सपा-बसपा का गठबंधन यूपी ही नहीं, देश की राजनीति की तस्वीर बदल सकता है। ये फैक्ट गठबंधन होने पर फलित हो गए, तो असर दूर तक जाना तय है।
यूपी में गंगा के भंवर जैसी चुनौती
हीरेन जोशी वाराणसी। वर्ष 2014 के बसंत में 15 मार्च को नरेंद्र मोदी ने बनारस से चुनाव लडऩे की घोषणा की थी। अब 2019 शुरू हो चुका है और अगली यात्रा की तैयारी है। तब मोदी ने कहा था- न तो मैं यहां आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल मुझे मां गंगा ने यहां बुलाया है। इस भावनात्मक अपील के साथ 2014 में उन्होंने बनारस से लोकसभा चुनाव की ताल ठोकी थी। गंगा यहां से गंगासागर में जाकर महासागर में मिल जाती है।
मोदी को यहां की राजनीति ने गंगा की धारा के उलट दिल्ली पहुंचा दिया। मोदी ने तब कहा था कि पार्टी ने पवित्र नगरी से प्रत्याशी बनाकर सम्मानित किया है। तब उन्होंने टवीट् किया था कि मां गंगा और काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से मिशन 272 पूरा हो। लोगों का कहना है कि बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के आशीर्वाद से पार्टी को झोली भरकर सीटें मिली। इतनी कि राजनीतिक पंडित सोच में पड़ गए। अब पांच साल पूरे होने को हैं। काशी को मुक्तिक्षेत्र और महाश्मशान भी कहा जाता है। यहां राजनीति के वीतराग में जनता का क्षणिक श्मशान वैराग्य भी भारी पड़ सकता है।
अपने दिखा रहे आंख और पराये हो लिए एक साथ 2014 के बसंत की तुलना में अब राजनीति की ऋतु बदली-बदली नजर आ रही है। तब जो अपने थे, अब आंख दिखा रहे हैं और जो पराये होकर लड़े थे, एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं। उत्तरप्रदेश की राजनीति ने पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक करीब-करीब शीर्षासन की मुद्रा में आना शुरू कर दिया है। तब भाजपा के सामने बिखरे हुए क्षेत्रीय दल थे। मोदी लहर में सब पर भाजपा भारी थी। अब बदलाव सामने है।
प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। ऐसे में भाजपा की डगर वाकई में मुश्किल होगी। यहां के तमाम राजनीतिक पंडितों का स्पष्ट आकलन है कि अब भाजपा के लिए यूपी से पिछली बढ़त बनाए रखना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन होगा। सीटों के मामले में यहां से बसपा-सपा का गठबंधन भारी पड़ सकता है। राजग गठबंधन में शामिल अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। इन दोनों के छिटकने की स्थिति में नुकसान और ज्यादा होगा।
राजनीति ने कुछ यूं करवट ली, अजेय का भ्रम टूटा यूपी की राजनीति ने पिछले साल गोरखपुर और फूलपुर के चुनावों के समय करवट लेना शुरू किया था। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य ने ये सीटें खाली की थीं। सपा-बसपा ने यहां से एक होने का प्रयास शुरू किया। दोनों के वोट बंटने से बच गए। योगी के तमाम दावों के बावजूद उनकी प्रतिष्ठित सीट छिन गई। फूलपुर भी हाथ से चला गया। इसके बाद कैराना में भी बीजेपी के खिलाफ सबने एक हो चुनाव लड़ा और बीजेपी के हाथ से यह सीट भी जाती रही। इससे सभी दलों में और बीजेपी विरोधियों का यह भ्रम टूट गया कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी अजेय है। कम से कम यूपी में अगर विपक्ष के वोट बंटते नहीं, तो राजनीति की यह करवट बीजेपी के लिए चुभन भरी होना तय है। कांग्रेस के लिए भी यहां दो सीटों से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा है। फिर भी कांग्रेस फिलहाल इस प्रस्तावित भाजपा विरोधी गठबंधन में शमिल होने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है।
फैक्ट फलित हुए तो असर दूर तक 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा के वोटों के आंकड़ों को हर लोकसभा सीट में जोड़ दिया जाए तो 55 से अधिक सीटों पर इस गठबंधन को औसतन 1.40 लाख से अधिक की बढ़त मिली है। जबकि 2014 के चुनाव में बीजेपी की 73 सीटों पर औसत बढ़त 1.88 लाख थी। ऐसे में सपा-बसपा का गठबंधन यूपी ही नहीं, देश की राजनीति की तस्वीर बदल सकता है। ये फैक्ट गठबंधन होने पर फलित हो गए, तो असर दूर तक जाना तय है।
‘बनारस का मतलब इस बार यूपी नहीं
दशाश्वमेध घाट पर गंगा किनारे बैठे पंडित किशन पाण्डे की जुबानी मानें तो अब गंगा में पानी बहुत बह चुका है। गंगा के भंवर भी कम नहीं हैं। अगर गंगा में डुबकी लगाकर राजनीति में बेड़ापार चाहते हैं तो अंदर के भंवर से बचना जरूरी है। उनका कहना है कि इस बार गंगा के भंवर भाजपा की राजनीति पर भारी पड़ सकते हैं। कुछ भंवर अपनों ने, तो कुछ सपा-बसपा ने तैयार किए हैं। वह कहते हैं, ‘ई बार डगरिया कछु कठिन जान पड़ती है। यह जरूर ही है कि मोदी को खुद को तो यहां से अभी हराना मुश्किल है पर उनकी पार्टी से और कोई आया तो हारना तय है। बनारस का मतलब इस बार उत्तरप्रदेश नहीं है।Ó बस इसी बात में उत्तरप्रदेश की 2019 की राजनीतिक तासीर का कुछ स्वाद महसूस हो जाता है।
चर्चा के मुद्दे तीन: सपा-बसपा गठबंधन, राममंदिर और कुंभ उत्तरप्रदेश की राजनीति के ताजा माहौल पर गौर करें तो ऊपर से यहां तीन ही मुुद्दों पर चर्चा हो रही है। कुंभ आयोजन, अयोध्या में राममंदिर निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता पर संशय और सपा-बसपा का एका। यहां किसानों, बेरोजगारों, व्यापारियों पर तरस तो सबको आ रहा है, लेकिन राजनीति की चर्चा शुरू होते ही सब मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। फिलहाल यहां अनुसूचित जाति और मुसलमानों के वोटों को लेकर सपा-बसपा के बड़े से लेकर छोटे नेता आश्वस्त नजर आ रहे हैं। दोनों के गठबंधन के साथ ही यह असर असल में दिखा तो भाजपा के लिए 2019 में बुरी खबर आ सकती है। उत्तरप्रदेश की राजनीति पर नब्ज टटोलें तो यहां हर कोई बोलने और कुछ कहने को आतुर है। बस कैमरा या ऑन द रिकॉर्ड बात होतेे ही तरीका ही बदल जाता है। यह जरूर है कि अब हर कोई भाजपा को सामने रखकर उनके कहे और किए पर बात कर रहा है। कमोबेश कथनी-करनी में अंतर पर सवाल उठ रहे हैं।
समझ नहीं आता, गिलास आधा खाली कहें या भरा
बनारस के मंदिर मार्ग में बनारसी साड़ी के विक्रेता नवल किशोर अग्रवाल ने दो टूक कह दिया कि साहब यहां सभी कन्फ्यूज से हो गए हैं। कुछ काम अच्छे हो रहे हैं तो कुछ होने वाले काम नहीं होने से गुस्सा भी हैं। असल में समझ ही नहीं आ रहा है कि इन पांच साल में क्या हुआ है? उनकी पीड़ा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से जुड़ी थी।
नेताओं की बातों में चूना ज्यादा
नियमित ग्राहकों के लिए पान तैयार करते हुए बाबू कहते हैं द्ग लोग अभी खुश नही हैं। वे रोज नेताओं पर चुटकियां लेते हैं। खासकर उन सभी वादों को लेकर जो देश भर में किए गए थे। पान के शौकीन वैभव भारती खुद को रोक नहीं पाते, कहते हैंद्ग ‘इस बार लगता है चूना कुछ ज्यादा ही लगा दिया तय। अब स्वाद तो बिगडऩा ही था।‘ बाबू ने पूछा द्ग क्या पान में चूना ज्यादा है? तो वैभव ने कहा द्ग नहीं, नेताओं की बातों में।
विपक्ष में ‘परिवार’ के सदस्य ही जीते
-भाजपा ने 78 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 जीतीं। सहयोगी अपना दल ने दो सीटों पर चुनाव लड़कर दोनों जीतीं। दोनों दलों ने मिलकर 80 में 73सीटें जीतीं।
-कांग्रेस से सोनिया गांधी व राहुल गांधी ही जीत पाए। -सपा से केवल मुलायम के परिवार के 5 सदस्य ही जीते। -यूपी में गाजियाबाद से भाजपा के वी.के. सिंह की 567620 मतों के अंतर से सबसे
बड़ी जीत।
उत्तरप्रदेश की राजनीति का अंकगणित
लोकसभा सीट- 80 क्षेत्रफल- 243490 वर्ग किमी आबादी- 199,812,341 (2011 के अनुसार) जिले -75 २०१४ के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों का प्रदर्शन
पार्टी – सीटें – वोट शेयर भाजपा – 71 सीट – 42.32 समाजवादी पार्टी – 5 सीट – 22.18 कांग्रेस – 2 सीट – 7.48 अपना दल – 2 सीट – 1
बहुजन समाज पार्टी – ० सीट – 19.62 राष्ट्रीय लोकदल – 0 सीट – 0.85 अन्य – 0 सीट – 6.64