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कवरेज बढ़ाना और वैक्सीन को अपडेट करना जरूरी

हमें समझना होगा कि महामारी अभी मध्यवय अवस्था में है और डेल्टा की तरह कोई नया वेरिएंट हमें अचानक परेशानी में डाल सकता है।

नई दिल्लीJul 28, 2021 / 09:20 am

Patrika Desk

कवरेज बढ़ाना और वैक्सीन को अपडेट करना जरूरी

– जॉन. एम. बैरी, चर्चित पुस्तक ‘द ग्रेट इन्फ्लुएंजा’ के लेखक

(द वाशिंगटन पोस्ट से )

यह तो सभी जानते हैं कोरोनावायरस के डेल्टा वेरिएंट से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। जिस तरह इंसानों को कोविड-19 ने अपनी चपेट में लिया है और डेल्टा की संक्रामकता को देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नए वेरिएंट लोगों को संक्रमित करने में ज्यादा सफल हो रहे हैं। डेल्टा की ही बात करें तो पिछले साल फैल रहे वेरिएंट की तुलना में यह तीन गुना संक्रामक है। और ऐसा भी बिल्कुल नहीं है कि डेल्टा, आखिरी वेरिएंट होगा। इससे कई प्रश्न उठते हैं, जिनमें तीन सबसे अहम हैं – क्या वायरस अधिक खतरनाक रूप लेगा और गंभीर बीमारी व मौत का कारण बनेगा? क्या यह प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता और वैक्सीन के असर से बच निकलेगा? यदि इन दोनों प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है तो तीसरा प्रश्न यह कि हमें क्या करना चाहिए?

फिलहाल डेल्टा वेरिएंट के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, हालांकि यह खतरनाक माना जा रहा है। परन्तु अभी यह कहना मुश्किल है कि कितनी मौतों के लिए वायरस की बढ़ी हुई संक्रामकता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और कितनी मौतों के लिए थक कर हार मानती स्वास्थ्य की देखभाल से जुड़ी प्रणाली को। हम जानते हैं कि डेल्टा, मूल वायरस की तुलना में 1200 गुना वायरल लोड पैदा करता है, जिसका ताल्लुक रोग की तीव्रता और मौत से है। इतिहास गवाह है कि सभी पांच इन्फ्लुएंजा महामारी में पाया गया है कि खत्म होने से पहले एक के बाद एक अधिक संक्रामक वेरिएंट विकसित हुए। 1889 में ब्रिटेन में आई महामारी का दूसरा साल, पहले साल के मुकाबले अधिक जानलेवा रहा व अन्य कई देशों में तीसरा साल और अधिक जानलेवा रहा। 1918 की महामारी में पहली लहर हल्की थी। इसमें 10,313 मामले दर्ज किए गए लेकिन मृत्यु सिर्फ चार हुई। यह बीमारी ज्यादा संक्रामक नहीं थी। इसी के एक वेरिएंट ने विस्फोटक दूसरी लहर का काम किया। 1957 में इन्फ्लुएंजा महामारी से कई मौतें हुई लेकिन 1960 तक वैक्सीन आने और पूर्व में संक्रमित होने से लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई थी। एक वेरिएंट रिकॉर्ड मौतों का कारण बना। 1968 में अमरीका में सर्वाधिक मौतें देखी गईं जबकि वैक्सीन आने और लोगों में स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के बाद भी यूरोप में दूसरा साल अधिक घातक सिद्ध हुआ।

2009 के दौरान अमरीका में इंफ्लुएंजा के वेरिएंट्स से संक्रमण फैला और रोगियों की व मौतों की संख्या बढ़ी। महामारी के साल भर बाद अमरीका में और उसके बाहर भी गंभीर बीमारी फैली। सामान्य सिद्धांत यह है कि जब कभी वायरस किसी नए व्यक्ति के शरीर में पहुंचता है तो कमजोर हो जाता है क्योंकि उसका सामना बेहतर प्रतिरोधक क्षमता से होता है। लेकिन कोरोना के साथ ऐसा नहीं है, डेल्टा अधिक संक्रामक हो या नहीं, और अधिक खतरनाक वेरिएंट्स से हमारा सामना हो सकता है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या कोविड-19 किसी रूप में प्रतिरोधक क्षमता को भी धता बता सकता है? जवाब है – शायद हां। जब तक इसका संक्रमण फैलना रोका नहीं जाएगा, इसके म्यूटेट होने (परिवर्तित सवरूप) को रोकना मुश्किल है। कारण है विश्व के करोड़ों लागों को वैक्सीन नहीं लगी है। अंतत: ऐसा वेरिएंट विकसित होगा जिस पर मौजूदा वैक्सीन और स्वाभाविक रोग प्रतिराधक क्षमता बेअसर होंगे।

हमें फिर क्या करना चाहिए? पहला, वैक्सीन कवरेज बढ़ाना। वायरस भले ही वैक्सीन सुरक्षा चक्र को भेदने वाले रूप में आ जाए लेकिन यह धीरे-धीरे होगा और इसका आपदा का रूप ले लेना जरूरी नहीं है। वेरिएंट पर वैक्सीन का असर यदि कम होता भी है तो भी कई जानें बचाई जा सकती हैं। दूसरा, इंफ्लुएंजा की तरह वैक्सीन को अपडेट करने की जरूरत होगी। समझना होगा कि महामारी अभी मध्यवय अवस्था में है और यह कभी भी हमें हैरान-परेशान कर सकती है।

 

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