टोक्यो ओलंपिक यूं तो पिछले साल जुलाई में ही होने थे, लेकिन तब भी कोरोना महामारी के चलते इसे आगे बढ़ाया गया था। पिछले ओलंपिक खेलों में पहले दस पायदान पर रहने वाले आठ देश अभी कोरोना के कहर से कराह रहे हैं। पहले स्थान पर रहे अमरीका में अब तक कोरोना संक्रमण के तीन करोड़ पैंतीस लाख मामले सामने आ चुके हैं, तो लगभग छह लाख लोगों की मौत हो चुकी है। ब्रिटेन समेत तमाम यूरोपीय देशों के हालात भी सामान्य नहीं हैं। जापान के प्रधानमंत्री भी साफ कह चुके हैं कि उनकी प्राथमिकता खेल नहीं, बल्कि लोगों की जान बचाना है।
जापान की जनता भी यही चाहती है कि सरकार खेलों के आयोजन को रद्द करने का ऐलान शीघ्र करे। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि ओलंपिक जैसे बड़े खेल आयोजन, दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मंच होते हैं, लेकिन पिछले डेढ़ साल से दुनिया के हालात सामान्य नहीं हैं। लगभग 90 से अधिक देशों में कोरोना संक्रमण के एक-एक लाख से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। दुनिया में अब भी एक करोड़ 80 लाख संक्रमित हैं, जो ठीक होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को चाहिए कि वह बिना देर करे इन खेलों को स्थगित अथवा रद्द करने का फैसला ले।
भारत में पिछले दिनों खेले गए आइपीएल टूर्नामेंट में तमाम सतर्कता के बावजूद खिलाड़ी कोरोना की चपेट में आ गए थे। ऐसे में खिलाडिय़ों की सुरक्षा भी बड़ा सवाल है। हालात सामान्य होंगे, तो खेलों के आयोजन पर फिर विचार किया जा सकता है। सवाल अगर दुनिया के सबसे दमदार खेल मुकाबलों का हो, तो उसके लिए माहौल भी उसी तरह का होना चाहिए। ओलंपिक खेल किसी कुंभ मेले से कम नहीं होते, लेकिन ऐसे माहौल में क्या खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाएंगे? खेलों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता पूरी करने से कुछ साबित नहीं होगा।