अगर आप हमारी परिस्थिति को देखें – हम एक गोल ग्रह पर हैं जो स्थिर नहीं है – ये तेजी से अपनी धुरी पर घूम रहा है – और इस ब्रह्मांड में, जिसे कोई नहीं जानता कि ये कहां शुरू होता है और कहां खत्म, फिर भी हम इन सब बातों की चिंता किए बिना, अपना जीवन चला सकते हैं। आपके अंदर, आपके चारों ओर, हर तरफ, एक ज्यादा गहरी प्रज्ञा काम कर रही है। तो मनुष्य की कोशिश और उसका संघर्ष इस आयाम तक अपनी पहुंच बनाने के लिए ही होने चाहिए। धरती पर चलने तक के लिए भी आपको शेष ब्रह्मांड के साथ एक खास संतुलन में होना पड़ता है। चलना भी आसान चीज नहीं है। ये सब आपकी बुद्धिमत्ता से नहीं हो रहा है – ये आपके अंदर की प्रज्ञा के एक ज्यादा गहरे आयाम की वजह से हो रहा है। अगर आप प्रज्ञा के इस आयाम को छू पाते हैं तो आप सतही तर्क से जीवन के जादू की ओर बढ़ेंगे।