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समृद्धि का सार है क्लीन एनर्जी-जीरो कार्बन: एरिक गार्सेटी

'हमारी सोच और दिल एक जैसे हैं। इस समय कई चुनौतियां हैं - सप्लाई चेन से जुड़ी हुईं, जलवायु संकट या अगली महामारी का खतरा। इस समय भारत में सबसे ज्यादा प्रो-अमेरिकन प्रधानमंत्री हैं और अमरीका में सबसे ज्यादा प्रो-इंडियन राष्ट्रपति। हमारा रिश्ता समुद्र की गहराई से लेकर सितारों तक जाता है। हम इससे भी आगे बढ़ सकते हैं।'

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जयपुर

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Nitin Kumar

Oct 25, 2024

भारत में अमरीका के राजदूत एरिक गार्सेटी पिछले दिनों जयपुर में साउथ एशियन क्लीन एनर्जी फोरम (एसएसीईएफ) की कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करने के लिए जयपुर आए। गार्सेटी पिछले करीब डेढ़ साल से राजदूत हैं और भारत व भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित भी हैं। वह दो बार लॉस एंजेलिस के मेयर भी रह चुके हैं। नेवल ऑफिसर रह चुके गार्सेटी कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर चुके हैं। उन्होंने हिंदी, भारतीय संस्कृति और इतिहास में पढ़ाई की है। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से रोड्स स्कॉलरशिप भी मिल चुकी है। इसके अलावा उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी पढ़ाई की है। गार्सेटी मानते हैं कि साउथ एशिया कोई उपमहाद्वीप नहीं, बल्कि एक पूरा महाद्वीप है। दुनिया में हर चौथा व्यक्ति यहीं से ताल्लुक रखता है, पर साथ ही हर तीन टन में से एक टन कार्बन यहीं से उत्सर्जित होता है। ऐसे में दुनिया को कार्बन मुक्त करने में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। पढि़ए पत्रिका की शालिनी अग्रवाल से उनकी खास बातचीत...

अगस्त 2023 में, बाइडन और मोदी ने स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी के अंतर्गत रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नोलॉजी एक्शन प्लेटफॉर्म (आरईटीएपी) को लॉन्च किया। अमरीका और भारत इस सहयोग के तहत क्या पहल कर रहे हैं?

अब अमरीका और भारत मिलकर अकेले से ज्यादा मजबूत हैं। हमारी कोशिश है कि साझा प्रयासों से भारत और अमरीका में जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभाव कम हो सकें और ग्रीन एनर्जी और इसके स्टोरेज को गति मिल सके ताकि लोगों की परेशानियां कम हों, उनके जीवन की रक्षा हो और आर्थिक समृद्धि बढ़े। हम जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं का समाधान और इसके लिए वित्तीय मदद सुनिश्चित करना चाहते हैं। याद रखें अगले 20 वर्षों में दुनिया का 40 फीसदी काम यहीं भारत में होगा। भारत और अमरीका मिलकर इस 40त्न को बेहतर बना सकते हैं, ताकि कार्बन का और अधिक उत्सर्जन न हो।

लक्ष्य तय करने से कहीं अधिक मुश्किल होता है उसे धरातल पर उतारना। जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य कैसे पूरे हो सकते हैं?

भारत में खासकर मध्यमवर्गीय आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं। यह पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। अमरीका ने जलवायु परिवर्तन को लेकर सबक देर से सीखा, पर भारत इसे जल्दी सीख सकता है और भारत ने ऐसा किया भी है। हम अच्छी टीम बन सकते हैं। हम तीन मुख्य चीजों पर काम कर रहे हैं - पहली वित्त, दूसरी आइडिया और तीसरा नेटवर्क। मैंने लॉस एंजेलिस के महापौर के रूप में काम किया है। इसलिए मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता हूं कि बड़े नेता जो लक्ष्य निर्धारित करते हैं, उन्हें पूरा करने का काम शहरों में स्थानीय स्तर पर होता है। ज्यादातर मुश्किलों के समाधान पहले से मौजूद हैं, पर हम उन्हें साझा नहीं करते, इसलिए हम दक्षिण एशिया के सभी शहरों का नेटवर्क तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्या अमरीका और भारत के आपसी सहयोग से वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी?

मैं पहली बार प्रधानमंत्री मोदी से स्कॉटलैंड के ग्लासगो में सीओपी सम्मेलन में मिला तो उन्होंने भारत के शून्य कार्बन लक्ष्य का जिक्र किया। और भी देश हैं जो ऐसा चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि तकनीक, भारत की सफलता और समृद्धि हमें शून्य कार्बन तक पहुंचने में मदद करेगी। सवाल यह है कि हम मिलकर कितनी जल्दी वहां पहुंच सकते हैं। ‘40त्न बेहतर’ का मतलब है कि जब भारत सफल होता है, तो यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए फायदेमंद है क्योंकि मेरे कार्बन का अर्थ आपके कार्बन से है।

राजस्थान क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में अग्रणी राज्य है। आप कौन-सी चुनौतियां देख रहे हैं?

राजस्थान न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में उभरता सितारा है। राजस्थान ने दिखा दिया है कि या तो आप आखिरी स्थान के लिए इंतजार करें या फिर लीडर बनें।

अमरीकी कंपनियां भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश के लिए आकर्षित हों, क्या ऐसे खास कार्यक्रम उपलब्ध हैं?

हां, राष्ट्रपति बाइडन और अमरीकी कांग्रेस ने मानवता के इतिहास में सबसे बड़ा पर्यावरणीय कानून ‘इंफ्लेशन रिडक्शन एक्ट (आइआरए)’ पारित किया। इससे अमरीकी कंपनियां भारत में नवीकरणीय ऊर्जा तकनीक में निवेश कर सकेंगी। हम अक्सर भूल जाते हैं कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई लंबी है और यह केवल बिजली बनाने को लेकर नहीं, बल्कि इसके इस्तेमाल को लेकर भी है। हम अमरीका में भारतीय व्यवसायियों के लिए भी अवसरों की तलाश कर रहे हैं।

एक ओर जलवायु परिर्वतन के प्रभाव तो दूसरी ओर शून्य कार्बन के लक्ष्य, क्या सभी देशों के लिए स्थिति एक जैसी है?

यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी देश हर साल शून्य कार्बन पर पहुंचने की तारीख पर फोकस करें। भारत में बहुत से लोग पीडि़त हैं और मर रहे हैं। अमरीका में भी यही स्थिति है। मेरे शहर लॉस एंजेलिस में जब तापमान 50 डिग्री तक पहुंचता है, तो कई बुजुर्ग गर्मी सहन नहीं कर पाते। वे आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि एसी खरीद सकें। जलवायु परिवर्तन भविष्य का नहीं, आज का संकट है। हम हर वर्ष सीओपी में एक राय बनाएं। यदि लक्ष्य 2040 तक पाना तय किया है, तो इसे 2039 या 2030 करें। नई पीढ़ी हमारी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रही है।

आपकी नजर में दोनों देशों की कंपनियों को किसी चीज की जरूरत सबसे ज्यादा है?

हम अमरीका और भारत के बीच टेक्नोलॉजी कॉरिडोर को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। जहां हमारी कंपनियों के लिए एक-दूसरे के देश में शून्य टैरिफ, शून्य टैक्स, शून्य समस्याएं होंगी। अगर ऐसा नहीं होगा तो हम दूसरे देश पर निर्भर रहेंगे। दुर्भाग्य से हम यह भी जानते हैं कि वह देश कौन-सा है। जबकि भारत और अमरीका, दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं और हमारे मूल्य भी समान हैं। जहां तक राजस्थान की बात है मुझे लगता है कि राजस्थान व्यापार करने के लिए एक अद्भुत स्थान है। यहां रचनात्मकता है, अच्छी तकनीक है, अच्छा निर्माण है और कुशल श्रमिक हैं।

भारत ने पिछले दिनों विज्ञान के क्षेत्र में काफी तरक्की की है, इसका क्या फायदा होगा?

भारत के लिए न केवल पवन और सौर ऊर्जा, बल्कि परमाणु ऊर्जा भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। परमाणु ऊर्जा से कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकता है। हम भारतीय वैज्ञानिकों, अमरीकी वैज्ञानिकों और कंपनियों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि नई परमाणु तकनीक, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर लगाए जा सकें। ये पोर्टेबल होते हैं। इन्हें छोटे समुदायों के लिए स्थापित किया जा सकता है और मुझे लगता है कि यही भविष्य की तकनीक होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने राष्ट्रपति बाइडन के साथ इस पर बात की थी। इसके अलावा हम ऐसे एयर कंडीशनर भारत में बनाना चाहते हैं, जिनकी विद्युत खपत कम हो। भारत में इस तकनीक के लिए हम फंडिंग कर रहे हैं। इसके साथ ही, ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक बसों के संचालन पर भी ध्यान दिया जा रहा है। नगर निगमों और बस कंपनियों को ई-बसें खरीदने पर ऋण गारंटी मिले। शुरुआत में ये अधिक महंगी होती हैं, लेकिन समय के साथ सस्ती साबित होती हैं।

वे कौन-सी उपलब्धियां हैं जिन्हें आप एसएसीईएफ के जरिए पाना चाहते हैं?

हम चाहते हैं कि दक्षिण एशिया के देश आपस में जुड़े रहें। दुनिया के हर चार लोगों में से एक, और दुनिया की अर्थव्यवस्था में हर पांच या छह लोगों में से एक का ताल्लुक साउथ एशिया से है, इसलिए मेरी नजर में दक्षिण एशिया एक पूरा महाद्वीप है। तीन टन कार्बन में से एक टन यहीं से निकलता है। इसीलिए जब श्रीलंका अपने ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार चाहता है और भारत व श्रीलंका को एक पावर केबल से जोडऩे की बात चल रही है तो हम उस बातचीत में मदद करना चाहते हैं। दक्षिण एशिया में ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं।

आप महापौरों और स्थानीय अधिकारियों का नेटवर्क भी बना रहे हैं, यह कैसे काम करेगा?

दरअसल कोई भी काम अकेले करने में काफी नीरस लगता है। जब हम किसी से अपनी समस्या साझा करते हैं, आइडिया साझा करते हैं, तो समस्या से निपटने का नया तरीका मिलता है, नई ऊर्जा मिलती है। दुनिया भर में लोगों की समस्याएं एक ही हैं। लोग अत्यधिक गर्मी, मौसम की मार, बाढ़, बारिश, आग, सूखा आदि से जूझ रहे हैं। नेटवर्क सुनिश्चित करेगा कि हम समाधान पहचान सकें और फिर उन्हें लागू करने के लिए कार्रवाई कर सकें।

आप करीब डेढ़ साल से भारत में अमरीका के राजदूत के रूप में काम कर रहे हैं। भारत-अमरीका संबंधों को आप कैसे देखते हैं? आप इसे किन नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं?

ये संबंध बेमिसाल हैं। भारत और अमरीका का संबंध भारत या अमरीका से कहीं बड़ा है। यह सिर्फ भारत प्लस अमरीका नहीं है, बल्कि भारत गुणा अमरीका है। हम मिलकर बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। हम मिलकर जलवायु संकट का समाधान कर सकते हैं। हम मिलकर दुनिया को शिक्षा दे सकते हैं। हम खेलों में भी बदलाव ला सकते हैं। अमरीका क्रिकेट में भी शामिल हो रहा है। मुझे भारत में ऐसे लोग मिलते हैं जो एनबीए बास्केटबॉल पसंद करते हैं। हमारी सोच और दिल एक जैसे हैं। इस समय कई चुनौतियां हैं - सप्लाई चेन से जुड़ी हुईं, जलवायु संकट या अगली महामारी का खतरा। इस समय भारत में सबसे ज्यादा प्रो-अमेरिकन प्रधानमंत्री हैं और अमरीका में सबसे ज्यादा प्रो-इंडियन राष्ट्रपति। हमारा रिश्ता समुद्र की गहराई से लेकर सितारों तक जाता है। हम इससे भी आगे बढ़ सकते हैं।