नेपाल पर कमजोर होती जा रही है चीन की पकड़
- भारत को नेपाल के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए, ताकि ड्रैगन के विस्तारवादी क्रियाकलापों से उसे दूर रखा जा सके ।

के.एस. तोमर
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता के दौर के बीच राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने प्रतिनिधि सभा का सत्र बुला लिया है। सुप्रीम कोर्ट में संसद को भंग करने की सिफारिश करने के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के अधिकार को चुनौती देने वाली तेरह याचिकाएं दाखिल की गईं थीं। मुख्य न्यायाधीश चोलेन्द्र शमशेर राणा के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने ओली के फैसले को पलटने वाले निर्णय के साथ ही राष्ट्रपति कार्यालय और सरकार को यह भी आदेश दिया है कि वह संसद को भंग करने को लेकर किए गए फैसले की मूल प्रति पेश करे।
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि अनुच्छेद 76 (7) एकमात्र प्रावधान है, जो संसद को भंग करने पर गौर करता है। अनुच्छेद 76 के तहत राष्ट्रपति को सरकार बनाने के सभी प्रयास करने होंगे। संविधान विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि वैकल्पिक सरकार बनाने की उपलब्ध संभावनाओं को नहीं तलाशा गया और सीधे संसद भंग कर दी, जो गैरकानूनी है। यह राजनीतिक उथल-पुथल अचानक ही नहीं हुई। प्रधानमंत्री ओली के सहयोगी ही उन्हें सत्ता से हटाने के लिए आगे आ गए। सुप्रीम बॉडी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल की स्टैंडिंग कमेटी के 44 में से 33 सदस्यों ने उनसे इस्तीफे की मांग कर दी। नेपाल की राजनीति में इस नाटकीय घटनाक्रम को चीनी हितों को लेकर एक बड़े आघात के रूप में देखा गया। राजनयिक हलकों में यही माना जाता रहा है कि चीन ओली को अपने राजदूत होउ यान्की के जरिए 'संरक्षित' कर रहा था। इस मोड़ पर भारत के लिए यह राहत की बात है। उधर, पुष्प कुमार दहल प्रचण्ड के नेतृत्व में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल का एक प्रभावशाली गुट ओली के खिलाफ एकजुट हो गया। यह चीन के लिए बड़े झटके की तरह था, क्योंकि ओली ड्रैगन के एक नायक के रूप में काम करते थे। सरकार जब कोविड-19 से निपट पाने में विफल रही थी, तब ओली ने संसद भंग करने का अतार्किक फैसला किया। इस फैसले ने देश को उथल-पुथल में धकेल दिया।
सीपीएन में प्रचण्ड की अगुवाई वाले गुट को संसद में अब भी ज्यादातर सांसदों का समर्थन हासिल है। संसद के भंग हो जाने से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में फूट पड़ गई और प्रचण्ड के नेतृत्व वाले गुट ने पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल को चेयरमैन चुन लिया और दावा किया है कि उनके गुट वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ही असली सीपीएन है। यह एक तथ्य है कि ओली को बनाए रखने के चीनी प्रयास विफल रहे। प्रचण्ड ने ओली को निशाना बनाते हुए 16 पेज का दस्तावेज जारी कर उनकी विफलताओं को उजागर किया है। चीन के रक्षा मंत्री पिछले दिनों नेपाल गए। नेपाल के पीएम तर्क दे सकते हैं कि चीनी रक्षामंत्री के दौरे से उनके देश के संकट का कोई लेना-देना नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपने वफादार मित्र को बचाने की ड्रैगन की यह अंतिम कोशिश रही होगी।
यह विरोधाभास है कि नेपाल की राजनीति में चीनी राजदूत की खुली दखलंदाजी के बावजूद ओली के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली कह रहे हैं कि उनका देश कभी भी बाहरी मध्यस्थता की अनुमति नहीं देगा। ग्यावली ने चीन की भूमिका के बारे में भारत के संदेह को दूर करने का यह कहते हुए विफल प्रयास किया है कि दोनों पड़ोसियों के साथ नेपाल के अच्छे रिश्ते हैं। हालांकि, ग्यावली हाल में भारत आए। वे नेपाल को कोविड वैक्सीन की आपूर्ति के लिए मंजूरी दिलाने में सफल रहे। नेपाल में कोरोना पीडि़तों की मदद शुरू हो चुकी है, इसे आम लोगों की सराहना मिली है। कूटनीति के मानदंडों को ध्यान में रखते हुए, भारत को नेपाल के साथ बातचीत जारी रखनी चाहिए। यह इसलिए जरूरी है ताकि ड्रैगन के विस्तारवादी क्रियाकलापों से उसे दूर रखा जा सके। नई सरकार बनने तक या चुनाव होने तक भारत को नेपाल पर नजर रखनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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