scriptचीन को आर्थिक मोर्चे पर चोट जरूरी | China needs to be discourage on the economic front | Patrika News

चीन को आर्थिक मोर्चे पर चोट जरूरी

locationनई दिल्लीPublished: Jun 23, 2020 06:56:21 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का जो परिदृश्य उभरने लगा है, उससे चीन चिंतित होते हुए दिखाई दे रहा है। चीन को आर्थिक मोर्चे ओर ही घेरा जा सकता है।

steel industry-- नहीं मिले मजदूर तो चमक खो देगा स्टील उद्योग

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-डॉ. जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री

इन दिनों देश के आर्थिक परिदृश्य पर चीन से आर्थिक मुकाबला संभव होने के तीन महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, देश भर में चीन के उत्पादों के बहिष्कार से चीनी उत्पादों के आयात नियंत्रण की संभावना। दो, भारत के वैश्विक निवेश, वैश्विक उत्पादन और वैश्विक निर्यात का नया हब बनने की संभावनाएँ। तीन, आत्मनिर्भर भारत अभियान से कई उत्पादों के लिए भारत के आत्मनिर्भर बनने की नई संभावना। इन संभावनाओं को साकार करना कठिन काम नहीं है। निश्चित रूप से ऐसा होने पर भारत चीन से आर्थिक मुकाबला कर सकता है।

गौरतलब है कि हाल ही में लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के द्वारा किए गए विश्वासघात और भारतीय जवानों की शहादत के बाद देश के कोने-कोने में चीन विरोधी माहौल दिखाई दे रहा है और लोग चीनी वस्तुओं को जलाते हुए दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सरकार के साथ-साथ पूरा देश चीन को आर्थिक मोर्चे पर ज़ोरदार चोट पहुँचाने के लिए आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
देश के कारोबारी संगठनों ने चीन से आयात घटाने के लिए 200 से अधिक चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क में वृद्धि की माँग की है। साथ ही यह भी माँग की है कि ई-कॉमर्स कंपनियों से मंगाए जाने वाले सामान के बारे में ग्राहकों को यह पता होना चाहिए कि वह सामान किस देश में बना है। इससे भी चीन में उत्पादित सामानों की बिक्री पर नियंत्रण लगाया सकेगा। यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का जो परिदृश्य उभरने लगा है, उससे चीन चिंतित होते हुए दिखाई दे रहा है। 18 जून को चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि सीमा विवाद को व्यापार से नहीं जोड़ा जाना चाहिए और भारत से चीनी वस्तुओं के बहिष्कार जैसी आवाज दबाने की बात कही है।

एक ओर जहाँ चीन से आयात नियंत्रित करके हम चीन पर आर्थिक चोट पहुँचा सकते हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में वैश्विक निवेश, वैश्विक कारोबार और वैश्विक निर्यात बढ़ने की नई संभावनाओं को साकार कर सकते हैं। चीन से बाहर निकलते निवेश और निर्यात के मौके भारत की ओर आने की संभावना के कई बुनियादी कारण भी चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में ख्यात वैश्विक कंपनी ब्लूमबर्ग के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के कारण चीन के प्रति नाराजगी से चीन में कार्यरत कई वैश्विक कंपनियां अपने मैन्युफैक्चरिंग का काम पूरी तरह या आंशिक रूप से चीन से बाहर स्थानांतरित करने की तैयारी कर रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन से बाहर निकलती कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत इन्हें बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर काम कर रहा है। भारत सरकार ने इन कंपनियों के कारखानों को स्थापित करने के लिए देश के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में 4,61,589 हेक्टेयर जमीन की पहचान की है।
पिछले दिनों जर्मनी की फुटवियर निर्माता कंपनी कासा एवर्ज जीएमबीएच के निदेशक मंडल ने घोषणा की है कि वह अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन से निकालकर भारत के आगरा में स्थापित करेगी। यह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट करीब 110 करोड़ रुपए के निवेश से शुरू की जाएगी। इसी तरह लावा इंटरनेशनल ने भी चीन में कार्यरत अपने कारोबार को भारत में स्थानांतरित करने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में भारत के फिनिश्ड उत्पादों के नए हब बनने की संभावनाएँ आकार लेते हुए दिखाई दे रही है।

निश्चित रूप से कई आर्थिक मापदण्डों पर भारत अभी भी चीन से आगे है। भारत दवा निर्माण, रसायन निर्माण और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में सबसे तेजी से उभरता हुआ देश भी है। भारत की श्रमशक्ति का एक सकारात्मक पक्ष यह है कि भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में सस्ती है। भारत के पास तकनीकी और पेशेवर प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है। भारत के पास पैंतीस साल से कम उम्र की दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या है। वैश्विक कारोबार बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में अंग्रेजी बोलने वाले लोग भी भारत में हैं, ये सब विशेषताएँ भारत को चीन से निकलने वाले निवेश और कारोबार के मद्देनजर दूसरे देशों की तुलना में अधिक उपयुक्त और अधिक आकर्षक बनाते हुए दिखाई दे रही है।

हम उम्मीद करें कि सरकार देश में आत्मनिर्भर भारत अभियान के कारगर क्रियान्वयन से आयात किए जा रहे कई स्थानीय उत्पादों को अधिकतम प्रोत्साहन देकर उनके आयात में कमी करेगी। हम उम्मीद करें कि सरकार के द्वारा चीन से एक ओर कम जरूरी आयातों को नियंत्रित किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर देश के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के लिए चीन से आयात की जा रही ज्यादा जरूरी वस्तुओं और कच्चे माल को देश में ही उत्पादित किए जाने के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसी रणनीति से निश्चित रूप से चीन से आयात तथा व्यापार घाटे में और अधिक कमी आ सकेगी ।

हम उम्मीद करें कि सरकार इस समय चीन से निकलती हुई अनेक वैश्विक कंपनियों के कदमों को भारत की ओर आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हुए दिखाई देगी । निश्चित रूप से सरकार के द्वारा चीन से आने वाले आयातों के नियंत्रण संबंधी आर्थिक रणनीतिक प्रयासों तथा देश के करोड़ों लोगों के द्वारा चीनी उत्पादों के उपयोग न करने संबंधी संकल्प से भारत के द्वारा आर्थिक मोर्चे पर चीन के साथ मुकाबला संभव हो सकेगा और भारत के द्वारा चीन को आर्थिक चोट पहुँचाई जा सकेगी।

(लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।)
डॉ. जयंतीलाल भंडारी-111, गुमास्ता नगर, इंदौर-9 मो. 9425478705 (फोन- 0731 2482060, 2480090)

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