ओपिनियन

दृष्टि बदले कांग्रेस

राहुल गांधी मान गए-कांग्रेस अध्यक्ष बनने को। भाजपा के लिए भी इससे अधिक शुभ समाचार क्या होगा? महाभारत हो या आज का भारत, माता को भी अपने लाल के अलावा कुछ नहीं सूझता।

Aug 26, 2020 / 07:38 am

Gulab Kothari

gulab kothari, Gulab Kothari Article, gulab kothari articles, hindi articles, Opinion, rajasthan patrika article, rajasthanpatrika articles, religion and spirituality, special article, work and life

– गुलाब कोठारी

आज की ताजा खबर: राहुल गांधी मान गए-कांग्रेस अध्यक्ष बनने को। भाजपा के लिए भी इससे अधिक शुभ समाचार क्या होगा? महाभारत हो या आज का भारत, माता को भी अपने लाल के अलावा कुछ नहीं सूझता। सारे सलाहकार भी शकुनि मामा हो गए। अठारह अक्षोणि सेना में अपना कौन है! जनता ही तो है। खबर सुनकर घर वाले भले ही उछल रहे होंगे, देश में तो मातम छाया है। कांग्रेस भारत को क्या मानकर चलती है, समय के परिवर्तन और देश की आवश्यकताओं को कितना समझ पा रही है, इसके निर्णयों में दिखाई देता है।

कांग्रेस के सामने कैसी परिस्थितियां हैं, क्या सत्ता पार्टी का एजेण्डा है, क्या उसकी भावी दृष्टि है, क्यों कांग्रेस हर बार बचाव मुद्रा में दिखाई देती है? कई राष्ट्र स्तर के प्रश्न हैं, जिनके उत्तर कांग्रेस की कार्यप्रणाली में नहीं हैं। कांग्रेस, क्या बता सकती है कि राहुल को पुन: अध्यक्ष बनाने से गांधी परिवार को क्या लाभ होगा? इसके बाद परिवार की साख उठ जाएगी अथवा कांग्रेस बिखर जाएगी। कांग्रेस को और क्या लाभ होगा? आज जो धड़ेबंदी है, वह और गहरी हो जाएगी। लोग परिवार के विरोध में मुखर होने लग गए हैं, कल अपमान के घूंट भी पीने पड़ सकते हैं। जिन लोगों ने अपने घर भर रखे हैं, उनके विचारों का तो मोल शून्य ही माना जाएगा।

कांग्रेस की नींव अंग्रेजी शैली पर पड़ी है। सत्ता प्रधान दृष्टि रही है। कितने नेता हैं, राष्ट्रीय स्तर के, जिनको भारतीय संस्कृति, दर्शन और जीवन परम्पराओं का ज्ञान है? केवल हिंदू-मुस्लिम कह लेना काफी नहीं है। जितने नए नेता कांग्रेस ने मैदान में उतारे हैं, उनमें कितनों की जीवनशैली भारतीय है? वीरप्पा मोइली जैसे कुछ पुराने लोग भारत को समझते हैं। सत्ता से बाहर रहकर कोई कांग्रेसी जनता के लिए संघर्ष नहीं करता। केवल बयानबाजी से काम चलाते रहते हैं। पीढिय़ां बदल गईं, कांग्रेस आज भी नेहरू युग की छटा बनाए हुए है। चालीस प्रतिशत देश गरीबी की रेखा के नीचे, बीस प्रतिशत बेरोजगार आदि मुद्दों पर कांग्रेस मौन! कांग्रेस जहां आहत होती है, वहीं रोती है। कांग्रेस में राष्ट्रीय मुद्दों पर सार्वजनिक बहस नहीं, ढांचागत परम्पराएं समाप्त हो गई, सेवादल जैसे जनाधार ढह गए। जनता के मुद्दों के बजाए रफाल अभी तक उड़ रहे हैं। डूबती अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन क्यों नहीं हो रहे?

कांग्रेस विपक्षी दल भी नहीं दिखाई देता। बल्कि भाजपा की आक्रामकता से जूझ रही है। कांग्रेस में कुर्सी की लड़ाई के सिवा देश के लिए सपना कौन देख रहा है? न सोनिया गांधी के पास समय बचा, न राहुल को भारतीय दृष्टिकोण में प्रशिक्षित किया। हर मुद्दे पर विदेशी दृष्टिकोण से लिए गए निर्णय ही कांग्रेस को खा गए, खा रहे हैं। ऐसे निर्णयों को आज भी कांग्रेस अनुचित कहने को तैयार नहीं है। इस स्वतंत्र भारत में कई कानून विदेशी विकासवादी दृष्टि से बनाए गए, अनेक कानून भारतीय परम्पराओं के विरुद्ध थे। कांग्रेस ने कभी जनप्रतिक्रियाओं पर ध्यान नहीं दिया। आज भी कई कानूनों पर पत्थर पड़ रहे हैं।

कांग्रेस को यदि खड़ा होना है, तो पहले तो राहुल को बिठाना होगा। कांग्रेस की अंग्रेजी संस्कृति को भारतीयता का धरातल देना पड़ेगा। देश की आत्मा को समझना पड़ेगा। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, तपना पड़ता है। कांग्रेस का ऐसा स्वभाव ही नहीं है। इन्दिरा गांधी के बाद सबने पकी-पकाई खाई। कौन तपा? जनता से दूर होते ही चले गए। लोकतंत्र छूट गया हाथ से। उसी का खमियाजा भुगत रही है कांग्रेस। नई पीढ़ी सत्ता के लालच में पार्टी के विरूद्ध खड़ी होने लगी है। उनको पार्टी नहीं सत्ता चाहिए। क्या गांधी परिवार को इसमें अपमान नजर नहीं आता? अब किसी नेता में बड़प्पन का भाव नहीं, जनता की ओर दृष्टि तक नहीं जाती। पहले इनको भारतीयता और मानवीयता का प्रशिक्षण देना पड़ेगा। अभी उम्मीद करने लायक स्थिति दिखाई तो पड़ती है। सारे बड़बोलों को पहले बाड़े में सदा के लिए बन्द करना पड़ेगा। नए नेतृत्व को, राष्ट्र चिन्तन, वर्तमान दशा के अनुरूप आगे लाना होगा। राष्ट्रीय चिन्तन से जुड़े, भारतीय दर्शन की भाषा बोलने वाले नेताओं को आगे लाना चाहिए, जो जन भावनाओं का आदर कर सकते हों। छोटे-छोटे समूह में नए नेता (जो महत्वाकांक्षी न हो) तैयार करने चाहिए। परिवारवाद का घुन भी कांग्रेस को आगे नहीं आने देगा। युग बदल गया। आज भी अनेक नेताओं के पुत्र किस प्रकार अधिकारियों का अपमान करने लगे हैं।

ये सारी बातें लिखने का अर्थ यह नहीं है कि भाजपा दूध की धुली है। आज तो उसे भी उतनी ही गालियां पड़ रही हैं। उसने भी कान बंद कर रखे हैं। अन्तर इतना ही है कि कांग्रेस का अस्तित्व देश में लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। और कांग्रेस इस मुद्दे पर जरा भी गंभीर दिखाई नहीं पड़ती। उसे भी जन सहयोग जुटाकर क्रान्तिकारी अभियान हाथ में लेने चाहिए। देशभर में जनता के दर्द की आवाजें बुलन्द होनी चाहिए। केवल किसी की बुराई करने से अच्छा है हम भी कुछ अच्छा करके दिखाते जाएं।

Home / Prime / Opinion / दृष्टि बदले कांग्रेस

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.