scriptनगर नियोजन में भी करना होगा बदलाव | Change will also have to be done in city planning | Patrika News

नगर नियोजन में भी करना होगा बदलाव

locationनई दिल्लीPublished: Apr 30, 2020 02:49:31 pm

Submitted by:

Prashant Jha

जीवन में हर संकट हमें नई सीख आवश्य देता है । कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए लॉकडाउन के बाद बदले हालात में मौजूदा कानूनों में फेरबदल करना होगा। यह संकट हमें जीवन को नए सिरे से प्रारंभ करने का अवसर भी देता है।

नगर नियोजन में भी करना होगा बदलाव

नगर नियोजन में भी करना होगा बदलाव

आर.के. विजयवर्गीय

कोविड-19 के संक्रमण के कारण दुनिया में जो हालात बने हैं उनको देखते हुए भारत में भी औद्योगिकरण, नगरीयकरण और अन्य नीतियों में आगामी दिनों में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। खास तौर से ऐसे वक्त में जब कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए दुनिया के कई देश प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से चीन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैँ। कई देशों ने तो अपने औद्योगिक संस्थानों को चीन से अन्य देशों में ले जाने पर विचार भी शुरू कर दिया है। यदि भारत की ओर से इस दिशा में ऐसे उद्योगों को अपने यहां जगह देने की कोशिश की जाती है तो देश को अवश्य इसका लाभ मिल सकेगा। भारत में राजनेताओं, प्रशासन, डॉक्टर्स, स्वास्थ्य कार्यकर्ता व नगरीय प्रशासन से सम्बन्धित कार्मिकों ने कोरोना वारियर्स के रूप में अपनी-अपनी योग्यता से साबित कर दिया है कि किसी भी प्रकार के आकस्मिक संकट का सामना करने में वे दुनिया के किसी भी विकसित अथवा विकासशील देशों से कहीं अधिक बढक़र प्रभावी है। देशवासियों ने भी इस संकट के समय देश की प्रशासनिक व्यवस्थाओं के साथ कदम से कदम मिलाकर दिखा दिया है कि देश का आमजन भी संकट के समय शासन में भागीदार है।

अब चर्चा लॉकडाउन से उत्पन्न परिस्थितियों पर करनी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 25 मार्च, 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया तो समस्त व्यापार एवं आर्थिक जगत में व्यापक प्रभाव हुआ एवं समस्त औद्योगिक प्रतिष्ठान, व्यापार, कार्यालय, बाजार, मॉल, मल्टीप्लेक्स, होटल, रेस्टोरेन्ट, निर्माण परियोजनाएँ, शैक्षणिक संस्थान इत्यादि, बन्द हो गए। लोगों के अपने-अपने घरों में ही, सामाजिक दूरी रखते हुये, रहने को निर्देश दिये गये। सरकारी कार्यालयों में भी कामकाज बन्द हो गया व आवश्यक सेवाओं को छोडक़र सभी कार्मिकों को घर से ही कार्य सम्पादित करने के निर्देश जारी किये गये। राजकीय व निजी क्षेत्र के समस्त शैक्षणिक संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों आदि को भी अध्ययन सम्बन्धी कार्य, कक्षाएँ व परीक्षाओं को ऑनलाइन माध्यम से ही किए जाने हेतु कहा गया। परिवहन के सभी साधन भी बंद हो गए। बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों, सूचना प्रौद्योगिक संस्थानों, सॉफ्टवेयर उद्योगों ने अपने-अपने व्यवसाय व कार्य को जारी रखे जाने की दृष्टि से अपने सभी कार्मिकों को ‘‘वर्क फ्रॉम होम’’ की सलाह जारी की। इन कार्मिकों में से भी अनेक कर्मी बैंगलोर, मुम्बई, पुणे, चैन्नई आदि बड़े-बड़े महानगरों से अपने-अपने शहरों में वापस लौट आये और दूरस्थ स्थानों से ही अपना कार्य सम्पादित कर रहे हैं।
अब हम कोविड-19 से पहले की परिस्थितियों पर एक नजर डालते हैं । दुनिया के समस्त देशों में व भारत में भी नगरीयकरण का सबसे प्रमुख कारण औद्योगिकीकरण रहा है । औद्योगिकीकरण अधिकांशत: ऐसे बड़े शहरों में अधिक हुआ जहां उद्योग स्थापना एवं उत्पादों के बाजार हेतु आधारभूत सुविधाएँ यथा सडक़, बिजली, पानी, एयरपोर्ट/पोर्ट, संचार माध्यम आदि के साथ-साथ कुशल कर्मी भी उपलब्ध हो। रोजगार के साधनों की तलाश में ग्रामों व छोटे शहरों से जनसंख्या का पलायन भी ऐसे महानगरों कीओर होता रहा। जनसंख्या के इस पलायन के परिणामस्वरूप इन महानगरों में आवासीय सुविधा की गम्भीर समस्या उत्पन्न हुयी व स्लम्स, अनाधिकृत इमारतें, राजकीय भूमि पर अनाधिकृत निर्माण, अनाधिकृत बस्तियाँ, कृषि भूमि पर बेतरतीब निर्माण हुआ व आवासों के किराये में भी अवांछित वृद्धि हुयी व एक-एक कमरे के आवास में 8-10 व्यक्तियों ने रहना स्वीकार कर लिया और इसी कारण ऐसे क्षेत्रों/बस्तियों में सामान्य से अधिक आवासीय घनत्व है। मुम्बई स्थित ‘‘धारावी’’ इसका उदाहरण है, जिसमें 2.5 वर्ग किमी. क्षेत्र में लगभग 15.0 लाख व्यक्ति निवास करते हैं। सम्भवत: दुनिया के किसी भी शहर में किसी एक बस्ती का जनसंख्या घनत्व इतना नहीं है। यह बस्ती कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरनाक स्तर पर है एवं कोरोना वायरस के संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्कों को तलाशना लगभग असम्भव है, क्योंकि ऐसी बस्तियों व यहाँ के निवासियों को सामाजिक दूरी की शर्त की पालना कराना लगभग असम्भव है।

अब सवाल लॉकडाउन से उत्पन्न उन हालातों को है जिनमें बड़े शहरों से लाखें की संख्या में श्रमिक/कार्मिक अपने-अपने गृह नगरों की ओर लौट आए। वे जिन उद्योगों अथवा व्यापारिक संस्थानों में कार्यरत थे वे सब आर्थिक स्लोडाउन के कारण अत्यधिक घाटे में आ गए हैं व लगभग बन्द होने के कगार पर हैं। ऐसी स्थिति में उनको रोजगार उपलब्ध कराने वाले संस्थान सक्षम रहेंगे या नहीं ? और यदि सक्षम होंगे तो कब तक व यदि नहीं होंगे तो ऐसी विपरीत परिस्थितियों में इन श्रमिकों/कामगारों/कार्मिकों के रोजगार का क्या होगा ? ये तमाम बड़ सवाल मुंहबाएं खड़े हैं।

चूंकि वर्तमान में उद्योग स्थापित किये जाने के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएं देश के लगभग सभी शहरों व ग्रामों में उपलब्ध है। अत: पलायन पश्चात् लौटने वाले श्रमिकों/कामगारों/कर्मियों के रोजगार की व्यवस्था के लिए ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों अथवा लघु/मध्यम शहरों में स्थानीय संसाधनों व सम्भावनाओं के अनुरूप लघु/घरेलू उद्योग स्थापित करने होंगे। इस सम्बन्ध में नगरीयकरण की नीति में गहन समीक्षा पश्चात् बड़े नगरीय केन्द्रों के स्थान पर लघु/मध्यम श्रेणी के नगरों, पेरी-अर्बन क्षेत्रों व आस-पास के ग्रामों को प्राथमिकता दिये जाने की नीति बनायी जानी होगी, ताकि ऐसे क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के लिए आवश्यक सुविधाओं व सामाजिक/भौतिक आधारभूत सुविधाएँ भी विकसित की जा सके। नगरीयकरण व औद्योगिकीकरण की इस विकेन्द्रीकरण की नीति से देश व राज्य में क्षेत्रीय असन्तुलन कम होगा व स्थानीय स्तर पर ही रोजगार तथा अन्य आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध होने पर आबादी का पुन: पलायन नहीं होगा व लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहना पसन्द करेंगे। क्षेत्रीय असन्तुलन को कम किये जाने की नीति से जनसंख्या के घनत्व का भी सुनियोजित रूप से सन्तुलन बनाया रखा जाना सम्भव होगा।

क्षेत्रीय असन्तुलन को समाप्त किये जाने हेतु देश एवं राज्य की प्रत्येक इकाई यथा ग्राम, नगर व जिला को आत्मनिर्भर बनाये जाने हेतु प्रत्येक जिले का आर्थिक, सामाजिक व भौतिक आधारभूत सुविधाओं का विस्तृत क्षेत्रीय प्लान बनाया जाना होगा। प्रत्येक नगर व ग्राम में आवास की उपलब्धता कराये जाने हेतु जन आवास नीति का भी विस्तार किया जाना आवश्यक होगा।

चार महानगरों यथा मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चैन्नई जैसे नगरों के अतिरिक्त जो देश के बड़े शहर हैं उनमें वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति को व्यवस्थित करने व इस व्यवस्था को प्रभावी बनाये जाने की दृष्टि से ऐसे प्रमुख नगरों के प्रत्येक आवासीय जोन्स में वर्चुअल ऑफिसेज के निर्माण को प्रोत्साहन देने की नीति पर चलना होगा। ताकि तकनीकी विशेषज्ञों को एक डेडीकेटेड कार्यालय स्थान उपलब्ध हो सकेगा व भारतीय परिवारों में अपेक्षाकृत कम कारगर वर्क फ्रॉम होम को को प्रभावी रूप से दूरस्थ कार्यस्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। ऐसे वर्चुअल कार्यालय प्रमुखत: आवासीय क्षेत्रों के समीप ही स्थित होने पर पैदल दूरी पर ही होंगे व घर से ऐसे कार्य स्थलों पर जाने हेतु मोटर वाहन के स्थान पर साईकिल से अथवा पैदल ही पहुँचना सुलभ होगा।


दूरस्थ शिक्षा प्रणाली विशेषतया कोचिंग अथवा विशेषज्ञ शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी रूप से विकसित करने हेतु आवासीय क्षेत्रों के नजदीक में ही वर्चुअल क्लास रूम के भवनों को प्रोत्साहित किये जाने की नीति बनायी जानी होगी, ताकि ऐसे क्लास रूप में जाकर समूह में किन्तु दूरस्थ शिक्षा प्राप्त की जानी सम्भव होगी व ऐसे भवन भी पैदल दूरी पर ही होंगे।)

सभी शहरों में व प्रमुख ग्रामों में भविष्य में विकसित होने वाली निजी अथवा राजकीय योजनाओं को एकल भू-उपयोग (अर्थात् केवल आवासीय अथवा केवल व्यवसायिक) के स्थान पर मल्टी फंक्शनल भू-उपयोग अर्थात् एकल आवासीय उपयोग के स्थान पर प्रत्येक योजना में न्यूनतम एक या इससे अधिक भी आर्थिक गतिविधि अनिवार्य रूप से विकसित की जाए, को प्रोत्साहित किये जाने की नीति तैयार की जानी होगी, ताकि प्रत्येक क्षेत्र में आवासीय उपयोग के साथ-साथ उस क्षेत्र के अनुरूप आर्थिक गतिविधि भी विकसित हो। ऐसे मल्टी फंक्शनल जोन में आर्थिक गतिविधि में कार्य करने वाले व्यक्तियों को ही आवास/भूखण्ड आवंटन में प्राथमिकता दिये जाने पर अधिकांश व्यक्ति आवास व कार्यस्थल में अधिक दूरी नहीं होने पर वाहनों के स्थान पर पैदल अथवा साईकिल का ही उपयोग करेंगे। ऐसी परिस्थितियों में सडक़ों पर वाहनों के यातायात में कमी आयेगी व प्रदूषण कम होगा। ऐसे मल्टी फंक्शनल जोन्स सामाजिक व भौतिक आधारभूत सुविधाओं यथा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय शॉपिंग, पानी बिजली, सीवरेज, वेस्ट वाटर ट्रीटमेन्ट, मनोरंजनात्मक सुविधाओं साहित विकसित होंगे। इस प्रकार की नीति हेतु हमें अपने मास्टर प्लान व टाउनशिप नीति में भी आवश्यक परिवर्तन किये जाने होंगे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न हुयी परिस्थितियों के फलस्वरूप भारत के राज्यों में स्थापित होने वाले उद्योगों हेतु केन्द्र सरकार द्वारा एक समग्र नीति तैयार की जानी होगी, ताकि ऐसे उद्योगों की स्थापना क्षेत्रीय सन्तुलन के अनुरूप हो व औद्योगिकीकरण का विकेन्द्रीकरण हो व देश के सभी क्षेत्रों को इसका लाभ मिल सके। शहरों में सामाजिक दूरी की पालना को दृष्टिगत पब्लिक ट्रान्सपोर्ट की नीति में व्यापक बदलाव की आवश्यकता की, तथापि ऊपर दिये गये सुझावों के अनुरूप कार्य करने पर शहरों में साईकिल व पैदल चलने को प्रोत्साहन मिलेगा व हमें इन सुविधाओं को विकसित किये जाने के लिए साईकिल ट्रैक व फुटपाथ जैसी आधारभूत सुविधाओं पर विशेष ध्यान देना होगा। नगरीय क्षेत्रों में लागू भवन विनियमों व वास्तुविधिक मानदण्डों में कोविड-19 के दीर्घावधि प्रभाव को रोकने हेतु जैसे मॉल्स, मल्टीप्लेक्स, रेस्टोरेन्ट, होटल आदि के आन्तरिक डिजाइन को सामाजिक दूरी की पालना हेतु, किये जाने हेतु आवश्यक परिवर्तन किये जाने होंगे।

कोविड-19 के संक्रमण काल में चिह्नित हुये ऐसे हॉट-स्पॉट क्षेत्र, जहाँ की आबादी के घनत्व के कारण इसका अधिक फैलाव हुआ है, पर विशेष ध्यान देते हुये ऐसे क्षेत्रों में घनत्व व भीड-़भाड़ कैसे कम की जा सकती है, इस बाबत मानवीय आधार व रोजगार को ध्यान में रखते हुये दीर्घावधि योजना तैयार कर समस्त सम्बन्धित संस्थानों, सामाजिक संगठनों व प्रभावित व्यक्तियों को विश्वास में लेकर इस योजना की क्रियान्विति की जानी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से बचा जा सके।
देश व राज्य के प्रत्येक शहर व ग्रामों में सोलिड एवं लिक्विड वेस्ट मेनेजमेन्ट की नीति केा शत-प्रतिशत लागू किया जाना होगा, साथ ही वेस्ट वाटर को ट्रीटमेन्ट पश्चात् पुन: चक्रित कर व्यापक रूप से कृषि एवं अन्य कार्यों में उपयोग किये जाने के कार्य पर बल दिया जाना होगा।
कोविड-19 की महामारी के प्रबन्धन में जी.आई.एस. आधारित मैपिंग का महत्व भी परिलक्षित हुआ है। अत: हमें प्रत्येक शहर, कस्बे एवं ग्राम के प्रोपर्टी आधारित मैपिंग कर जी.आई.एस. आधारित बेसमेप तैयार किये जाने होंगे, ताकि प्रत्येक सम्पति चाहे वह निर्मित हो या अनिर्मित हो उससे सम्बन्धित विस्तृत सूचना एक ही मैप पर उपलब्ध हो, इस मैप के उपलब्ध होने पर ई-गवर्नेन्स को भी प्रभावी रूप से कार्यान्वित किया जाना सम्भव हो सकेगा।

जैसा कि हमारे पूर्वज हमें सिखाया करते थे कि जीवन में हर संकट हमें कोई न कोई नयी सीख आवश्य देता है व हर संकट नये सिरे से जीवन को प्रारम्भ करने का एक अवसर भी हमें देता है। कोविड-19 की महामारी भी वही संकट है जो हमें नई राह प्रशस्त करने का मार्ग दिखा रही है। (मुख्य नगर नियोजक, राजस्थान)

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