चीन का रवैया आक्रामक, हमेशा सतर्क रहे भारत
Published: Jul 06, 2022 06:58:43 pm
चीन भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था और ज्यादा सैन्य क्षमता वाला देश है। इसके मद्देनजर भारत को अगले 30 से 40 वर्षों तक लगातार रक्षा बजट को बढ़ाकर बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान देना होगा
चीन का रवैया आक्रामक, हमेशा सतर्क रहे भारत
सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय
सेना में मेजर जनरल
रह चुके हैं भारत और चीन ने 1950 के दशक में जब से राजनयिक सम्बंध स्थापित किए, सीमा निर्धारण न होने से तभी से ही सम्बंधों में संघर्ष और सहयोग का उतार-चढ़ाव वाला माहौल रहा है। 2012 में शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद चीन ने अपने देश के आधुनिक शिल्पकार देंग शियाओपिंग के सिद्धान्त ‘लो प्रोफाइल रखें, प्रगति और विकास करते रहेंÓ को छोड़ दिया। शी ने ‘चीनी ताकत की आक्रामकताÓ सिद्धान्त को अपनाया है। चीन राजनीतिक, मीडिया और कानूनी क्षेत्र से जुड़े विरोधियों की कमजोरियों का फायदा उठाने और लोकतंत्र के राजनीतिक मर्मस्थल पर हमला करने के लिए इस सिद्धान्त को अपना रहा है। हालांकि, 1962 में चीन-भारत युद्ध के बाद, भारत ने पांच वर्ष बाद ही 1967 में नाथुला और चाओ ला इलाके में सैन्य संघर्ष में चीन को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद भारत ने 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बावजूद चीन भारत के लिए स्पष्ट खतरा है। भारत-चीन सीमा लगभग 3,488 किलोमीटर लम्बी है, जिसे लेकर विवाद होते रहते हंै।
पूरी उत्तरी सीमा पर गलवान घाटी (2020) के नए ‘फ्लैश पॉइंट्स’ समेत कुल 27 पॉइंट्स विवादित और संवेदनशील क्षेत्र हैं, जहां दोनों ओर के सैनिक पेट्रोलिंग करते हैं और आमने-सामने तैनात रहते हैं। पश्चिमी क्षेत्र में 12 पॉइंट्स विवादित और संवेदनशील हैं। इनमें अधिकांश अक्साई चिन, लेह और लद्दाख के हिस्से (लगभग 38,000 वर्ग किमी) और शक्सगाम घाटी में हैं। मध्य क्षेत्र में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश हैं, जहां चार पॉइंट्स विवादित हैं। यह लगभग 1,820 वर्ग किमी का विवादित इलाका है। पूर्वी क्षेत्र में 90 हजार वर्ग किमी का विवादित इलाका अरुणाचल प्रदेश में पड़ता है। इसमें 11 पॉइंट्स (तीन सिक्किम और 8 अरुणाचल में) विवादित और संवेदनशील हैं। ऐसे में भारत को सीमा पर संभावित फ्लैश पॉइंट्स की पहचान करने और निपटने के लिए हर समय तैयार रहने की जरूरत है। हालांकि, भारत ने पूर्वी लद्दाख में सेना और संसाधन बढ़ाते हुए 256 किमी लंबी दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ) सड़क बनाई है, जिसकी लेह से अक्साई चीन की सीमा से सटे दौलत बेग ओल्डी तक कनेक्टिविटी है। भारत ने डीबीओ क्षेत्र को और मजबूत करते हुए एडवांस लैंडिंग ग्राउंड का नवीनीकरण किया है और अपनी आक्रामक क्षमता को कई गुना बढ़ाया है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को हटाने के बाद भारत ने अपनी तीव्र प्रतिक्रिया में पीओके को हासिल करने की बात कही है, इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियार (सीपीईसी) और ग्वादर पोर्ट में चीन के भारी निवेश पर खतरा गहराया है। दीर्घकालीन उपायों के रूप में, चीन डीएस-डीबीओ के जरिए सीपीईसी को नुकसान पहुंचाने वाले भारत के विकल्प को रोकना चाहेगा। भारत की उभरती ताकत से सीपीईसी के फायदों को अधिक प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी किया जा सकता है।
इसके अलावा चीन की दुखती रग उइगरों की समस्या है। भारत भविष्य में उइगरों को समर्थन देने का विकल्प अपना सकता है। यह उन लोगों के लिए कड़ा संदेश हो सकता है , जो वर्तमान में माओवादियों, नगाओं और उल्फा उग्रवादियों का समर्थन कर रहे हैं। सड़कों को लेकर भारत की रणनीति पर चीन की नजरें गहरे से टिकी हैं। पूर्वी लद्दाख में भारत की लेह – खलसर/ परतापुर सड़क पर चीन की रणनीतिक नजर है। तो उधर चीन से सटे ट्राई-जंक्शन के पास लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी क्षेत्र पर नेपाल ने फिर अपना दावा किया है। कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में है। इसकी सीमाएं चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत और नेपाल से सटती हैं। भारत ने जब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 22 किमी लम्बी सड़क बनाई तो चीन ने आपत्ति जताई। भारत-चीन में विवाद की एक वजह डोकलाम क्षेत्र भी है। डोकलाम भारत, चीन और भूटान तीनों ही देशों का एक तिहरी जंक्शन क्षेत्र है। हालांकि डोकलाम भूटान में आता है, लेकिन इस पर चीन अपना प्रभाव बनाए है। चीन इस क्षेत्र में भारतीय सेना की मौजूदगी को चुनौती देता रहता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर उत्तर पूर्वी भारत के कई हिस्सों को भारत से जोड़ता है।
अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर चीन दावा करता है और उसे दक्षिणी तिब्बत बताता है। तवांग की सीमाएं चीन के साथ ही भूटान से भी सटी हैं। 1962 के युद्ध के दौरान तवांग में हिंसक संघर्ष हुआ। 1986-87 में सुमदोरोंग चू घाटी में सैन्य गतिरोध हुआ। इस इलाके के भी फ्लैश पॉइंट के रूप में उभरने की आशंका है। हालांकि, चीन भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था और ज्यादा सैन्य क्षमता वाला देश है। इसके मद्देनजर भारत को अगले 30 से 40 वर्षों तक लगातार रक्षा बजट को बढ़ाकर क्षमता निर्माण, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा।