गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी ने वहां के कई मंदिरों का दौरा करना प्रारम्भ कर दिया है। राहुल के इस कदम ने जहां उन्हें विरोधियों को आलोचना करने का एक और अवसर उपलब्ध करा दिया है वहीं उनकी पार्टी कांग्रेस के भीतर भी धर्मनिरपेक्षता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। आजादी के बाद के नेहरू युग से आज तक कांग्रेस में धर्मनिरपेक्षता को लेकर विरोधाभास जारी है। वर्ष १९८० में जब इंदिरा गांधी जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन को परास्त कर सत्ता में लौटी थीं तो धर्मनिरपेक्षता को लेकर वे ज्यादा उत्साहित नहीं रही थीं।
सत्ता में आने के बाद बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी ने ‘एकात्मता यात्रा’ जिसे गंगा जल यात्रा भी कहा गया को शुरू करने का आमंत्रण स्वीकार किया। यह विश्व हिन्दू परिषद का पहला जनसम्पर्क कार्यक्रम था। अपने निधन से करीब छह महीने पहले इंदिरा गांधी ने बहुसंख्यक समुदाय को आश्वस्त करते हुए कहा था कि ‘अगर उनको उनके अधिकार नहीं मिलते हैं तो यह देश की एकता के लिए खतरा होगा।’ इंदिरा गांधी के समकक्षों को लगता था कि जनता शासन के कड़वे अनुभवों से उनका मुस्लिम समुदाय के प्रति झुकाव कम हो गया था।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी यह याद रखना चाहिए कि कैसे इंदिरा ने १९७७-७९ के जनता पार्टी शासन के दौरान संघर्ष कर सत्ता वापस हासिल की थी। इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के लिए सीबीआई सुप्रिटेंडेंट एन.के. सिंह ने तडक़े पांच बजे उनके घर का दरवाजा खटखटाया। तब इंदिरा गांधी ने चीख-चीख कर कहा था कि मुझे हथकड़ी लगाओ। वे बिना हथकड़ी के गिरफ्तार होने को तैयार ही नहीं थी। साथ ही जब तक मीडिया इंदिरा के आवास पर नहीं पहुंच गया तब तक इंदिरा अपनी गिरफ्तारी किसी न किसी कारण से टालती रहीं।
वर्ष १९७८ में इंदिरा गांधी को दूसरी बार तब जेल जाना पड़ा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी की जांच के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का कानून पारित करवा लिया। संसद से निष्कासन और नाटकीय बहिर्गमन के बाद इंदिरा को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल ले जाया गया। वहां उन्हें उसी बैरक में रखा गया जहां समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीस को आपातकाल के दौरान रखा गया था। वर्तमान में कांग्रेस का एक तबका मानता है कि ऐसे प्रसंग किसी न किसी बहाने से हो तो उसे देश भर में सहानुभूति का फायदा मिल सकता है। लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या मोदी सरकार ऐसा कुछ कर पाने का साहस जुटा पाएगी?