सबसे बड़ा खतरा समुद्री जलस्तर बढऩे का होगा। यों तो बीते एक दशक से ही पूरी दुनिया में बदलती परिस्थितियों का असर देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया या छोटे से छोटे देश जो कि समुद्र के किनारे हैं, जलवायु परिवर्तन के उस असर को साफ तौर पर झेल रहे हैं, जिसको हम गंभीरता से अपनी विकास से जुड़ी नीतियों के अंतर्गत नहीं लाना चाहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी देशों से अपील की है कि तत्काल हमें ‘जीरो इमिशन’ की तरफ बढ़ जाना चाहिए। उनका यह खास अनुरोध पहले ‘जी20’ देशों से है, जहां इस संबंध में शुरुआती निर्णय लिए जा सकते हैं और फिर ग्लासगो में होने वाली ‘सीओपी26’ से। इससे पहले गुटेरेस तमाम भागीदार देशों से यही अनुरोध करना चाहते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर तत्काल प्रभावी नियंत्रण की दरकार है। यह बात बड़ी साफ-सी है कि पिछले एक-दो दशकों में उत्तरी अक्षांश के देशों, खास तौर से ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका आदि, ने जलवायु परिवर्तन को बड़े रूप में झेला है। अभी अंटार्कटिका में ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटा, जो इसी की ओर बड़ा संकेत कर रहा है कि हम पृथ्वी के तापक्रम नियंत्रण में विफल रहे हैं।
आज तक कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) की 25 बैठकें और कई तरह के निर्णयों के बावजूद हम जहां के तहां खड़े हैं। अब दुनिया भर में समुद्र जलस्तर ३ से 4 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से उठता चला जा रहा है। सच यह भी है कि जो पहले 100 सालों में हुआ, वह अब प्रतिवर्ष होगा। यह भय आइपीसीसी ने स्पष्ट कर दिया है।
कितनी अजीब-सी बात है कि हम इन तमाम घटनाओं को देखते हुए भी कई तरह के नियमों और निर्णयों से दूर हैं। आइपीसीसी की रपट से इतर पिछले एक दशक से लगातार बदलता मौसम और प्रकृति, इशारा कर रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है। यदि सब कुछ ठीक होना है तो हमें आज और अभी गंभीर होना पड़ेगा। प्रकृति के व्यवहार को समझते हुए उसके अनुसार ही चलने में हमारा भला संभव है। हमेंसमझना होगा, हमें प्रकृति के साथ चलना है न कि प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चलाना है।
अभी हिमालय में होने वाली अतिवृष्टियों के तमाम दुष्परिणाम सामने हैं। इतना ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में बाढ़ का आना, भूमिगत जल का लापता हो जाना यह सब जलवायु परिवर्तन की ओर ही इशारा करता है। आज की हमारी नीतियां, सोच और वर्तमान विकास की शैली एक बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकती है। एंटोनियो गुटेरेस के अनुसार, अभी भी शायद हमारे पास समय है कि हम संभल जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर दुनिया दे सकें।