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कांग्रेस: आत्म-मंथन शुरू

locationजयपुरPublished: Jul 08, 2019 02:05:21 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

अब सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के समक्ष नया अध्यक्ष चुनने के साथ, केन्द्रीय संगठन और राज्यों की इकाइयों को पुनर्गठित कर मजबूत करने की है।

congress party

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देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी इन दिनों आत्मावलोकन के दौर से गुजर रही है। पिछले दिनों हुए आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हाथों मिली करारी शिकस्त के डेढ़ माह बाद भी उठापटक का दौर जारी है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव परिणामों के दो दिन बाद ही 25 मई को हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन पार्टी नेता नया अध्यक्ष चुनने के बजाय राहुल गांधी से ही फैसले पर पुनर्विचार की अपीलें करते रहे। पिछले सप्ताह उन्होंने चार पेज का इस्तीफा ट्वीट कर पद छोडऩे का सार्वजनिक ऐलान कर दिया। इस्तीफा पत्र में उन्होंने इस बात पर दुख भी जताया कि सर्वोच्च पद पर रहते हुए जब उन्हें जिम्मेदारी का एहसास था, तब पार्टी के अहम पदों पर बैठे लोग जिम्मेदारी से कतरा रहे थे।

उनका साफ इशारा राज्यों में पार्टी नेतृत्व तथा केन्द्रीय संगठन में शामिल वरिष्ठ नेताओं की तरफ था। राहुल के इस्तीफे की घोषणा के बाद करीब 300 पदाधिकारियों ने पद छोडऩे की घोषणा की थी, लेकिन उनमें गोवा प्रदेश अध्यक्ष तथा मध्यप्रदेश के प्रभारी महासचिव को छोडक़र कोई वरिष्ठ नेता नहीं था। ज्यादातर युवा पदाधिकारी ही थे। शायद यही कारण रहा कि राहुल को सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ी। राहुल के इस्तीफे के बाद पार्टी में युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच की खाई और चौड़ी होती नजर आ रही है। इसी कड़ी में रविवार को उत्तर प्रदेश के प्रभारी और महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुंबई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी। उन्हें हार के डेढ़ माह बाद जिम्मेदारी का एहसास तो हुआ।

देखना यह है कि भविष्य में और कितने नेताओं का जमीर जागता है? हालांकि इन इस्तीफों पर भी अन्तर्कलह सामने आ गई है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने मिलिंद के इस्तीफे पर ट्वीट करके तंज कसा कि ‘यह इस्तीफा है या ऊपर चढऩे की सीढ़ी?’ राहुल ने लोकसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा बैठक में पी. चिदंबरम, कमलनाथ और अशोक गहलोत पर भी आरोप लगाया कि पुत्र मोह में वे पार्टी हितों को दरकिनार कर बैठे थे। अब सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के समक्ष नया अध्यक्ष चुनने के साथ, केन्द्रीय संगठन और राज्यों की इकाइयों को पुनर्गठित कर मजबूत करने की है। सबसे कठिन कार्य नया अध्यक्ष चुनना है। कार्यसमिति में युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच तालमेल कैसे बैठेगा? दोनों धड़े विपरीत दिशा में चलने वाले हैं। इनके बीच सामंजस्य सिर्फ गांधी परिवार ही बिठा सकता है। राहुल, सोनिया गांधी और प्रियंका तीनों कार्यसमिति के सदस्य हैं। जब तक इन तीनों में से किसी एक की उपस्थिति नहीं होगी, कार्यसमिति में नए अध्यक्ष पर किसी नाम पर आम सहमति बनेगी, मुश्किल लगता है।

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