script

अकेली नहीं निर्मलक्का

locationजयपुरPublished: Apr 05, 2019 03:01:21 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

सरकार में शामिल लोग स्वयं को प्रभु समझने से बाज नहीं आ रहे। इसीलिए राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग वह रोक नहीं पाते।

Nirmalakka

Nirmalakka

तेलंगाना की निर्मलक्का अपने पति चंद्रशेखर के साथ चित्तूर में रह रही थीं, जब छत्तीसगढ़ पुलिस ने 2007 में माओवादी बताकर इस दंपती को पकड़ा था। करीब दस साल जेल में रखने के बाद 2017 में चंद्रशेखर को अदालत ने बरी कर दिया। दो साल बाद निर्मलक्का को भी जगदलपुर केंद्रीय कारागार से बुधवार को छोड़ दिया गया। दोनों पर पुलिस ने लगभग एक जैसे आरोप लगाए थे जो आखिरकार अदालत में टिक नहीं सके। साफ है कि उनके खिलाफ पुलिस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह नहीं थे। बावजूद इसके निरपराध दंपती को जीवन के स्वर्णिम साल जेल में बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। जाहिर है इसका असर उनके बच्चों यानी देश के भविष्य पर भी पड़ा। पूरी घटना में यह जानकर और आश्चर्य होता है कि निर्मलक्का ने वकालत नहीं की है, लेकिन अपने खिलाफ लगे 157 मामलों में से 137 में अपनी पैरवी खुद करते हुए मुकदमे जीते। इससे दो विरोधाभासी बातें उजागर होती हैं। पहली यह कि हमारा न्यायतंत्र इतना मजबूत है कि यहां देर भले ही हो जाए पर अंधेरगर्दी नहीं चल पाती। दूसरी यह कि ऐसी मजबूत न्याय व्यवस्था के बावजूद सत्ता चाहे तो किसी निर्दोष को परेशान करने और उसकी जिंदगी को नर्क बना देने का रास्ता निकाल सकती है। क्या वाकई लोकशाही तब भी सर्वोत्तम व्यवस्था रह पाएगी, जब शासन इस तरह की आपराधिक लापरवाही दिखाता रहे?

निर्मलक्का न तो अकेली ऐसी महिला हैं और न ही छत्तीसगढ़ पुलिस की यह करतूत देश की पहली घटना। समय-समय पर ऐसे कैदी बाइज्जत बरी होते रहे हैं जो कभी संगीन जुर्म में गिरफ्तार किए गए थे। जगदलपुर जेल में ही 40 से ज्यादा ऐसी महिलाएं अब भी बंद हैं, जिन पर सात साल से ज्यादा समय से मुकदमे चल रहे हैं। हो सकता है उनमें भी कोई निर्मलक्का की तरह ही बिना पुख्ता सबूत के बंद हो जो बाद में बरी हो जाए। तब क्या हमारा तंत्र उन्हें जिंदगी के वे साल लौटा सकेगा जो किसी पुलिस या सरकार के कुत्सित इरादों के कारण वह गंवा चुकी होगी? जाहिर है कानून का राज तभी बरकरार रह सकता है जब इसका इस्तेमाल करने वाले लोग संजीदा हों और कोई इसका दुरुपयोग न करे। हालांकि अक्सर देखा गया है कि न सिर्फ सरकारें, बल्कि आम लोग भी अपने ‘दुश्मनों’ को फंसाने के लिए कानून का बेजा इस्तेमाल करने से पीछे नहीं रहते। जब राष्ट्र की परिकल्पना नहीं थी, तब राज के खिलाफ जाना राजद्रोह माना जाता था क्योंकि राजशाही में राजा भगवान का ‘अवतार’ था। लोकतंत्र में यह ‘प्रभुता’ अब जनता के पास है। हालांकि शासन और सरकार में शामिल लोग अब भी स्वयं को प्रभु समझने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसीलिए राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग वह रोक नहीं पाते। यह क्या किसी विडंबना से कम है कि जिस राजद्रोह कानून का दुरुपयोग सबसे ज्यादा कांग्रेस सरकार में हुआ हो, अब वही कांग्रेस इसे हटाने के लिए अपने घोषणा-पत्र में शामिल कर चुकी है और आपातकाल के दौरान मीसा जैसे कानून में सजा भोग चुकी जमात आज सरकार में आते ही अफ्स्पा और राजद्रोह के कानून की वकालत में लगी है। दरअसल राजनीतिक दलों को मौकापरस्ती से बाहर निकालना आज सबसे बड़ी जरूरत है। इसके बगैर किसी सरकार को जिम्मेदार नहीं बनाया जा सकता।

ट्रेंडिंग वीडियो