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चंडीगढ़: अपने मुद्दों पर आवाज बुलंद कर रहे युवा

गुटबंदी, नोटबंदी और जीएसटी में उलझा ‘दिल्ली’ का रास्ता

नई दिल्लीFeb 01, 2019 / 06:27 pm

Navyavesh Navrahi

चंडीगढ़: अपने मुद्दों पर आवाज बुलंद कर रहे युवा

आनंदमणि त्रिपाठी, चंडीगढ़ से

देश का पहला आधुनिक योजनाबद्ध शहर, दो प्रदेशों की राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश यानी चंडीगढ़। मैं इसी शहर की प्रसिद्ध सुखना झील के किनारे खड़ा हूं। शहर में यह झील न केवल इस शहर के सुकून और सुखन का पता बताती है बल्कि झील के किनारे लगे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एलईडी स्क्रीन शहरवासियों को बदलती आबोहवा के प्रति आगाह भी करती है।
इस झील के एक तरफ रॉक गार्डन है तो ठीक दूसरी तरफ गार्डन ऑफ साइलेंस है। वास्तुकला के बेजोड़ नमूने की तस्वीर पेश करते इस शहर में सब कुछ संतुलित रखने की कवायद साफ दिखती है। संतुलन के इस शहर में राजनीति का संतुलन इस बार किस तरह बैठेगा। इसे लेकर बहुत ज्यादा कौतूहल तो नजर नहीं आता है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर जो मुद्दे जोर पकड़ रहे हैं वे हैं नोटबंदी, जीएसटी और पेड पार्किंग की दरें।
नोटबंदी के ठीक बाद हुए नगर निगम चुनाव में भाजपा ने बंपर सीटें हासिल की थीं। इसे भाजपा ने अपने पक्ष में माना था लेकिन अब स्थिति इससे इतर है। नोटबंदी के बाद जीएसटी ने व्यापारी वर्ग को नाराज कर दिया है। सेक्टर 45ए में टायर की दुकान चलाने वाले रमनीक सिंह कहते हैं कि छोटे
व्यापारियों को तो पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। अब हमें ज्यादा लिक्विडिटी की जरूरत पड़ती है। स्टॉक बनाए रखने के लिए कंपनियां अब पहले जीएसटी लेती हैं, फिर स्टॉक देती हैं। पार्किंग के मुद्दे पर सेक्टर 22 में आए मनजीत सिंह कहते हैं कि बाजार में आने पर कई बार सामान से ज्यादा पार्किंग की कीमत चुकानी पड़ जाती है। देखना दिलचस्प होगा कि 2019 के चुनाव में चंडीगढ़ में किस दल की गाड़ी पार्क होती है और किसे यहां से रवाना होना पड़ता है। गुटों में बंटी भाजपा: भाजपा यहां तीन गुटों में बंटी नजर आ रही है। एक गुट सांसद किरण खेर का है तो दूसरा गुट पूर्व सांसद सत्यपाल जैन का है। तीसरा गुट है पार्टी अध्यक्ष संजय टंडन का। तीनों नेता ही टिकट की रस्साकशी में लगे हैं। ऐसे में इस बंटवारे से भाजपा का नुकसान साफ दिखाई दे रहा है।
मोदी लहर का फायदा जो पिछली बार मिला था, वह इस बार मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। प्रत्याशी से तय होगी कांग्रेस की जीत-हार : कांग्रेस यहां किसे प्रत्याशी बनाती है। इससे जीत—हार का पैमाना काफी कुछ तय होगा। यहां भी तीन लोगों के नाम सामने आए हैं द्ग पहला नाम पवन बंसल का है लेकिन रेलगेट के कारण मामला अधर में है। दूसरा मनीष तिवारी का है और तीसरा एवं सबसे चर्चित नाम आ रहा है नवजोत कौर सिद्धू का। ऐसे में यदि कांग्रेस ने नवजोत कौर सिद्धू को चुनाव में उतारा तो चुनाव बेहद दिलचस्प हो जाएगा।
आप न कर दे काम तमाम : पहले चुनाव में ही गुल पनाग को उतार कर एक लाख से अधिक वोट लेकर तीसरे स्थान पर काबिज हुई आम आदमी पार्टी इस बार पूर्व सांसद और जनता पार्टी सरकार में मंत्री रहे हरमोहन धवन पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है। हरमोहन धवन की स्लम इलाके में स्थिति बेहतर है। 2014 में धवन भाजपा के साथ थे।

महिला सुरक्षा की दो तस्वीरें:

चंडीगढ़ का नाम आते ही महिला सुरक्षा और स्वायत्तता की दो तस्वीरें उभरकर सामने आती हैं। एक घटना 2017 की, जब दुष्कर्म की एक घटना के बाद आमजन सड़क पर उतरा तो पूरा प्रशासन घुटनों पर आ गया। इस गंभीर मामले में सांसद किरण खेर की टिप्पणी लोगों को नागवार गुजरी थी।
दूसरी तस्वीर 2018 में पंजाब विश्वविद्यालय की है। यहां छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर पहली बार वामपंथी विचारधारा के संगठन की छात्रा कनुप्रिया को चुना गया और फिर कनुप्रिया के आंदोलन के कारण लड़कियों के हॉस्टल को 24 घंटे खुला रखने का आदेश देना पड़ा। कनुप्रिया कहती हैं कि पार्टी कोई भी हो, अब युवाओं के मुद्दों पर बोलना ही होगा। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है रोजगार। वरना गांव से शहर और शहर से विदेश का यों ही पलायन जारी रहा तो सब कुछ खोखला हो जाएगा।

निगम की कार्यशैली से जीत-हार!

लोकसभा सीट के पूरी तरह शहरी होने से इसकी समस्याएं सुलझाने का जिम्मा नगर निगम का है। चाहे बात पानी, पार्क और सीवर की हो या फिर पार्किंग की। ऐसे में इन सभी विषयों पर निगम की कार्यप्रणाली ही चंडीगढ़ का सांसद तय करेगी। मौजूदा हालात में इन सभी विषयों को लेकर इस समय नगर निगम की कार्यशैली से लोग परेशान नजर आ रहे हैं। किरण खेर अपने चुनाव के पहले ही 2011 में नगर निगम चुनाव के प्रचार में उतर गई थी। 2016 में नगर निगम में भी वह प्रचार में उतरी थी। शहर की नब्ज से वाकिफ संजीव पांडे यहां के मतदाताओं को तीन भागों में बांटते हुए देखते हैं। एक कर्मचारी वर्ग, दूसरा व्यापारी तबका और तीसरा स्लम, जिसमें यूपी, बिहार सहित अन्य प्रदेशों के करीब डेढ़-दो लाख मतदाता रहते हैं। व्यापारी, जीएसटी और नोटबंदी से परेशान है तो कर्मचारी और स्लम के लोग पार्किंग और पेड पार्किंग से। ऐसे में सांसद किरण खेर का 2019 का रास्ता कठिन होने जा रहा है।

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