनिश्चित करना होगा कि अगले पांच वर्षों में गाय के कृत्रिम गर्भाधान के लिए शत-प्रतिशत उन्नत देशी नस्लों के सीमन का उपयोग सुनिश्चित किया जाए। वस्तुत: गोवंश की दुर्दशा कर हमने अपनी ही दुर्दशा की है। भूमि की उर्वरा शक्ति, खाद्यान्न, फल-सब्जियों, दूध की गुणवत्ता, अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता और पर्यावरण का ह्रास किया है। बेरोजगारी, बीमारी, सामाजिक अशांति व अपराध को बढ़ाया है। गोवंश से अलग होकर मनुष्य का शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास कुंठित हो गया है। लोगों के खाली समय और खाली मन को गोवंश से युक्त सकारात्मक प्रयोजनों में लगा देने से श्रम व शक्ति का सही दिशा में नियोजन होगा व अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान होगा।
(लेखक भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य और पूर्व केंद्रीय सचिव हैं)
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