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सच्ची चेष्टा जगाए भारत

चीन ने सामाजिक विज्ञान व दर्शन शास्त्र में सैद्धांतिक नवोन्मेष को तवज्जो दी है। ऐसे में लोकतांत्रिक देश होने के नाते समाज विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय शोध के नए व क्रांतिकारी मुकाम हासिल करने की अपेक्षा बढ़ जाती है। बेशक राजनीतिक हस्तक्षेप एवं संस्थाओं में नियुक्तियों के राजनीतिकरण पर रोक पहली शर्त है। सुधार में और देरी राष्ट्रीय हित में नहीं है।

जयपुरOct 23, 2018 / 07:44 pm

dilip chaturvedi

Chinese and Indian Education Systems

रोमी जैन
चीन मामलों की विशेषज्ञ
पोस्टडॉक्टोरल टीचिंग फेलो, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा।

अंतरराष्ट्रीय पटल पर चीन न केवल अहम आर्थिक और सैन्य शक्ति बन कर उभरा है, बल्कि उच्च शिक्षा में भी उसने रणनीतिक बढ़त हासिल की है। टाइम्स हायर एजुकेशन की प्रभावशाली ‘विश्वविद्यालय रैंकिंग 2019’ में चीन के पीकिंग, त्सिंघुआ व हांगकांग विश्वविद्यालयों और हांगकांग विज्ञान एवं तकनीक विश्वविद्यालय ने प्रथम 50 विश्वविद्यालयों में स्थान बनाया है। इस तरह चीन ने सिंगापुर को पीछे छोड़ एशियाई विश्वविद्यालयों में अव्वल स्थान प्राप्त किया है।

यह रैंकिंग पांच मापदंडों पर आधारित है- शिक्षण, अनुसंधान (मात्रा, आय और प्रतिष्ठा), उद्धरण (अनुसंधान प्रभाव), अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण (कर्मचारी, छात्र और शोध) और उद्योग आय (ज्ञान हस्तांतरण)। चीन का यह कमाल वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में अग्रणी रहने की महत्त्वाकांक्षा का प्रतीक है। जहां-जहां चीन ने पश्चिमी देशों को आगे पाया, वहां-वहां अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफलता हासिल भी की। राष्ट्रीय शक्ति एवं गौरव के किसी भी पहलू पर चीन पीछे नहीं रहना चाहता। उच्च शिक्षा की बात करें तो वर्ष 2017 में चीन में 4,90,000 अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी पढ़ रहे थे और लगता है कि 2020 तक वह 5,00,000 अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

अगर चीन के इरादे को अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से देखें तो इसमें सॉफ्ट पॉवर की अवधारणा निहित है। वर्ष 1990 में अपनी पुस्तक ‘बाउंड टु लीड’ में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोसेफ नाय ने सॉफ्ट पावर की बात की, जिसका अर्थ है बल के बजाय आकर्षण से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना या दूसरों को अपने अनुकूल बनाना। नाय ने इस शक्ति स्वरूप के तीन स्रोत बताए हैं द्ग संस्कृति, विचारधारा या राजनीतिक आदर्श और नीतियां।

वर्ष 2004 में अन्य पुस्तक में उन्होंने इस अवधारणा को विश्व राजनीति में सफलता से जोड़ा। यह बात चीनी विद्वानों एवं नेताओं के दिमाग में बैठ गई और अंतत: वर्ष 2007 में चीन ने सॉफ्ट पॉवर के सिद्धांत को औपचारिक तौर पर अपनाया। चीन ने 500 से भी अधिक कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट के जरिए अपनी भाषा-संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाया और एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक की स्थापना कर आर्थिक नेतृत्व क्षमता भी दिखाई। सॉफ्ट पॉवर में चीन का परचम लहराने मेंं विवादित बेल्ट एंड रोड (बीएंडआर) प्रोग्राम की अहम भूमिका रही। अस्सी से ज्यादा देश इसके सदस्य बने हैं। इसके जरिए चीन ने अपने उच्च शिक्षा कार्यक्रम को भी आकर्षक बनाने का रास्ता निकाला है।

चीन के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2017 में बीएंडआर देशों के कुल 3,17,200 छात्र चीन में अध्ययन कर रहे थे। कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों में यह हिस्सेदारी 64.85 प्रतिशत थी। असल में चीन इन छात्रों को बड़ी मात्रा में छात्रवृत्ति दे रहा है और चाहता है कि वे बीएंडआर इनिशिएटिव का समर्थन करें। चीन ने इसी साल रेनमिन यूनिवर्सिटी में सिल्क रोड नामक स्कूल भी शुरू किया, जिसके तहत व्यापक स्कॉलरशिप का प्रावधान किया और आवेदन के लिए चीनी संस्कृति और बीएंडआर इनिशिएटिव में रुचि होना आवश्यक किया।

चीन के मुकाबले वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारतीय संस्थाएं टिक नहीं पाई हैं। वैसे भी हम में वैश्विक नेतृत्व की सच्ची चेष्टा का लगभग अभाव ही है। अगर यह भी कहें कि प्रतिस्पर्धा से ज्यादा हमें सहयोग में विश्वास है, तब भी हम बड़ी अंतरराष्ट्रीय साझेदारी से विमुख हैं। जबकि चीन के त्सिंघुआ विश्वविद्यालय ने यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के साथ सिएटल में ग्लोबल इनोवेशन एक्सचेंज नामक इनोवेशन इंस्टीट्यूट शुरू किया है।

स्वयं की किसी से तुलना न करना व्यक्तियों के लिए अच्छी सीख है, पर देशों की साख अंतरराष्ट्रीय मापदंडों पर तय होती है। हम भले ही विश्व रैंकिंग से पल्ला झाड़ लें कि यह व्यक्तिपरक है, पर हमारा माद्दा तभी नजर आएगा जब हम विभिन्न विषयों, खासकर सामाजिक विज्ञान, में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक व अनुभवसिद्ध अनुसंधान में योगदान दें। इसके लिए शुरुआत स्कूल-कॉलेजों से ही होनी चाहिए, जहां क्रिटिकल थिंकिंग, तर्कसंगत व तथ्यात्मक पहलुओं पर जोर दिया जाए, जहां ‘प्लैजरिजम’ यानी साहित्यिक चोरी और ‘कॉपी एंड पेस्ट’ मानसिकता पर लगाम लगे, जहां नवीन सोच पनपे ताकि शोध कड़ी कसौटियों (मेथडलॉजिकल रीगर) पर मुकम्मल हों।

चीन का जिक्र करें तो उसने सामाजिक विज्ञान व दर्शन शास्त्र में सैद्धांतिक नवोन्मेष को तवज्जो दी है। यह सही है कि इस क्षेत्र में शोध चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के इर्द-गिर्द घूमता है, मगर भारत के लोकतांत्रिक होने के नाते भारतीय सामाजिक शोधकर्ताओं व विश्वविद्यालयों में शोध के नए व क्रांतिकारी मुकाम हासिल करने की अपेक्षा बढ़ जाती है। बेशक राजनीतिक हस्तक्षेप एवं संस्थाओं में नियुक्तियों के राजनीतिकरण पर रोक पहली शर्त है। भारत में उच्च शिक्षा व शोध में सुधार में और देरी राष्ट्रीय हित में नहीं है।

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