scriptकोरोना संकट और बदलता बचपन | Coronavirus and Childhood | Patrika News

कोरोना संकट और बदलता बचपन

locationनई दिल्लीPublished: May 22, 2020 01:31:52 pm

Submitted by:

Prashant Jha

जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक हमें अपने बच्चों की बहुत ध्यान से देखभाल करनी होगी। उनकी चंचलता, उल्लास व मासूमियत को सहेज कर रखना होगा। ऐसा इसलिए जब पार्क-बगीचे फिर से खुलेंगे तो ये बच्चों की धमा-चौकड़ी से फिर से गुलजार हो सकें।

lockdown_resume_in_pune_cantonment_till_22nd_may.jpg
आज पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। अर्थ व्यवस्था पर पड़ी चोट को तो सहज ही देखा जा सकता है परंतु मन-मस्तिष्क पर पड़ रहे अनवरत चोटों को आसानी से नहीं देखा जा सकता है। अपने व अपनों को हर पल मौत से बचाने की जुगत, एक भीषण मानसिक दबाव के रुप में परिणत होता जा रहा है। बाल मनोविज्ञान कहता है कि बच्चे घर में अपने बड़ों के हर व्यवहार को बड़ी बारीकी से देखते हैं तथा वैसा ही करने का व्यवहार भी करते हैं। आज जब हर घर में कोरोना संकट का भय व्याप्त है, बच्चे भला कैसे अछूते रह सकते हैं। चौबीस घंटे चलने वाले न्यूज चैनलों ने भी बिना यह सोचे-समझे कि इसे देखने वाले बच्चों पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ने वाला है, कोरोना के भय को घर-घर पहुंचा दिया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बाल- मन अबोध और कोमल होता है। वह जब किस्से कहानियों की फंतासी को सच मान लेता है तो इस कोरोना के बेरहम तस्वीर के सच को किस रुप में लेता होगा, सोचने की जरुरत है। हमें यह समझने की जरुरत है कि किसी भी घटना या स्थिति पर व्यक्त की जाने वाली प्रतिक्रिया बड़ों और बच्चों में अलग-अलग होती है। इसलिए घर के बड़े लोगों को यह ख्याल रखना चाहिए कि कोरोना के जिन खबरों से वे दहल उठते हैं, उन खबरों से उनके बच्चों के मनो विज्ञान पर क्या असर पड़ता होगा।

लॉक डाउन में पार्क- खेल परिसर आदि जैसे जगह बंद है। बच्चे यहां खेलने नहीं जा पा रहे हैं। हर शाम घुल-मिल कर खेलने वाले एक गली के बच्चे भी नहीं खेल पा पहे हैं। यह सच है कि एक साथ खेलने से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है परंतु इसके साथ यह भी सच हे कि बिना खेले बच्चों को अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियां हो सकती हैं और हो भी रही हैं। एक तो कोरोना महामारी का भय और ऊपर से खेलने पर पाबंदी, बचपन को चिंताजनक स्तर पर हानि पहुंचा रहा है। खेलने से बच्चों का न सिर्फ शारीरिक विकास होता है बल्कि इनके दैनन्दिन जीवन में उल्लास भी बना रहता है। बिना उल्लास के बचपन को दिखना बड़ा दुखदाई होता है और हमें यह देखना पड़ रहा है।
यहां पर घर के बड़े लोगों को बड़ी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उन्हें ही अपने बच्चों का दोस्त बनना होगा, उनके साथ पहले से कहीं ज्यादा समय व्यतीत करना होगा, उनके साथ खेलना होगा, उनके किस्से-कहानियों को उनकी ही तरह सच मानना होगा। उनके भीतर घर कर रहे कोरोना के भय को कम करना होगा। उनकी हंसी, उनके उल्लास को फिर से जगाना होगा।
ऐसी परिस्थितियों में अगर स्कूल बंद हो जाए तो बच्चों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ खाली –खाली सा होने का बोध होने लगता है। दोस्तों से नहीं मिल पाने का, उनके साथ नहीं खेल पाने का दुख बच्चे के मिजाज पर असर डालता है। वैसे इन दिनों आनलाइन कक्षाएं स्कूल प्रबंधन की तरफ से ली जा रही हैं जो तकनीक के बढते दायरे को रेखांकित करता है। बच्चे बड़े अत्साह से इस में हिस्सेदारी कर रहे हैं। निश्चित रुप से यह स्वागतयोग्य पहल है,परंतु प्रत्यक्ष कक्षाओं का विकल्प ऑनलाइन कक्षाएं कदापि नहीं हो सकती है। इसलिए लॉकडाउन में हमें बच्चों के बदलते व्यवहार,मिजाज व गतिविधियों को बड़े ध्यान से देखना-समझना होगा।
जिन बच्चों को कल तक सिर्फ बाहर के खाने की चाहत और आदत थी वो अब घर पर बने खाने को खा रहे हैं। इस तरह से बच्चों के खान-पान की आदत को सुधारने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। कल तक बच्चों को अपने माता-पिता से बहुत ज्यादा समय नहीं मिल पाता था, परंतु अभी माता-पिता बच्चों के साथ चौबीस घंटे रह रहे हैं। यह माता-पाता और बच्चे, देने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस समय का भरपूर उपयोग करना चाहिए। लेकिन यहां यह भी कहना जरुरी है कि ऐसा देखा जा रहा है कि लॉक डाउन में घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृदधि हुई है। घर में पति-पत्नी या परिवार के अन्य सदस्यों के बीच तनाव के मामले बढ़े हैं। बच्चों पर इनका बेहद गहरा प्रभाव पड़ता है। पहले से ही कोरोना के भय से ग्रस्त बाल मनोविज्ञान के लिए माता-पिता के झगड़े अत्यंत दुखदायी होते हैं। घर के अभिभावकों को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।
देश का बचपन, देश का भविष्य है। जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक हमें अपने बच्चों का बहुत ध्यान से देखभाल करना होगा। उनकी चंचलता, उनके उल्लास, उनकी मासूमियत को सहेज कर रखना होगा ताकि जब पार्क-बगीचे फिर से खुलेंगे तो ये बच्चों की धमाचौकड़ी से फिर से गुलजार हो सकें।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो