विधेयक पर बहस के दौरान विपक्ष ने इसके विरोध में तर्क रखे थे। बाल विवाह का भी पंजीकरण संभव है, यह जान कर हर कोई किसी को हैरत हुई। सवाल उठा कि क्या इससे बाल विवाह को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा? बहस के बीच संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल अपनी कुर्सी से बार-बार उठ अधिकारियों की लॉबी तक चर्चा करते नजर आए। यदि सभी पहलुओं को अच्छी तरह से परख लिया होता, तो यह हालत नहीं होती। आखिर विधेयक का मसौदा तैयार करने वाले अधिकारियों को एक साधारण बात कैसे नहीं सूझी कि पंजीकरण किसी को वैध करने के लिए होता है, लेकिन जो अवैध हो, उसका पंजीकरण कैसे हो सकता है?
विधेयक पारित होने पर इस विसंगति की चर्चा राजस्थान तक ही सीमित नहीं रही। हर स्तर पर विरोध होता देख राज्यपाल कलराज मिश्र इस संशोधन विधेयक को वापस भेजने की तैयारी में थे। आखिर सरकार को खुद ही इस विधेयक को राज्यपाल से वापस मांगना पड़ रहा है। अब सरकार को अपने बचाव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देना पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश की यह भावना थी? क्या यह अधिकारियों की गंभीर चूक नहीं है? सरकार को राजस्थान की जगहंसाई करवाने वाले ऐसे अधिकारियों को चिह्नित कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी ही चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराई जाए। (स.श.)