अब कश्मीर समस्या उस पार : पूरी दुनिया में केसर के लिए विख्यात पम्पोर में जाना हुआ। वहां सुरक्षा बलों के साथ स्थानीय बुजुर्ग बतिया रहे थे। निकट के गांव से आए बुजुर्ग अब्दुल सतार वानी ने कहा कि जनाब कश्मीर समस्या जरूर है, पर यह समस्या अब लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार पीओके में है। बस वह भी मिल जाए, तो समस्या का पूरा हल हो जाए। केसर के लिए मशहूर एक बड़े प्रतिष्ठान के युवा मालिक ने कहा कि हम परेशान हो चुके थे। मूल्यवान केसर उपजा रहे थे, लेकिन बेचें कहां? अब दो साल बाद हालात बदल गए हैं। पर्यटक आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को रोजगार मिलना जरूरी है।
गुपकार में दरार: धारा 370 हटने के बाद राजनीतिक दलों का गुपकार संघ चर्चित हुआ था। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की पहल पर आयोजित सम्मेलन में गुपकार की दरार का संकेत सामने आया। पंचायत प्रतिनिधियों के सम्मेलन में बिरला की मौजूदगी में पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला के सुर बदले नजर आए। उन्होंने कहा कि चुनाव नहीं लडऩा भूल थी। बाहर निकलते हुए कह गए कि अब डंके की चोट पर विधानसभा चुनाव में उतरेंगे।
चिंता भी कम नहीं: कश्मीर का तनाव ऊपरी तौर नजर नहीं आता, पर आमजन चिंतित भी हैं। उनका कहना है कि सीमापार की दहशतगर्दी में कई बार निर्दोष लोग बलि का बकरा बनते हैं। इसके साथ ही पंचायत प्रतिनिधियों को सुरक्षा की चिंता है। पाक प्रायोजित आतंकियों की हर कोशिश लोकतंत्र को कमजोर करने की है। केंद्र शासित प्रदेेश बनने के बाद पंचायतीराज के चुनावों की सफलता से वे बौखलाए हुए हैं। सिख बहुल मटन गांव के गुरुप्रीत सिंह ने कहा कि धारा 370 हटने के बाद जो खौफ का वातावरण था, वह तो अब नहीं है। जो हो गया उसे भुलाकर आगे बढऩा ही समझदारी होगी। साथ ही खड़े अमरीक सिंह ने कहा कि हमारी तो अरदास ही यह होती है कि कश्मीर से फसाद खत्म हो। अब लगता है हर पक्ष शांति चाहता है।
परिसीमन पर टकटकी: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के बाद अब 4 विधानसभा सीट लद्दाख में चली गई हैं। ऐसे में कुल 83 सीट हैं। विधानसभा परिसीमन की प्रक्रिया चल रही है। स्पष्ट संकेत हैं कि करीब 7 सीटें बढ़ेंगी। ऐसे में 90 सदस्यीय विधानसभा होगी। सभी दलों की नजर परिसीमन पर है। अभी कश्मीर क्षेत्र की 46 सीट हैं, जबकि जम्मू की 37 हैं। परिसीमन के बाद दोनों का पलड़ा बराबर हो सकता है। यह भी ध्यान रहे कि 24 सीटें पहले से ही पाक अधिकृत कश्मीर के लिए हैं। मौजूदा प्रक्रिया में उन्हें यथावत रखना तय है। पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए 11 सीट आरक्षित होने के संकेत हैं। यह कदम जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बदलाव का मुख्य फैक्टर रह सकता है। पंचायत चुनावों में आरक्षण से जनजाति में शामिल गुजर समुदाय का दबदबा नजर आया है। विधानसभा में भी एसटी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति होगी।
जाते जाते बदलाव का संकेत: जिस दिन हमें यात्रा पूरी कर निकलना था, उससे पूर्व रात्रि को हुर्रियत के नेता अली शाह गिलानी का निधन हुआ था। रात को ही इंटरनेट बंद कर दिया गया। सुबह होटल से विमानपत्तन के लिए गए तो यह बदलाव नजर आया। शहर में कफ्र्यू था। हम हैदरपुरा में गिलानी के घर के आगे से निकले। सब कुछ सामान्य रहा। दिल्ली पहुंचने के बाद शाम को कश्मीर के हालात के बारे में पड़ताल की। वहां के कुछ मित्रों से लैंडलाइन फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि गिलानी के निधन पर जो शांति रही है, वही बदलाव का संकेत है। महर्षि कश्यप की धरती युगों-युगों से बदलाव की साक्षी रही है। इस बार का बदलाव अद्भुत है।