काश! कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने कहे पर कायम रह पाएं। अहमदाबाद में उन्होंने साफ कर दिया कि दूसरे दलों से पार्टी में आने वालों को अब टिकट नहीं मिलेगा। टिकट उन्हीं को मिलेगा जो पार्टी के लिए खून-पसीना बहाते हैं। वैसे तो ये बात कांग्रेस ही नहीं सभी दलों पर लागू होनी चाहिए। टिकट कार्यकर्ताओं की जगह दल-बदलुओं को मिले ही क्यों? लेकिन राजनीति में जो कहा जाता है वह कभी किया नहीं जाता।
गुजरात में पिछले २२ सालों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। राज्य में सत्ता में आने के लिए कांग्रेस हर जतन अपना चुकी है। लेकिन कोई दाव काम नहीं आ रहा। पिछले दिनों गुजरात कांग्रेस में हुई बड़ी बगावत के चलते उसे सत्ता के लिए बहुत जोर लगाना होगा। सवाल फिर वही कि राहुल कार्यकर्ताओं से अभी कह रहे हैं उसे टिकट बंटवारे के समय निभा पाएंगे या नहीं। पार्टी के उपाध्यक्ष मनोनीत किए जाने पर भी राहुल ने जयपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं से बहुत से वादे किए थे। कहा था कि पार्टी में दो बार लगातार हारने वालों को टिकट नहीं मिलेगा। बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं को महत्व मिलेगा। विधानसभा चुनाव में २० हजार से अधिक मतों से हारने वाले प्रत्याशियों को फिर टिकट नहीं मिलेगा। राहुल की बात पर वैसे ही तालियां बजी थी जैसे अहमदाबाद में कार्यकर्ताओं ने बजाई। लेकिन हुआ क्या? दो-दो बार हारने वाले भी टिकट से नवाजे गए और २० हजार से चुनाव हारने वालों पर भी दाव खेला गया।
पार्टी को एक के बाद एक हार का सामना करना पड़ रहा है। कार्यकर्ताओं की हताशा के बावजूद यह पार्टी की तरह काम करती नजर नहीं आ रही। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले की तरह सक्रिय नहीं हैं तो स्वयं राहुल भी पार्ट टाइम राजनीति ही करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस कार्य समिति में ऐसे नेताओं की भरमार है जो जनता से कटे हुए हैं। गुजरात के अलावा हिमाचल प्रदेश और बिहार में पार्टी बगावत से जूझ रही है। राजस्थान-मध्यप्रदेश में भी गुटबाजी जगजाहिर है। ऐसे में पार्टी सिर्फ आश्वासनों के भरोसे फिर से पटरी पर नहीं आ सकती। पार्टी नेतृत्व को कार्यकर्ताओं की भावना को समझकर उसके अनुरूप फैसले लेने होंगे। कार्यकर्ताओं का खोया विश्वास तभी पैदा हो पाएगा। और वे विपक्ष से मुकाबले के लिए कमर कस पाएंगे। पार्टी पैराशूट नेताओं को टिकट नहीं देती है तो ये अच्छी शुरूआत होगी।