तीन दशक पहले हुए इस आंदोलन की बड़ी वजह महंगाई और भ्रष्टाचार बने थे, जबकि इस बार आंदोलन का कारण कोरोना महामारी से बचाव के लिए लागू की गई बंदिशें बन रही हैं। घर में कैद चीनी सडक़ों पर घूमना चाहते हैं, लेकिन सरकार की सख्ती से वे विवश हैं। कोरोना की बंदिशों को आधार बनाकर शुरू हुए इस आंदोलन में कम्युनिस्ट शासन को समाप्त करने की मांग भी जुड़ गई है। राष्ट्रपति जिनपिंग को तीसरी बार सत्ता मिलने का रास्ता साफ होने के चंद दिनों बाद ही शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे उग्र होने लगा है। आंदोलनकारी चीन को अनलॉक करने के साथ जिनपिंग से गद्दी छोडऩे और प्रेस की आजादी की मांग भी उठा रहे हंै। जब दुनिया के दूसरे देशों में कोरोना कहर बरपा रहा था, तब चीन सुरक्षित था। लेकिन, अब चीन में कोरोना के बढ़ते मामले जनता को डराने लगे हैं। लोगों की शिकायत है कि उन्हें रोजमर्रा का सामान लेने के लिए घर से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है। इसके बावजूद घर से बाहर निकलने पर की जा रही सख्ती उन्हें आंदोलन की राह पर ले जा रही है। हैरत की बात यह है कि चीन में हो रहे विरोध प्रदर्शन की खबरें दुनियाभर में प्रकाशित हो रही हैं, लेकिन चीनी मीडिया ने इस पर चुप्पी साध रखी है।
नियमों की सख्ती के चलते चार दिन पहले एक इमारत में लगी आग से दस लोगों की मौत हो गई थी। लॉकडाउन की सख्ती के कारण राहत समय पर नहीं पहुंच पाई। लोगों का गुस्सा तब और भडक़ उठा जब अधिकारियों ने आग से मरने के पीछे इमारत में रहने वालों को ही दोषी ठहरा दिया। कोरोना लॉकडाउन से उपजा गुस्सा चीन के आंदोलन को किस दिशा में ले जाएगा, इस पर दुनियाभर की निगाहें हैं। आंदोलन की सफलता और विफलता तय करेगी कि चीन में लोकतंत्र की बयार अभी बहेगी या नहीं?