scriptकोरोना : जोखिम को समझने के लिए त्यागने होंगे अपने पूर्वाग्रह | Corona: To understand the risk, you have to discard your prejudice | Patrika News

कोरोना : जोखिम को समझने के लिए त्यागने होंगे अपने पूर्वाग्रह

locationनई दिल्लीPublished: Apr 23, 2021 08:01:28 am

घातांक वृद्धि को नजरअंदाज कर सीधी रेखा में वृद्धि दर आंकने की भूल बनती है बेफिक्री की वजह, यहीं से निकल सकता है बचने का रास्ता।दूसरी लहर की संक्रमण दर का गणित समझना जरूरी।

कोरोना : जोखिम को समझने के लिए त्यागने होंगे अपने पूर्वाग्रह

कोरोना : जोखिम को समझने के लिए त्यागने होंगे अपने पूर्वाग्रह

ऋत्विक बैनर्जी (प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, आइआइएम, बेंगलूरु)

एक दंत कथा के अनुसार आधुनिक शतरंज के प्राचीन स्वरूप चतुरंगा का आविष्कार करने वाले सिस्सा इब्न दाहिर की पहले चौखाने पर गेहूं का एक दाना, दूसरे पर दो, तीसरे पर चार, चौथे पर आठ एवं इसी गणितीय शृंखला में बढ़ते हुए गेहूं के दाने बढ़ाने की पहेली को उनके बादशाह का न बूझ पाना, दरअसल आज व्यवहार विज्ञान की भाषा में एक्सपोनेंशियल ग्रोथ बायस (ईजीबी) कहलाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक अवस्था भी मानी जाती है, जिसमें लोग घातांकों के प्रतिफल में बढ़ रही शृंखला की बजाय किसी प्रक्रिया के बढऩे के रास्ते को सीधी रेखा में ही देखने के आदी होते हैं। इन दिनों कोविड-19 के संदर्भ में यही हो रहा है।

महामारी ज्यामितिय श्रेणी का अनुसरण करती नजर आ रही है। महामारी विशेषज्ञ इसे मूल पुनरुत्पादक संख्या (आर-नंबर) कहते हैं। यह वह संख्या है, जो एक ही संक्रमित के सीधे सम्पर्क में आने से संक्रमित हुए लोगों की संख्या दर्शाती है। ऐसे वातावरण में, जहां यह आर-नंबर एक से अधिक है, ईजीबी के शिकार लोग भी अगले एक माह में संभावित संक्रमितों की संख्या को काफी कम आंकते हैं।

हाल ही एक शोध पत्र में जॉयदीप भट्टाचार्य, प्रियमा मजूमदार और मैंने दर्शाया कि जब लोगों को लगातार तीन सप्ताह के कोविड-19 संक्रमण के आंकड़़े देकर उन्हें अनुमान लगाने के लिए कहा गया तो उन्होंने चौथे और पांचवें सप्ताह के लिए संक्रमितों की संभावित संख्या को काफी कम आंका। वास्तविक और पूर्व में अनुमानित संख्या के इसी अंतर को एक्पोनेंशियल ग्रोथ बायस (ईजीबी) कहा जाता है। इसी के चलते लोग कोविड-19 संक्रमितों के सम्पर्क में आने के जोखिम को काफी कम आंकने की भूल करते हैं। अनुसंधान से पता चला है कि लोग कोरोना अनुकूल व्यवहार की भी अनुपालना कड़़ाई से नहीं कर रहे हैं, जैसे-हाथ धोना, मास्क पहनना, सेनेटाइजर का इस्तेमाल करना आदि। वे सामने वाले व्यक्ति के कोरोना नियमों की अवहेलना को भी गलत नहीं मान रहे। इससे कोरोना नियम पालना संबंधी सामाजिक पाबंदियों का अनौपचारिक ढांचा कमजोर हो जाता है।

रोजमर्रा की जिंदगी में भी घातांक वृद्धि (ईजीबी) के कई उदाहरण हैं, जैसे दूध जब उबलता है तो वह अक्सर उफन कर बाहर निकल जाता है, क्योंकि वह घातांक दर से उबलता है और हायसिन्थ का पौधा बहुत जल्दी बढ़ कर पूरा गमला भर देता है। परन्तु कोरोना मामलों के संदर्भ में ईजीबी, जनस्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। मैंने और मजूमदार ने इस भेद को कम करने के लिए दो तरीके निकाले। पहला, अध्ययन में भाग लेने वालों को पिछली बार के अनुमान की गलती के बारे में अवगत करा उनसे दोबारा कोरोना संक्रमितों की भावी संख्या के बारे में पूछा, तब वे अधिक सही अनुमान लगा पाए। दूसरा, प्रतिभागियों को एक गणितीय मॉडल के आधार पर संभावित रेंज के भीतर अनुमान लगाने को कहा गया, इसलिए इस बात के काफी आसार रहे कि कोरोना संक्रमितों की वास्तविक संख्या इसी रेंज में कहीं हो। इस करीब-करीब सटीक अनुमान से अंदाजों के सही होने की दर बढ़ी और उसी के अनुरूप कोरोना अनुकूल व्यवहार करने की प्रवृत्ति भी।

दूसरी लहर में कोरोना संक्रमितों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। सरकार ऐसा क्या करे कि जनता इस गंभीरता को समझे? हमारे शोध से एक बात स्पष्ट है कि सरकार को महामारी विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों से सलाह ले कर नियमित तौर पर अगले सप्ताह के संभावित संक्रमितों के आंकड़ों को प्रसारित करना चाहिए। इससे लोग संक्रमण बढऩे का गणित समझ पाएंगे। नतीजा यह होगा कि वे जोखिम का अनुमान लगा पाएंगे और सावधानी बरतेंगे। कहीं ऐसा न हो कि बेफिक्र जनता भी अपने नुकसान का अंदाजा न लगा पाए, अतीत के उस बादशाह की तरह।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो