निर्मलक्का न तो अकेली ऐसी महिला हैं और न ही छत्तीसगढ़ पुलिस की यह करतूत देश की पहली घटना। समय-समय पर ऐसे कैदी बाइज्जत बरी होते रहे हैं जो कभी संगीन जुर्म में गिरफ्तार किए गए थे। जगदलपुर जेल में ही 40 से ज्यादा ऐसी महिलाएं अब भी बंद हैं, जिन पर सात साल से ज्यादा समय से मुकदमे चल रहे हैं। हो सकता है उनमें भी कोई निर्मलक्का की तरह ही बिना पुख्ता सबूत के बंद हो जो बाद में बरी हो जाए। तब क्या हमारा तंत्र उन्हें जिंदगी के वे साल लौटा सकेगा जो किसी पुलिस या सरकार के कुत्सित इरादों के कारण वह गंवा चुकी होगी? जाहिर है कानून का राज तभी बरकरार रह सकता है जब इसका इस्तेमाल करने वाले लोग संजीदा हों और कोई इसका दुरुपयोग न करे। हालांकि अक्सर देखा गया है कि न सिर्फ सरकारें, बल्कि आम लोग भी अपने ‘दुश्मनों’ को फंसाने के लिए कानून का बेजा इस्तेमाल करने से पीछे नहीं रहते। जब राष्ट्र की परिकल्पना नहीं थी, तब राज के खिलाफ जाना राजद्रोह माना जाता था क्योंकि राजशाही में राजा भगवान का ‘अवतार’ था। लोकतंत्र में यह ‘प्रभुता’ अब जनता के पास है। हालांकि शासन और सरकार में शामिल लोग अब भी स्वयं को प्रभु समझने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसीलिए राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग वह रोक नहीं पाते। यह क्या किसी विडंबना से कम है कि जिस राजद्रोह कानून का दुरुपयोग सबसे ज्यादा कांग्रेस सरकार में हुआ हो, अब वही कांग्रेस इसे हटाने के लिए अपने घोषणा-पत्र में शामिल कर चुकी है और आपातकाल के दौरान मीसा जैसे कानून में सजा भोग चुकी जमात आज सरकार में आते ही अफ्स्पा और राजद्रोह के कानून की वकालत में लगी है। दरअसल राजनीतिक दलों को मौकापरस्ती से बाहर निकालना आज सबसे बड़ी जरूरत है। इसके बगैर किसी सरकार को जिम्मेदार नहीं बनाया जा सकता।