ओपिनियन

शहर का आधार हो शहरी

अहमदाबाद से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित भावनगर के किसान स्थानीय शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अपने गांव को शहरी सीमा में शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं।

Sep 19, 2018 / 12:11 pm

जमील खान

Varun Gandhi

अहमदाबाद से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित भावनगर के किसान स्थानीय शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा अपने गांव को शहरी सीमा में शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं। ऐसा ही विरोध सूरत, हिम्मतनगर और मोरबी-वांकानेर के करीबी गांवों में भी देखने में आया है। यह असामान्य रुख है। ऐसा लग रहा है कि शहरीकरण के फायदों को ठुकराया जा रहा है। इस दौरान, शहरी इलाकों में प्रदूषण ने एक रिवर्स माइग्रेशन की शुरुआत कर दी है।

हरियाणा के गांवों के किसान, जो खेती पर आए संकट से खुद को बचाने के लिए ड्राइवर-क्लीनर बनने दिल्ली, गुरुग्राम चले गए थे, जहरीला प्रदूषण बर्दाश्त नहीं कर पाने के चलते सर्दियों में अपने खेतों की तरफ लौटने लगे हैं। अब महानगर ही नहीं, कानपुर, ग्वालियर जैसे शहर भी देश के सबसे प्रदूषित शहरों में नाम दर्ज कराने लगे हैं। डब्लूएचओ की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में नौ अकेले भारत में हैं। भारत के शहरीकरण के मॉडल को अब बदलाव की सख्त जरूरत है।

संयुक्त राष्ट्र विश्व शहरीकरण आकलन, 2018 में कहा गया है कि भारत की करीब 34 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। यह साल 2011 के मुकाबले 3 फीसदी ज्यादा है। सबसे अहम बात यह कि मौजूदा महानगरों (ऐसे नगर जिनकी आबादी 50 लाख से ज्यादा है) की आबादी 2005 के बाद से आम तौर पर स्थिर है, और इस दौरान 10-50 लाख आबादी वाले शहरों की संख्या बढ़कर 34 से 50 हो गई है। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुमान के मुताबिक भारत के शहरों में रहने वाली आबादी बढ़ते हुए वर्ष 2050 में 81.4 करोड़ तक पहुंच जाएगी। देश के ज्यादातर शहर अपनी क्षेत्रीय, भौगोलिक या सांस्कृतिक पहचान की नुमाइंदगी करने के बजाय धीरे-धीरे एक-दूसरे की प्रतिकृति बन रहे हैं, जहां किसी योजना के लागू होने का बहुत मामूली भौतिक अहसास होता है।

सबसे शुरुआती समस्या है परिभाषा की द्ग वाकई में किसे शहर कहा जाना चाहिए? शहरी विकास राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है, और आबादी, सघनता, स्थानीय निकाय के लिए राजस्व, आबादी के हिस्से का गैर-कृषि कार्यों में लगा होने जैसे मानकों के आधार पर प्रदेश के राज्यपाल किसी क्षेत्र को शहरी क्षेत्र अधिसूचित करते हैं। इस अधिसूचना से किसी क्षेत्र को ‘स्टेचुटरी टाउनÓ (वैधानिक शहर) का दर्जा मिल जाता है और स्थानीय शहरी सरकार या नगर पालिका का जन्म होता है। ऐसी अस्पष्ट परिभाषा के चलते स्वविवेक से किए फैसलों से अलग-अलग किस्म के शहर जन्म लेते हैं द्ग जैसे चंद सैकड़ों की आबादी वाले गंगोत्री (उत्तराखंड), नारकंडा (हिमाचल प्रदेश)। दूसरी तरफ, गुजरात से मेघालय तक एकदम अलग किस्म के राज्यों में 13,000 से कम आबादी वाली बस्ती को ‘गांवÓ माना जाता है।

वर्ष 1951 से 1961 के दौरान भारत में मान्यता प्राप्त शहरों की संख्या में वास्तव में कमी (3,060 से 2,700) आई, क्योंकि कई पुराने शहर गांव मान लिए गए। इसका वास्तविक जीवन पर भी असर पड़ा द्ग पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में दबग्राम का ही मामला लीजिए, जिसे 1,20,000 से ज्यादा की आबादी के बावजूद सिर्फ ‘सेंसस टाउनÓ का दर्जा दिया गया। यह सिलीगुड़ी से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

एक और मुद्दा है, शहरों के बुनियादी ढांचे में बहुत कम निवेश और कौशल विकास का। इस समय भी शहरी बुनियादी ढांचे पर भारत सालाना प्रति व्यक्ति करीब 17 डॉलर खर्च करता है। यह वैश्विक स्तर 100 डॉलर और चीन 116 डॉलर की तुलना में काफी कम है। सरकारें आती-जाती रहती हैं और तरह-तरह की योजनाओं का ऐलान करती हैं जिनमें जेएनएनयूआरएम भी शामिल है, लेकिन इन पर ज्यादातर अपर्याप्त अमल होता है। एक साधारण-सा उदाहरण देखिए द्ग जयपुर और बेंगलूरु अपने आकलित संपत्तिकर का पांच से बीस फीसदी ही वसूल पाते हैं। आखिर सख्ती किए बिना स्थानीय निकाय कैसे काम कर सकते हैं?

जरूरी है कि शहरों की ओर माइग्रेशन से निपटने के लिए चरणबद्ध योजना बनाई जाए। दिल्ली का ही मामला ले लीजिए द्ग पुरानी शहरी नीति में परंपरागत रूप से शहरी माइग्रेशन सीमित करने पर जोर होता था, लेकिन अब आस-पास के मेरठ जैसे शहरों को तैयार करने और इनके लिए बेहतर कनेक्टिविटी और ट्रांसपोर्ट सुविधाएं विकसित करने पर ध्यान दिया जा रहा है।

हमारे शहरी नीति-नियंताओं को शहरी विकास के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से भी परिचित होना चाहिए। पिछली सदी में हमारे शहर कई बदलावों से गुजरे, और उन्हें बमुश्किल संभलने और नए बदलावों को आत्मसात करने का मौका मिला। हमारे अब तक चले आ रहे तरीकों ने मौजूदा शहरों को गंदगी के ढेर में बदल दिया है और अब शहरीकरण के नाम पर इस बीमारी को गांवों पर थोपा जा रहा है। ऐसी नई शहरीकरण योजना के ऐलान की जरूरत है, जो शहरों को बजाय लैंड यूज के एक समूह के रूप में देखने के इंसान को आधार मानकर पुनर्निर्माण की बात करती हो। हमें लैंड पॉलिसी में सुधार पर ध्यान देने के साथ शहरों और स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने की जरूरत है। भारत को चमकने के लिए, इसके शहरों का रूपांतरण करना ही होगा।

वरुण गांधी
सांसद

Home / Prime / Opinion / शहर का आधार हो शहरी

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.