इस दौरान हमने पाकिस्तान को इस हमले से संबंधित डोजियर सौंपे। अजमल कसाब के बयानों के टेप भेजे लेकिन पाकिस्तान सारे सबूतों को नकारता रहा है। केवल कसाब ही नहीं डेविड हेडली ने भी पूछताछ में स्वीकार किया है, मुंबई हमले के पीछे पाकिस्तान और आईएसआई का हाथ रहा है। लेकिन, हेडली के बयानों पर भी पाकिस्तान ने ऐतबार नहीं किया। लेकिन अब, 19 वें एशिया सुरक्षा सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) महमूद अली दुर्रानी ने मुम्बई हमलें में पाकिस्तान का हाथ स्वीकारते हुए कहा कि मुंबई हमला, सीमा पार के हमलों का ‘क्लासिक केस’ था।
साथ ही उन्होंने हाफिज सईद के लिए भी कहा कि वह किसी काम का नहीं है, पाकिस्तान को उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। मुंबई हमले के मामले में दुर्रानी की यह स्वीकारोक्ति कसाब, डेविड कोलमैन हेडली के बाद तीसरी बड़े सबूत की तरह है।
बड़ा सबूत इसलिए क्योंकि दुर्रानी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रह चुके हैं। वे 11 मई 2008 से 10 जनवरी 2009 तक एनएसए रहे यानी यह वो समय था जिस दौरान मुंबई हमला हुआ। ऐसे में अब पाकिस्तान को और किसकी गवाही चाहिए?
सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान की ओर से यह आधिकारिक स्वीकारोक्ति मानी जानी चाहिए? ऐसा लगता है कि पाकिस्तान इस सेवानिवृत्त व्यक्ति की बात को आधिकारिक बयान का दर्जा नहीं देगा। उसका कहना यही रहेगा कि यह दुर्रानी की निजी राय है। पाकिस्तान का बयान कोई अधिकृत व्यक्ति ही दे सकता है।
फिर, प्रतिप्रश्न यह है कि एशिया के इस सुरक्षा सम्मेलन में आने वाले पूर्व एनएसए क्या पाकिस्तान के अधिकृत प्रतिनिधि नहीं है? या फिर, पाकिस्तान ने जानबूझ कर आतंक के विरुद्ध कार्रवाई पर खिंचाई से बचने के लिए उन्हें विशेष तौर पर चुनकर भेजा है?
बहरहाल उनके पाकिस्तान के अधिकृत प्रतिनिधि के तौर पर आने या नहीं आने से हमारा यह दावा कि मुंबई हमले के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है और इसकी योजना पाकिस्तान में ही बनी, कमजोर नहीं पड़ती। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान की फौज में मेजर जनरल रह चुके दुर्रानी हमले के दौरान पाक के एनएसए थे और ऐसा हो नहीं सकता कि हमले से संबंधित कोई जानकारी उनसे छिपी रह गई हो।
उस दौरान की जानकारियों और अनुभव के बाद ही उन्होंने बहुत सोच-समझकर बयान दिया है। यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उन्होंने इस मामले में यह बयान अब क्यों दिया है? एक संभावना तो यह हो सकती है कि पाकिस्तान भारत की बदली हुई नीति को महसूस कर रहा है।
भारत ने पहले सर्जिकल स्ट्राइक और बाद में थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत के बयानों से स्पष्ट कर दिया है कि भारत पहले की तरह चुप नहीं बैठेगा। वह आगे बढ़कर पाकिस्तान को उसकी ही भाषा में जवाब देगा। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि पाकिस्तान में आंतरिक तालमेल गड़बड़ाने लगा हो। यहां इस बात की संभावना अधिक है कि नवाज शरीफ चुनाव के दौरान कह चुके हैं कि वे भारत से सामान्य संबंधों के इच्छुक हैं।
इन बातों के संदर्भ में इस तरह का बयान दुर्रानी ने किसी दबाव में दिया हो। एक अन्य बात यह भी हो सकती है कि इस्लामिक स्टेट का यह बयान, हम पाकिस्तान समर्थक चीन पर हमले से भी नहीं हिचकिचाएंगे। पाकिस्तान में अनेक आईएस समर्थक हैं।
पाकिस्तान आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले देश की बदनामी पहले ही झेल रहा है और अपनी छवि को साफ-सुथरा बनाने के लिए वहां आतंकवाद के विरुद्ध अभियान छेड़ा गया है। मुंबई हमले में पाकिस्तान की भूमिका और हाफिज सईद के विरुद्ध पाकिस्तान कार्रवाई करने से संबंधित बयानों के जरिए हो सकता है कि वह यह जताने की कोशिश में हो कि वह आतंकवाद के विरुद्ध है और उसके खिलाफ कार्रवाई में जुटा है।
इन सारी परिस्थितियों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तौर पर कोई भी चुनकर आया हो या दिखावे के लिए कोई भी सर्वेसर्वा हो लेकिन अंतिम फैसला सेना के हाथ में ही होता है। वहां सत्ता की चाबी सेना के पास होती है। अमरीका हो या चीन या फिर भारत सभी के मामले में सेना की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वही विदेश नीति तय करती है।
जब तक मुंबई हमले के मामले में फौज की आधिकारिक स्वीकारोक्ति नहीं होती, तब तक हम पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अधिकारी या पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी की स्वीकारोक्ति को आधिकारिक नहीं मान सकते।
फिलहाल दुर्रानी के बयान के पीछे एक ही बात लगती है कि रणनीतिक दबाव के कारण पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने में भारत को बड़ी सफलता मिली है।