मिले अनुभवी नेता को कमान कांग्रेस राजनीतिक दल के रूप में प्रतिष्ठित हमेशा रही है और आगे भी रहेगी। लेकिन ऐसा तब ही होगा जब अगर समय रहते दल के नेताओ की खरी खोटी को सकारात्मक रूप में स्वीकार कर बदलाव की बयार लाने को यह पार्टी उत्सुक हो । भाजपा जिस तरह से लालकृष्ण आडवाणी की जगह नरेन्द्र मोदी को लाई उसी की तर्ज पर कांग्रेस में अनुभवी राजनेता को कमान सौंपी जानी चाहिए| जो गांधी परिवार से तालमेल बनाकर दल और देश दोनों की दशा और दिशा में अहम परिवर्तन ला सके ।
सज्जन राज मेहता
सामाजिक कार्यकर्ता
बैगलूरू
पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने सटीक लिखा है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी है। वैसे सारे राजनीतिक दलों के कुओं में भांग पड़ी है। पहले राजनीति की नीति होती थी। आज तो छीना -झपटी है। समय के साथ जनभावनाओं को समझना भी आवश्यक है।
प्रो. प्रताप राव कदम, साहित्यकार, खंडवा
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश और संघर्ष की पर्याप्त क्षमता है। कांग्रेस को गांधी परिवार के घेरे से बाहर आना होगा। पार्टी में योग्य व अनुभवी नेताओं व कार्यकर्ताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे उसके सामने संघर्ष से शीर्ष तक पहुंचने का रास्ता स्थाई रूप से बंद है।
बदन सिंह यादव, मुरैना
कांग्रेस को अगर अंतर्विरोध से उबरना है तो उसे नेतृत्व नए हाथों में देना होगा। कांग्रेस की पहचान आज राष्ट्रीय दल की बजाय एक परिवार विशेष की पार्टी के रूप में होने लगी है। नए लोगों को मौका नही मिलेगा तो विरोध के स्वर उठना स्वाभाविक है।
संतोष कटारे, दतिया
वास्तव में कांग्रेस में कुर्सी के लिए लड़ाई चल रही है। पार्टीहित और देशहित के बारे में विचार ही नहीं हो रहा है। विपक्ष की भूमिका अदा करने में कांग्रेस काफी कमजोर है, जिसका फायदा सत्ताधारी पार्टी को मिल रहा है।
प्रदीप चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार, डबरा
राहुल गांधी पहले भी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे। लोकसभा चुनाव में देखा गया उनके नेतृत्व में कोई खास असर देश में कांग्रेस के पक्ष में नजर नहीं आया, बल्कि राहुल गांधी खुद ही अपनी मूल सीट से लोकसभा का चुनाव हार गए। ऐसा नहीं कि कांग्रेस में गांधी परिवार को छोड़ कोई दूसरा अध्यक्ष बनने के लायक नहीं है, लेकिन घूम फिरकर अध्यक्ष की कुर्सी केवल मां-बेटे के बीच में ही रह जाती है।
कमजोर संगठनात्मक ढांचा
गुलाब कोठारी ने कांग्रेस को आईना दिखाया है। सत्ता से बाहर रहकर कांग्रेसी जनता के लिए संघर्ष नहीं करते हैं। उनकी राजनीति केवल बयानबाजी तक सीमित रहती है। संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो गया है। राष्ट्रीय मुद्दों को कांग्रेस ठीक से उठा नहीं पा रही है। नई पीढ़ी के नेताओं को पार्टी नहीं सत्ता चाहिए, जिसके लिए बगावती तेवर अपना रहे हैं।
धीरेन्द्र शिवहरे, अधिवक्ता, छतरपुर
भारतीय जनमानस को समझे कांग्रेस
गुलाब कोठारी ने सही लिखा है कि कांग्रेस को यदि खड़ा करना है तो पहले राहुल को बिठाना होगा। कांग्रेस को देश की आत्मा को समझना होगा। जब तक कांग्रेस भारतीय जनमानस को नहीं समझेगी, फिर से नहीं उठ पाएगी।
डॉ. जीपी मिश्रा, रिटायर्ड मेडिकल ऑफिसर, भोपाल
कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर पिछले कई दिनों से लेकर अब तक जो चल रहा था, वह सब महज दिखावा था। कांग्रेस की स्थिति को अग्रलेख में बखूबी स्पष्ट किया गया है। पार्टी कभी गांधी परिवार से आगे निकल ही नहीं पाई।
राजाराम केसरी, सिंगरौली
मोदी युग में कांग्रेस रसातल की ओर जा रही है। राज्यों में कमजोर संगठन के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर विरोधाभास ने इस कमजोरी को उजागर कर दिया है। कार्यकर्ता भी उलझन में हैं कि किसे नेता मानें। जिस पर देश भरोसा नहीं कर रहा, उन राहुल गांधी को या जो राहुल का विरोध कर रहे उनको।
जीएल व्यास, अध्यक्ष, अधिकारी कर्मचारी पेंशनर्स महासंघ, रतलाम
कांग्रेस पार्टी में आज के नेता सिर्फ सत्ता सुख के लिए लड़ रहे हैं। जनता की समस्याओं से कांग्रेस का कोई सरोकार नहीं है। देश में कई समस्याएं हैं, बेरोजगारी है, आर्थिक मंदी है। इसके बावजूद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कांग्रेस को नए सिरे से नई सोच के साथ खड़े होने की आवश्यकता है।
नवनीत सोनी, अधिवक्ता, बैतूल