इस जगमगाहट के बीच शायद ही किसी ने यह विचार किया हो कि देश के उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी जिनके चिराग कोविड-19 की महामारी ने बुझा दिए हैं और उनकी मन:स्थिति क्या होगी जो इस महामारी की चपेट में आकर जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री की इस अपील को देश ने जिस तरह से हाथोंहाथ लिया उसका सकारात्मक स्वरूप देखने वालों की संख्या ज्यादा है। सत्ता पक्ष तो प्रधानमन्त्री की बढ़ती लोकप्रियता का दर्शन करते हुए भविष्य के परिणामों का सुखद आभास भी कर रहा है। वहीं विपक्षी दल इसे भाजपा के स्थापना दिवस याानी ६ अप्रेल की पूर्व संध्या पर अघोषित जश्न की संज्ञा दे चुके हैं।
कहा जाता है कि भगवान राम रावण का वध करके जब अयोध्या लौटे थे तब लोगों ने प्रसन्नता के आवेग में पूरे नगर को दीप मालाओं से सजा दिया था। इससे यह सिद्ध होता है कि दीप जलाना विजयोत्सव का प्रतीक हैं। इधर कुछ वर्षों से अन्याय के विरोधस्वरुप मोमबत्तियां जलाने की परम्परा भी शुरू हुई है। निर्भया-काण्ड के विरोधस्वरुप पूरे देश में मोमबत्ती जलाकर लोगों ने अन्याय और लचर कानून-व्यवस्था का विरोध किया था। कोरोना संक्रमण के मामले में तो इन दोनों में से एक भी कारण नहीं है। लाख प्रयासों के बावजूद दुनिया भर में संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
प्रधानमन्त्री के देश को संबोधन की बात से यह उम्मीद बंधी थी कि शायद वे कोरोना वैश्विक महामारी से निपटने के उपायों की घोषणा करेंगे। वे यह भी बताएंगे कि पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीपी) की कमी को किस हद तक पूरा कर लिया गया है। वहीं लॉकडाउन के चलते भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके चुके लाखों परिवारों के लिए सरकार ने क्या व्यवस्था की है। और यह भी कि तब्लीगी जमात में शामिल होने वाले सैंकड़ों विदेशियों के मरकज तक पहुंचने में खुपिया तन्त्र की चूक के लिए दोषी अधिकारियों पर सरकार क्या कार्रवाई करेगी? देखा जाए तो असली जश्न का वक्त तब ही होगा जब यह समाचार प्राप्त होगा कि आज देश में एक भी कोविड-19 का रोगी नहीं बढ़ा है और न ही किसी संक्रमित की मौत हुई है।
विपक्ष के इन आरोपों में दम हो सकता है कि कोरोना महामारी के बीच दीप जलाने की कवायद ने पीडि़तों को चिढ़ाने का काम ही किया है। साथ ही उन डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी हतोत्साहित किया है जो इस महामारी से लड़ाई में संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। डाक्टरों, नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हो रही अभद्रता की घटनाओं ने पहले ही उनका मनोबल कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके लिए दोषी सिर्फ और सिर्फ वह व्यवस्था ही है जिसके तहत वे काम कर रहे हैं। इन्वेस्ट इण्डिया के अनुसार देश को 3.8 करोड़ से भी अधिक मास्क और 62 लाख से भी अधिक पीपीई किट्स की तत्काल आवश्यकता है। जबकि भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय के अनुसार देश के विभिन्न अस्पतालों में मात्र 3.34 लाख ही पीपीई किट्स उपलब्ध हैं और लगभग 60 हजार पीपीई किट्स हाल ही में खरीदी गयी हैं।
यह कहा जा सकता है कि पूरे विश्व की रफ्तार पर अचानक से विराम लगा देने वाली इस भयंकर महामारी से निबटने के लिए जो गम्भीरता और तत्परता दिखायी जानी चाहिए वह नजर नहीें आ रही। ताली-थाली बजवाने और दीपक जलाने से कहीं ज्यादा जरूरत है कि इस महामारी से निपटने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाने की। देश की 130 करोड़ की आबादी को बहुत लम्बे समय तक घरों में कैद नहीं किया जा सकता है। वह भी तब, जब आधे से अधिक जनसंख्या के पास बुनियादी सुविधाओं का सर्वथा अभाव हो।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)