सरकारों से सवाल कर रहे हैं और कोर्ट के भीतर इसकी लड़ाई लड़ रहे हैं। 28 देशों में अब तक 1300 मामले दर्ज हो चुके हैं। सबसे ज्यादा अमरीका मेें हैं, जहां 1023 मामले दर्ज हुए हैं। उसके बाद ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और ब्राजील जैसे देश हैं। पाकिस्तान में भी एक किसान असगर लेघारी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ कोर्ट में केस किया। उसने कहा कि जलवायु परिवर्तन के चलते उसके नेता उसे स्वच्छ जल और भोजन नहीं दे पा रहे हैं। किसान ने जलवायु परिवर्तन को मौलिक अधिकारों का हनन बताया और कोर्ट ने सहमति जताई।
दुर्भाग्य यह है कि जलवायु परिवर्तन पर हमारे देश में लोगों की खामोशी सवालों के घेरे में है। यहां पर कोई सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़ा नहीं हो रहा है। न ही जलवायु परिवर्तन हमारे यहां पर कोई बड़ा मुद्दा बनकर उभर पाया है। इस समय पूरी दुनिया के साथ-साथ यह हमारे लिए भी एक बड़ी चुनौती है। दिक्कत यह है कि किसी भी देश के पास कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं है। जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से दोहन कर कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाह रहा है, उतनी ही तेजी से जलवायु परिवर्तन के जोखिम उसे घेर रहे हैं।
बावजूद इसके कोई भी देश अपनी नीतियों को बदलने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है। अगर हम भारत की बात करें तो तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के सामने जलवायु परिवर्तन भी बड़ी चुनौती है। स्टेनफोर्ड स्टडी के मुताबिक भारत में आने वाले सालों में जलवायु परिवर्तन का समाधान नहीं खोजा गया तो अर्थव्यवस्था 31 फीसदी तक कम हो सकती है। 1961 से लेकर 2010 के बीच के मौसम के आधार पर तैयार की गई स्टडी कहती है कि यह आने वाले समय में प्रति व्यक्ति आय में 17 से 30 फीसदी तक का नुकसान करेगी। समाधान सबको मिलकर खोजना होगा और जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने का यही एकमात्र रास्ता भी है।