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सवाल क्या कोरोना से समाज में संवेदनहीनता बढ़ी, जवाब दूर हो गए लोग

locationनई दिल्लीPublished: Aug 28, 2020 05:57:52 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया कि क्या कोरोनाकाल में समाज के भीतर संवदेनहीनता बढ़ी है। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आई। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

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कोरोना की वजह से संवेदनहीनता बढ़़ी
कोरोना वैश्विक महामारी से लोगों की मानसिकता पर खासा प्रभाव पड़ा है। रोजगार की तलाश में दूसरे प्रांत गए लोगों के लिए कोरोना संकट आफत बन कर टूटा है। उद्योग और व्यापारिक गतिविधियों पर तालाबंदी के बाद मालिकों ने इन मेहनतकश लोगों के हाथों चंद रुपए थमा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। देशव्यापी तालाबंदी के दौरान ना तो इनके रहने की व्यवस्था की गई और ना ही राशन पानी का इंतजाम ही किया गया। नतीजा, ये सभी लोग अपने घर की ओर लौटने के लिए मजबूर हो गए। रेल और बस सेवा बंद होने की वजह से धूप और जंगली जानवरों के खतरे का सामना करते हुए मीलों पैदल चल कर अपने घर पहुंचने के लिए मजबूर हो गए। संक्रमण के शिकार लोग स्वस्थ होने के बाद भी उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। इस तरह समाज मे संवेदन हीनता बढ़ी है।
-ईश्वर लाल डामोर, बांसवाड़ा
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आपसी सद्भावना बढ़ी
कोरोनाकाल में मानवीय दृष्टिकोण में काफी परिवर्तन देखने को मिला है। शुरुआत में जरूरतमंद के हितार्थ सेवा का जो सिलसिला चला, उससे लगता है की समाज मे संवेदनशीलता का विकास हुआ है। समाज सेवी जोर-शोर से जरूरतमंद की सेवा में जुटे गए। हर सम्पन्न व्यक्ति किसी न किसी रूप से मददगार बन गया। यह संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है। यही नहीं भारत ने इस महान संकट में विश्व के दूसरे देशों की मदद की। भारत हमेशा सर्वधर्म सम्मान पर विश्वास रखता आया है और यही भारत की विशेषता है कि जब भी कोई विपत्ति आती है, तो अपार जनसमूह पूरी संवेदना के साथ मानवीय सेवाओं में जुट जाता है। अत: मेरा मानना है कि कोरोना की वजह से समाज ही नहीं, वैश्विक स्तर पर संवेदनशीलता बढ़ी है। कोरोना की वजह से प्रकृति, पर्यावरण एवं जीवन मूल्यों के प्रति भी लोगो की संवेदना बढ़ी है । आने वाले वर्षों में इसके बेहतरीन दूरगामी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
-डॉ. नयन प्रकाश गांधी, कोटा
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दूर हो गए हैं लोग
यह बात बिल्कुल सत्य है कि कोरोना की वजह से आज समाज में संवेदनहीनता बहुत अधिक बढ़ी है। यह एक ऐसा रोग है, जिसने सभी को एक दूसरे से शारीरिक व मानसिक रूप से दूर कर दिया है। अगर किसी के यह वायरस लग जाता है, तो उस व्यक्ति को समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है। उसके प्रति कोई भी संवेदनशील नहीं रहता है। रोग ठीक भी हो जाए, तो भी उसके प्रति लोगों की मानसिकता पहले जैसी नहीं रहती है। इस रोग ने सभी को एक दूसरे से दूर कर दिया है। अब तो हाल यह है कि परिवार का कोई भी सदस्य अगर कोरोना संक्रमण का शिकार हो जाता है, तो उसके प्रति परिवार के लोगों की मानसिकता भी धीरे-धीरे परिवर्तित हो जाती है। लोगों का व्यवहार अपने परिवार के व्यक्ति के साथ भी सामान्य नहीं रह पाता। इसका एक कारण इस रोग में रोगी के साथ दूरी बनाए रखना भी हो सकता है। इस रोग में रोगी टूट सा जाता है। उसके प्रति पहले जैसा प्यार और विश्वास लोगों में नहीं दिखाई देता है।
-इंदिरा जैन, शाहपुरा, भीलवाड़ा
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बढ़ी है परोपकार की भावना
वर्तमान में संपूर्ण देश कोरोना महामारी की गिरफ्त में है। महामारी ने जहां जीवन की गति को धीमा किया है, वहीं दूसरी ओर इसके सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले हैं, जिन्हें हम नकार नहीं सकते। आज हमने जीवन के महत्त्व को समझा है, परिवार की अहमियत को स्वीकारा है। प्रकृति का मोल हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी दौरान हमने सीखा है। परोपकार की भावना, जो वर्तमान में कही धूमिल सी हो गई थी,आज सभी के मन में पुन:स्थापित हुई है।
डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
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डर ने बनाई दूरी
कोरोना से अधिक खतरनाक वह भय है, जो करोना के कारण समाज में व्याप्त हो गया है। यह भय ही करोनाकाल में बढ़ी संवेदनहीनता का कारण है। आज यदि पड़ोस में किसी को कोरोना निकल आता है, तो हम उसके साथ ऐसा व्यवहार करने लगते हैं, जैसे पड़ोसी अछूत हो गया हो। कोरोना का भय हमें सामान्य शिष्टाचार से भी दूर ले जा रहा है। किसी की खुशी में शरीक होना तो दूर की बात है, किसी के गम में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं। घर की घंटी बजाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हम संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं। रिश्तेदारों के यहां हमने जाना छोड़ दिया है। यह सब संवेदनहीनता के लक्षण नहीं तो और क्या है ।
-राघवेंद्र दुबे, सेवा सरदार, नगर, इंदौर
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स्वकेंद्रित हो रहा है मनुष्य
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रह कर अपना समग्र उत्थान कर पाता है। वैश्विक महामारी कोराना की वजह से घर में रहें, सुरक्षित रहें, सोशल डिस्टेंस, मास्क की अनिवार्यता, हैंड वाश आदि बचाव के उपायों के कारण समाज संवेदनहीन हो रहा है। संक्रमण के कारण समाज में सामुदायिक गतिविधियों में अवरोध हुआ। लोग भय के कारण एक दूसरे से कतरा रहे हैं। सुख-दु:ख में सहयोग, सहानुभूति, संवेदना, सामाजिकता, समर्पण, त्याग सेवा आदि शब्द व्यक्ति के जीवन से अलग-थलग हो गए। व्यक्ति स्वकेंद्रित हो गया।
-विद्याशंकर पाठक, सरोदा, डूंगरपुर
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जानकारी केे अभाव में संवेदनहीनता पनपी
कोरोना का असर देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम नागरिकों की भावनाओं पर भी पड़ रहा है। संक्रमण जिस गति से बढ़ रहा है, यह चिंता का विषय है। साथ ही उम्मीद की किरण है अच्छी रिकवरी दर, किंतु ऐसे समय में कोरोना से ठीक हुए लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है। ऐसा हर जगह नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को पूर्ण जानकारी का अभाव होने से संवेदनहीनता की भावना पनप रही है। इसका निवारण कोरोना के प्रति जागरूकता बढ़ाकर किया जा सकता है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि हम हर व्यक्ति के प्रति संवेदनशील व्यवहार करें।
-सुप्रिया शर्मा, जयपुर
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अपनेपन का दिखावा
इस कोरोनाकाल में जरूरतमंद लोगों की मदद के नाम पर अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने पर जोर दिया गया। केवल वाह-वाही लूटने के लिए जरूरतमंद लोगों को राहत सामग्री देते हुए फोटो खिंचवाने पर जोर दिया गया। वास्तव में तो जरूरतमंद लोगों तक तो मदद पहुंची ही नही। मांग कर गुजारा करने वालों के साथ संक्रमण के डर से लोगों ने दूरी बना ली। ये संवेदनहीनता का ही प्रमाण था।
-अशोक कुमार शर्मा, झोटवाड़ा, जयपुर
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आत्महत्या की घटनाएं बढ़ीं
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समाज में संवेदनहीनता बढ़ी है। जब हम समाज के मूल में जाकर देखते हैं, तो आपसी दूरियां स्वत: ही परिलक्षित होती हंै। इसे स्वयं परख सकते हैं। सभी को यह पता है कि आने वाले एक दो साल आर्थिक तंगी के हो सकते हैं। इसलिए सब एक-दूसरे की मदद से बच रहे हैं। हम कितनी ही सामाजिकता, नैतिकता, पारस्परिक संबंध की बात कर लें, लेकिन बात रुपयों पर आकर अटकती है। सभी ने देखा ही है की आर्थिक तंगी को लेकर इस महामारी के समय बहुत से लोगों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। सोचिए, उन्होंने ऐसा क्यों किया? कहीं ना कहीं समाज की संवेदनहीनता इसके लिए जिम्मेदार है।
-मीना देवड़ा, उदयपुर राजस्थान
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समाज के प्रति बनें संवेदनशील
यह सही है कि कोरोना काल तनावपूर्ण है। कोरोना महामारी के दौरान लोग अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं। इसलिए लोग संवेदनहीन होते जा रहे हैं। समाज व रिश्तों को पीछे छोड़ दिया गया हैं। आज जब हम अपने आस-पास की स्थिति को नजदीक से देखते हैं, तो पता चलता हैं कि व्यक्ति कितना असभ्य और संवदेनहीन हो गया हैं। वह केवल अपने बारे में सोचता है। हमें यह याद रखना होगा कि समाज के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। हम सकारात्मक सोचें। सकारात्मक सोच से हर मुसीबत से लड़ा जा सकता है। यह समय आत्म-समीक्षा करने का है। संवाद को बेहतर बनाना सीखें। आज समाज को संवेदनशील बनाने की जरूरत है।
-डॉ. राजेंद्र कुमावत, जयपुर
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सकारात्मक पहलू भी देखें
यह कहना गलत होगा की कोरोना की वजह से समाज में संवेदनहीनता बढ़ी है, क्योंकि कई सामाजिक संगठनों ने कोरोना रोगियों के लिए राहत कार्य चलाए हैं। आम लोगों ने भी कोरोना रोगियों के प्रति संवेदना दिखाते हुए मदद की है। कई लोगों ने कोरोना से राहत के लिए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री राहत कोष में लाखों रुपए तक जमा कराए हैं। लॉकडाउन की अवधि में पलायन करने वाले मजदूरों को भोजन, पानी व गर्मी से बचाने के लिए उनके नंगे पैरों में चप्पल पहनाने इत्यादि सभी काम किए हैं। कई दुकानदारों व मकान मालिकों ने संवेदना दिखाते हुए लॉकडाउन अवधि का किराया माफ कर दिया। कोरोना योद्धाओं को सुरक्षा किट व सम्मान दिया है। कोरोना की वजह से लोगों ने अपनों का महत्व समझा है। परिवार व समाज के प्रति सबकी संवेदनाएं बढ़ी हंै। सब अपनों को खुश, स्वस्थ और सुरक्षित देखना चाहते हैं्। एक ओर कोरोना काल से जन जीवन को बुरी तरह प्रभावित हुआ है, तो दूसरी तरफ इसके सकारात्मक पहलू भी है।
-सुदर्शन सोलंकी, मनावर, धार, मध्यप्रदेश
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अस्पतालों में संवेदनहीनता
समाज में तो कोरोना संक्रमितों को लेकर डर बना हुआ ही है, अस्पतालों में भी मरीजों के साथ संवदेनहीन व्यवहार देखने को मिल रहा है। कोरोना की बीमारी से व्यक्ति को ठीक किया जा सकता है, पर समाज ही बीमार हो जाए तो मुश्किल हो गी।
-सागर बिश्नोई, भोजासर जोधपुर
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भय को दूर करना होगा
निश्चित तौर पर कोरेना से समाज में संवेदनहीनता दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। आज समाज में इस बीमारी के इलाज और रोगी को ठीक करने के साथ लोगों में बैठे भय को दूर करने की जरूरत है।
-अशोक श्रीवास्तव, ,दमोह मध्यप्रदेश
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एक दूसरे की मदद करें
समाज में संवेदनहीनता बढ़ी है। कोरोना काल में सरकार और समाज को अपना उत्तरदायित्व निभाना चाहिए। आम लोगों को भी चाहिए कि वे एक दूसरे की मदद करें। समय परिवर्तन शील है।
-दानाराम भामू मोमासर, श्री डूंगरगढ़, बीकानेर
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बंद हुआ मिलना जुलना
पहले हाथ मिलाते थे, गले मिलते थे लोग। आपस में घुल-मिल कर बात करते थे बेखौफ । जब से कोरोना आया लोगों का मिलना जुलना बंद हो गया। वाकई कोरोना के कारण समाज में संवदनहीनता बढ़ी है।
-शैलेंद्र गुनगुना, झालावाड़
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मरीजों की उपेक्षा
निश्चित रूप से कोरोना की वजह से समाज में संवेदनहीनता बढ़ी है। बीमारी लगने के डर से कोरोना मरीजों की उपेक्षा हुई है। देश-विदेश में ऐसी खबरें सुर्खियां बनी कि कोरोना से मरने वालों के शव जानवरों की तरह एम्बुलेंसों में भरकर गड्ढों में फेंके गए। अस्पतालों में मरीजों से गलत व्यवहार हुआ। कोरोना के मरीजों को हेय दृष्टि से देखने का सिलसिला अब तक बना हुआ है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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संवेदनहीनता नहीं, संवेदनशीलता बढ़ी
समाज में संवेदनहीनता नहीं, बल्कि संवेदनशीलता बढ़ गई हैं, क्योंकि जिसको समय नहीं था उसे भी समय मिल रहा है। लोग अपने परिवार के साथ रह रहे हैं।
-सत्येन्द्र कुमार भामू
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संवेदनशीलता सिखाई
कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए भारत में लॉकडाउन लगाया गया। इस दौरान सक्षम तबके ने गरीबों, प्रवासी मजदूरों, जरूरतमंद पड़ोसियों की मदद की। पुलिस तथा डॉक्टरों के प्रति संवेदना दिखाई। कोरोना ने लोगों को एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील रहना सिखाया है।
-प्रशांत पवार, बालोद, छत्तीसगढ़
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समाज में संवेदनहीनता बढ़ी
कोरोना संक्रमण से पिछले 6 माह से सम्पूर्ण विश्व ग्रसित है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोकडाउन में पुलिसकर्मियों द्वारा व्यापारियों से जबरन वसूली, आम जनता को चालान के नाम पर तंग-परेशान करने की घटनाएं, अस्पतालों में रोगियो के साथ अमानवीय आचरण से साफ हो जाता है कि समाज में संवेदनहीनता बढ़ी है ।
-डॉ.गोपाल राज कल्ला, जोधपुर
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समाज में आया बदलाव
कोरोना के बाद समाज में परिवर्तन आया है। समाज में मुसीबत से एक साथ लडऩे की समझ विकसित हुई है। समाज अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक हुआ है। समाज संवेदनशील हुआ है।
भानु महरोली, जयपुर
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चिड़चिड़ापन बढ़ा
कोरोना की वजह से समाज में सवेंदनशीलता नहीं बढ़ी है, बल्कि लोगों में चिड़चिड़ापन जैसी बीमारी देखने को मिली है। लोगों का बात करने का तरीका ही बदल गया है। कोरोनाकाल में मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं।
-अशोक कुमार सैनी, खेजरोली, जयपुर
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