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Patrika Opinion: आर्थिक असमानता पर संघ की चिंता प्रासंगिक

Published: Oct 03, 2022 11:06:27 pm

Submitted by:

Patrika Desk

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन, क्या संसाधन सभी लोगों तक समान रूप से पहुंच पा रहे हैं? अगर नहीं तो क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए?

संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले

संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले

आजादी के 75 साल बाद भी गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी अगर देश के प्रमुख मुद्दे बन कर छाए रहें, तो यह चिंता की बात होनी ही चाहिए। विपक्षी दल इन मुद्दों को अक्सर सरकार के खिलाफ राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह अगर इन मुद्दों पर चिंता जताते हैं, तो विचार करना ज्यादा जरूरी हो जाता है। स्वदेशी जागरण मंच के एक कार्यक्रम में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि 23 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश के बड़े हिस्से को आज भी साफ पानी और दो समय के भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
होसबाले ने आर्थिक असमानता पर भी चिंता जाहिर की। उनका कहना था कि एक फीसदी लोगों के पास देश की 20 फीसदी आय का हिस्सा है, जबकि 50 फीसदी आबादी के पास आय का 13 फीसदी हिस्सा ही आता है। सवाल यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यह बात होसबाले ने कही। अहम यह है कि तमाम दावों के बावजूद देश में ऐसे हालात हैं। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन, क्या संसाधन सभी लोगों तक समान रूप से पहुंच पा रहे हैं? अगर नहीं तो क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए? चंद उद्योगपतियों की पूंजी साल भर में दोगुनी हो जाए और देश की बड़ी आबादी भोजन, पानी और दूसरी सामान्य सुविधाओं के लिए संघर्ष करती रहे, यह ठीक नहीं। हकीकत तो यह है कि वित्त, उद्योग और श्रम मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्टों के आधार पर देश की प्रगति का सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियान इसीलिए शुरू किए गए थे, ताकि भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिल सके। किसानों को उपज के उचित दाम मिलने का मुद्दा हो या उनकी उपज के लिए प्रसंस्करण इकाइयां लगाने की बात हो, सरकारी वादों के मुताबिक जितना काम हुआ है वह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसे ही है। किसानों को अपनी उपज मंडी तक पहुंचाने और उचित दाम पाने के लिए आज भी पहले जैसी ही जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कहीं ज्यादा तो कहीं कम।
संघ और होसबाले देश के आर्थिक हालात और यहां के आम आदमी की परेशानी समझ रहे हैं। शायद इसीलिए उन्होंने गरीबी और बेरोजगारी की तुलना राक्षस से करते हुए इनका वध करने की अपील की। दशहरा पर्व पर बुराइयों का वध करने की परंपरा है। गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारें कुछ नए कदम उठाएं, तो देश की जनता को राहत मिल सकती है।
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