मैंने स्वयं चुनावों से पूर्व राजस्थान, मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ का सघन दौरा करके मतदाताओं का मानस टटोला था। बेरोजगारी से त्रस्त युवा, तंगी से जूझ रहे किसान-व्यापारी किस विश्वास के साथ चर्चा कर रहे थे, किस उत्साह से आवभगत कर रहे थे, मानो हृदय उंडेल रहे हों। उनकी स्थिति को हमने पाठकों, सरकारों और राजनीतिक दलों के सामने रखा। हमारे लिखे पर न तो कांग्रेस को भरोसा हुआ कि माहौल उनके पक्ष में था और भाजपा को लग रहा था कि हम उनके विरुद्ध लिख रहे थे। परिणामों ने ही सिद्ध किया कि हम तटस्थ थे। जनता का मूड ही बयान कर रहे थे।
हमारे चुनाव अभियान का सबसे बड़ा प्रभाव यह देखने को मिला कि राजनीतिक दलों ने न सिर्फ अपने घोषणा पत्रों में इन मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया, बल्कि तीनों हिन्दी प्रदेशों की सरकारों एवं केन्द्र सरकार को भी किसानों की कर्ज माफी, बेरोजगारी भत्ता, गरीबों को आरक्षण, जीएसटी में बदलाव जैसे निर्णय करने पड़े।
‘चेंजमेकर’ अभियान के माध्यम से हमने समाज के चिन्तनशील लोगों को स्वयं राजनीति में आने का आह्वान किया। लोगों ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और इस अभियान से जुड़े ३२ लोग जनप्रतिनिधि (विधायक) बनकर विधानसभाओं में पहुंचे। लोकतंत्र के यज्ञ में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इसका श्रेय जनता को ही जाता है। हम भी जनता की कसौटी पर खरे उतरे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी जंग जारी रही। यह अलग बात है कि भीतर कई जगह राजनीतिक दल एक होते जान पड़ते हैं। कई बार उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के फैसले तक लागू नहीं हो पाते। जयपुर के रामगढ़ और जलमहल तो बड़े-बड़े उदाहरण हैं। मास्टर प्लान से खिलवाड़ करने के खिलाफ दायर मामले में भी उच्च न्यायालय ने साथ दिया। यह अलग बात है कि सरकार कानून का आदर करने को तैयार नहीं थी। इसी प्रकार राजस्थान में बजरी घोटाला, मध्यप्रदेश में ई-टेण्डर घोटाला, छत्तीसगढ़ का नान घोटाला भी परत-दर-परत पत्रिका ने ही उजागर किया। पिछली सरकार (छत्तीसगढ़) के सलवा जुडूम को पत्रिका ने उजागर किया था और उच्चतम न्यायालय ने इसे गैर-संवैधानिक करार दिया था। आज उन सभी आदिवासियों को मुआवजा दिया जा रहा है। उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ रहेगा।
हां! यहां यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि सच्चाई और धर्म का मार्ग जीवन की कठिन परीक्षाओं का मार्ग है। राजा हरिश्चन्द्र-तारामती की कथा सुनी होगी। सत्ता का अहंकार तो लंगोट तक छीनने पर उतारू हो जाता है। शक्ति उनके पास भी जनता की होती है, मीडिया के पास भी जनता की। जनशक्ति ने पग-पग पर पत्रिका का साथ दिया।
नए साल की सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा के भावी चुनाव हैं। हमारी टीमें चाक-चौबंद हैं और मैदान में उतर चुकी हैं। ‘ग्राउण्ड रिपोटर्स’ तो आप पढ़ ही रहे होंगे। इस बार भी अच्छे प्रतिनिधि चुनने हैं। भ्रष्ट और अपराधी विधानसभा चुनाव में कई बच निकले थे। इस बार युवा दृष्टि अपनी कमजोरी को दूर कर पाएगी। इनकी संख्या (नए मतदाता) भी दस करोड़ से अधिक है। इनकी प्राथमिकता भी युवा सांसदों पर ही रहनी चाहिए। मप्र, छग और राजस्थान में नए विधायक आ चुके हैं। केंद्र में भी नए सांसद आएंगे। इनकी प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान रखना, पाठकों को विषय विशेषज्ञों से जोडऩा, लोकतंत्र में भागीदार बनाए रखना, चरित्र निर्माण करना जैसे सभी उद्ेश्य आगे भी जारी रहेंगे। देश युवा है, दूर तक जाना है, सपने साकार करने का संकल्प बनाए रखना है।
पिछले वर्ष सोशल मीडिया ने मीडिया को बदनाम किया। फेक न्यूज, पेड न्यूज तथा भ्रामक प्रचार का माहौल चरम पर था। किसी को इज्जत की चिन्ता करते नहीं देखा। मीडिया सरकार के साथ हो गया था। इसी बीच पत्रिका की ‘ग्राउण्ड रिपोटर्स’, ‘हॉट सीट’, ‘जन एजेण्डा’, ‘चेंजमेकर’, ‘सेल्फी विद इंक’, ‘मेरा वोट-मेरा संकल्प’, ‘जनता की अदालत’ जैसे नए अभियानों ने हर मतदाता को लोकतंत्र से जोडऩे का सार्थक प्रयोग किया। आगे भी करेंगे। हमारा संकल्प भारत को भारत बनाए रखने का है। पाठकों से सीधे जुड़े रहने का है। बुराईयों से लडऩा और विकास में भागीदारी का है। आज पुन: इस संकल्प को दोहराने का दिन है। हम सब ‘राजस्थान पत्रिका’ हैं, चाहे पाठक हैं, कर्मचारी हैं अथवा नागरिक। पत्रिका पर्याय है स्वतंत्रता का, सम्मान का, संस्कृति का। यही हमारा भविष्य का मार्ग होगा। एक बार पुन: सबको मंगलकामना!
नमस्कार!!