scriptबाढ़ के संकट से लड़ने की चुनौती | Challenge of fighting flood crisis | Patrika News

बाढ़ के संकट से लड़ने की चुनौती

locationनई दिल्लीPublished: Jul 24, 2020 03:29:15 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

हम कितने भी हाईटैक दौर में प्रवेश कर गए लेकिन मानव जीवन की सुरक्षा को लेकर शासन-प्रशासन मुस्तैद नही हैं। सरकारें जिस स्तर पर हुंकार भरती हैं उस स्तर पर सुरक्षा के इंतजाम नही हैं। पूर्व में हुई बारिश से हो रहे जल भराव व उससे होने वाली घटनाओं से हमने कभी सीख नही ली।

Disaster management

Disaster management

योगेश कुमार सोनी, वरिष्ठ पत्रकार

वर्ष 2020 अभी लगभग आधा ही बीता है और संकट खत्म होने का नाम ही नही ले रहे हैं।कोरोना के बाद अब बाढ़ ने परेशानी बढ़ा दी। बाढ़ से होने वाली मौतों के आंकडें कम नही होंगे चूंकि स्थिति पहले ही जैसी है। वैसे तो पूरे देश की स्थिति गंभीर है लेकिन सबसे ज्यादा असम और मेघलाय में करीब सवा सौ लोग अपनी जान गवा चुके।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकडों के मुताबिक राज्य में दो दर्जन जिले बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं। प्राधिकरण के अनुसार एक लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा में लगी फसल की भारी क्षति हो गई। रिपोर्ट में यह भी बताया है कि करीब 2300 गांव में रहने वाले लोगों के दो लाख लोगों की छत छीन चुकी हैं हालांकि इन लोगों के लिए सरकार ने संबंधित जिलों में राहत शिविर और राहत वितरण केंद्र बना दिए हैं। यदि बिहार की भी स्थिति को देखा जाए तो यहां भी हालात बेहद गंभीर होते जा रहे हैं। भारी बारिश के बीच जल-जमाव व बाढ़ की वजह से सब अव्यवस्थित हो चुका है। उत्‍तर बिहार में अधिक बारिश होने से पिछले दो दशकों का रिकार्ड टूट गया। जानकारी के अनुसार नेपाल के जल-ग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश के कारण भी नदियां उफान पर चुकी हैं और ऐसी स्थिति कई वर्षों बाद हुई है।
इस घटना से बिहार सरकार के हाथ-पांव फूले हुए हैं। हालात को काबू करने के लिए अभी कोई ठोस निदान तो नही निकाला जा सका लेकिन राज्य के आधा दर्जन जिलों अलर्ट जारी करके लोगों के लिए राहत शिविर की व्यवस्था की जा रही है। मौसम विभाग के अनुसार पश्चिम व पूर्वी चंपारण, वैशाली, गोपालगंज, सारण व मुजफ्फरपुर में बडे स्तर पर बाढ़ से परेशानी बढ़ सकती है। बिहार में बाढ़ के लिए नेपाल को जिम्मेदार माना जाता है क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिसकी वजह से बारिश का पानी तमाम नदियों से आता है। 1956 में नेपाल में कोसी नदी पर बांध बनाया गया था जो भारत की सीमा में आता है। इस बांध को लेकर दोनो देशों के बीच संधि है लेकिन इस कंट्रोल नेपाल मे होने की वजह से नेपाल बारिश के समय चालाकी दिखाते हुए बांध के सभी गेट खोल देता है जिससे बिहार में बाढ़ आ जाती है। वहां से छोडे गए पानी की भी वजह से हालात बिगड जाते हैं।
देश की राजधानी में भी इस बार स्थिति बेकाबू होती दिख रही है। पिछले कई वर्षों से ऐसी खबर नही सुनी थी लेकिन इस बार यहां भी पांच लोगों की जान चली गई। दिल्ली में इस तरह की दृश्य पहले कभी नही देखे थे।एक जगह तो नाले के साथ ही घर बह गए। इसके अलावा दिल्ली का दिल कहे जाने वाला क्नॉट प्लेस में इतना पानी भर गया कि वहां खडी बसें डूबती दिखी। देशभर में ऐसी तमाम जगह जल भराव हो गया जहां उम्मीद नही थी। इन सब घटनाओं से यह तो तय हो गया कि हम कितने भी हाईटैक दौर में प्रवेश कर गए लेकिन मानव जीवन की सुरक्षा को लेकर शासन-प्रशासन मुस्तैद नही हैं। सरकारें जिस स्तर पर हुं कार भरती हैं उस स्तर पर सुरक्षा के इंतजाम नही हैं। पूर्व में हुई बारिश से हो रहे जल भराव व उससे होने वाली घटनाओं से हमने कभी सीख नही ली। इस तरह हो रही मौतों से यह माना जाएगा कि हमारी तरक्की शून्य है। हर वर्ष जब ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो उसकी व्यवस्था क्यों नही बनाई जाती ?
दौर व सरकार कोई भी हो लेकिन मनुष्य की अप्राकृतिक हानि कभी नही रुकी। पूरे देश में बाढ़ से प्रभावित होने के बाद केन्द्र व राज्य सरकारें दौरा करती हैं और उसके बाद करोड़ो रुपये का फंड राहत कोष के रुप में खर्च होता है। इससे निपटने के लिए ऐसी योजना बनाई जाए जिससे एक बार इतना व इस तरह का फंड खर्च कर दिया जाए जिससे यह आपदा से कम से कम मानव जीवन की हानि न हों। आकड़ों के मुताबिक बीते दस वर्षों में बाढ़ के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा करीब तीन हजार करोड रुपये का कोष दिया जा चुका है। इतनी धन राशि से उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य में इतना रोजगार पैदा हो सकता है कि दो दशकों तक को नौकरी की कमी नही आ सकती। यह एक प्राकृतिक आपदा है लेकिन सब कुछ पता हुए भी हम कुछ नही कर पाते जिससे इसे अप्राकृतिक ही माना जाएगा।
देश में अभी ऐसी बहुत जगह है जहां आज भी पिछले सौ साल पुराने ढर्रे की तर्ज पर जिंदगी जी जाती है। उन लोगों को दुनिया में चल रही हलचल के विषय में कोई जानकारी नही होती। ऐसे लोगों को नेता केवल चुनावों में दावों के समय ही नजर आते हैं। गांव का विकास तो छोडिए,उन्हें यह भी नही पता कि अगले दिन उनके यहां खाना बनेगा भी यहां नही। बाढ़ संकट में सबसे अहम बात यह है कि इससे होने वाली आपदा में एकदम नही आती। लेकिन फिर भी स्थानीय शासन-प्रशासन हादसों का इंतजार करता रहता है और जब तक कुछ लोग मर नही जाते तब तक कोई कार्रवाई नही होती। कुछ राज्यों में कई ऐसी जगह चिन्हित हैं कि वहां तयशुदा रुप से हादसा होगा लेकिन उसके बावजूद भी कोई प्रतिक्रिया नही दी जाती। सरकारों के पास गरीबों के मरने के बाद मुआवज़े तो हैं लेकिन कोई ऐसा एक्शन ऑफ प्लान नही जिससे उन्हें मौत के काल से बचाया जा सके। बहरहाल, देश में बाढ़ की वजह से चौतरफा संकट से सरकारों की परेशानी दोगुनी कर दी चूंकि एक ओर कोरोना से भी युद्ध स्तर पर लड़ना जारी है।
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