दुनिया में प्रसिद्ध पैलेस ऑन व्हील्स को चलाने की चुनौती
आखिर क्या हो गया है दुनियाभर में मशहूर पैलेस ऑन व्हील्स को? यह तो खुद आरटीडीसी का परचम फैला रहा था। आज हालत यह है कि पैलेस ऑन व्हील्स संकट में है। यह संकट पूरे राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाता है।
Published: April 22, 2022 07:29:40 pm
तृप्ति पांडेय
पर्यटन एवं संस्कृति
विशेषज्ञ इस साल पैलेस ऑन व्हील्स नाम के चालीस साल हो गए। नाम के चालीस साल इसलिए कि नाम वही रहा, पर जिसे दिया गया था, वह खुद ही नहीं रही, बल्कि उस नाम को उसके नए अवतार को दे दिया गया। अब इस समय न भाप का इंजन है, न छोटी पटरी और न ही रियासतकालीन डिब्बे। जब पटरी बड़ी हुई, तो नए डिब्बे बने और नई तकनीक का इंजन लगा।
वर्ष 1982 की जनवरी में दिल्ली के स्टेशन से भाप के इंजन के साथ रियासतकालीन रेल गाड़ी के डिब्बों के साथ छोटी पटरी पर धूमधाम से जो ट्रेन रवाना की गई, उसको नाम दिया गया पैलेस ऑन व्हील्स यानी पहियों पर राजमहल। भारतीय रेल मंत्रालय और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) दोनों ने इस शाही गाड़ी के जन्म का जश्न धूमधाम से मनाया। मुश्किल यह है कि रेलगाड़ी खुद ही झंझटों में पड़ी है। इसे जन्म देने वालों के बीच पिछले कुछ सालों से विवाद चल रहा है। ट्रेन रेल विभाग की सम्पत्ति है और चलाने की जिम्मेदारी राजस्थान पर्यटन विकास निगम की है। करोड़ों के लेन-देन के चलते दोनों के बीच, जो समझौता ज्ञापन बनता था वही अभी नहीं बन पाया।
अब जब पर्यटन उद्योग खुल रहा है, सितंबर से सत्र शुरू हो रहा है, तो निगम को होश आया, क्योंकि रेल मंत्रालय ने पहले अपनी मूल राशि मय ब्याज मांगी। निगम के हाल में ही नियुक्त अध्यक्ष अपने दल-बल के साथ मंत्रालय के दर पर गुहार लेकर गए और छोटा भाई समझ कर राशि माफ करने की बात कही। हुआ यह कि ब्याज माफ हुआ, पर ऋण नहीं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम ने कभी जोरशोर से अपने स्तर पर समझौता बनाया था और जो समय-समय पर नवीनीकृत होता रहा है। अब राजस्थान पर्यटन विकास निगम सलाहकार को अलग से पैसा देकर घंटों माथा-पच्ची कर रहा है कि इसे कैसे चलाया जाए। सवाल यह है कि क्या वह खुद चलाए या किसी निजी संस्था के साथ एक और समझौता करे।
आखिर क्या हो गया है दुनियाभर में मशहूर पैलेस ऑन व्हील्स को? यह तो खुद आरटीडीसी का परचम फैला रहा था। आज हालत यह है कि पैलेस ऑन व्हील्स संकट में है। यह संकट पूरे राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाता है। असल में निगम ने पिछले कुछ सालों से अपनी सभी इकाइयों को भुला कर अपना पूरा ध्यान पैलेस ऑन व्हील्स पर केंद्रित कर रखा था। लिहाजा एक-एक कर के कई इकाइयां या तो बंद हो गईं या फिर बंद होने के कगार पर हैं। यह स्थिति कोविड का परिणाम नहीं है, बल्कि बदइंतजामी और भ्रष्टाचार का परिणाम लगती है। कैसे सिर्फ केंद्रीय ऑडिट को ही पता पड़ा कि करोड़ों की राशि दिए बिना एजेंट यात्रा करवाते रहे और उस समय निरीक्षण अधिकारी ने सब ठीक पाया। हुआ बस यह कि कुछ निचले अधिकारियों को कार्य मुक्त कर दिया गया। बड़े अधिकारियों की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जाती?
असल में पैलेस ऑन व्हील्स नाम ने कमाई बहुत करवाई। मुश्किल यह है कुछ कमाई पर्यटकों के हित को नजरअंदाज करके भी की गई। सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को काटने जैसा प्रयोग हुआ और तय किया गया कि पर्यटकों की खरीदारी कराने के लिए उन दुकानों के नाम तय कर लें, जो कि सबसे ज्यादा बोली तय करें और पैसा पहले जमा करा दें। अब जब जानकारों से सवाल करो, तो एक ही जवाब मिलता है राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पास अब 'हार्डवेयरÓ खत्म हो रहा है और 'सॉफ्टवेयरÓ तो शून्य ही समझिए। इति पैलेस ऑन व्हील्स चालीसा।

दुनिया में प्रसिद्ध पैलेस ऑन व्हील्स को चलाने की चुनौती
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