वर्चुअल कार्य पद्धतिः वर्चुअल लर्निंग, वर्चुअल मीटिंग्स या फिर वेबिनार्स, टेली मेडीसिन पद्धति आदि के प्रचलन से जहॉं एक तरफ बचत की विस्तृत संभावनाएं बनेंगी वहीं दूसरी तरफ बाध्यता से ही सही पर परम्परागत समाज भी डिजिटल इण्डिया युग में आगे कदम बढाऐगा। अनुमान है कि इससे 2025 तक 375 अरब रूपय तक की बचत सम्भव है। वर्चुअल फिल्म मेकिंग में नए आयाम विकसित होंगे, परिणामस्वरूप छोटे बजट की फिल्म्स का प्रचलन बढेगा।
जन मानस में मानसिक तनाव के बढने की आशंका को सिरे से नकारा नही जा सकता किन्तु कठिन परिस्थितियों में जीने की क्षमता रखने वाला आम भारतीय हैपीनेस थेरेपी को अपनाकर मेन्टल स्ट्रेस को कम करना बखूबी जानता है। अतः भारतीयों में स्ट्रेस स्तर कम ही रहेगा।
राजनीति में जनता की सहभागिता, दृष्टिकोण, चुनाव के आधार आदि में परिवर्तन के साथ-साथ नये समीकरण जन्म लेंगे। कोविड-19 का राजनीतिक प्रयोग, विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाई गई पृथक-पृथक नीतियॉं, सामुदायिक समूहों या अमीर-गरीब या ग्रामीण-नगरीय भेदभाव की राजनीति, राजनैतिक परिदृष्य को विस्तृत रूप से प्रभावित करेगी।
कोरोना काल में भारतीय नागरिकों द्वारा प्रदर्शित अनुशासन एवं दृढता के परिणामस्वरूप भविष्य में भारत में किसी भी महामारी के प्रसार की सम्भावनाओं में कमी आएगी। आज अमेरिका, जो तुलनात्मक रूप से अधिक मानवीय अधिकारों, अर्थ की तुलना में मानव मूल्य का अधिक महत्व या तुलनात्मक रूप से अधिक हाइजनिक आदतों का पालन करने वाला माना जाता रहा है, उसको भी भारतीय जनता ने सोशियल डिस्टेंसिग एवं मास्क प्रयोग जैसे सुरक्षा प्रविधियों का विस्तृत प्रयोग कर स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अच्छा परिचय दिया है।
हमारी सरकारों ने भी मानव मूल्यों के सम्मुख आर्थिकी को दूसरे पायदान पर ही रखा। इससे आर्थिक विकास की दर का एक बार नीचे आना स्वाभाविक परिणाम होगा, किन्तु इस अस्थिर अल्पकालीन गिरावट को पुनः ऊंची उठती विकास दर के रूप में देखा जा सकता है।
प्रकृति से जुडाव बढने के साथ-2 ’ग्रोै बैग्स’ जैसी योजनाओं को प्रमुखता से देखा जाएगा। परिवर्तित परिस्थितीयों के कारण सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन के तौर-तरीकों में परिवर्तन को भी मानव सोच में स्थान मिलने की सम्भावना बन रही हैं। परिणामस्वरूप शान शोैकत व दिखावे में अपव्यय, भोजन की बर्बादी, दहेज आदि पर रोक जैसी स सामाजिक रीतियों के उदभव की प्रबल सम्भावनाएॅं बनती है।