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एक मात्र यही विकल्प की अब वापस लौट चलें

locationनई दिल्लीPublished: Apr 19, 2020 11:26:02 am

Submitted by:

Prashant Jha

पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के शुक्रवार को पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख ‘आ, भारत लौट चलें पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं।

एक मात्र यही विकल्प की अब वापस लौट चलें

एक मात्र यही विकल्प की अब वापस लौट चलें

एक मात्र यही विकल्प

आज के दौर में भारतीय संस्कृति की ओर लौटना ही एकमात्र विकल्प है। महामारी में सुरक्षा के जो उपाय वैज्ञानिक बता रहे हैं उनको सनातन संस्कृति में बरसों से अपनाया जा रहा है।-डॉ एबी श्रीवास्तव, सेनि साइंटिस्ट, नानाजी देशमुख वेटरनरी यूनिवर्सिटी,जबलपुर (मप्र)

संक्रमण से बचाना मुश्किल हो रहा
कोरोना संक्रमण के बीच व्यक्ति के जीवन मूल्यों को इस अग्रलेख में प्रभावी तरीके से रखा गया है। यह बताने की कोशिश की गई है कि हमारे खानपान और अनियमित दिनचर्या की वजह से भी आज हमारी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। हम संक्रमण से अपने आप को नहीं बचा पा रहे हैं। – डॉ.शोभना खरे, पूर्व प्राचार्य, शासकीय महाकौशल कॉलेज, जबलपुर

आज की परिस्थितियां तो यही सीख दे रही है कि हमें अब 50 साल पीछे लौटकर आधुनिक सुख सुविधाओं का त्याग करना होगा। यह सही है कि ईश्वर की भक्ति, सात्विक भोजन, व्यायाम और अच्छे विचार से ही हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है। – संतोष अग्रवाल, व्यापारी, हरदा

हम खुद ही जिम्मेदार
हम आधुनिक बनने के चक्कर प्रकृति से दूर हो गए हैं। इसका असर हमारे खानपान पर पड़ा। इसके बाद हमारे मर्ज पर पड़ रहा है। शरीर में रोग प्रतिरोधकता कम हो रही है। कहीं न कहीं इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि हमने अपने गांव को बिसरा दिया है। अब लॉकडाउन के कारण कुछ दिन के लिए हम उस दौर में वापिस जा सकते हैं। – सुनील यादव, जिलाध्यक्ष, नर्मदा सेवा संगठन, होशंगाबाद

विचारात्मक आलेख
हमारी जड़ें प्रकृति से ही है। प्रकृति की ओर वापसी एक शुभ विचार और सकारात्मक सोच है। सही कहा आपने। हम विषपान ही कर रहे हैं। कौन सी चीज है आज जो बिना केमिकल के उपलब्ध है। संकट में हमेशा ही बड़े-बूढ़ों की सीख और उनके अनुभव काम आते हैं। पुरातन समय में हमारे बड़े-बूढ़े भी सात्विक खान पान पर जोर देते थे। यही कारण है कि पहले रोगों की भी इतनी भरमार न थी। यह संकट का समय फिर अपनी सनातनी प्रकृति से जुडऩे का है। प्रकृति की गोद में ही खुशहाली मिलेगी। – केएन शर्मा, रिटायर्ड प्राचार्य, विदिशा

प्रकृति से कर रहे खिलवाड़
आज हम नदियों को दूषित कर रहे हैं। आधुनिकता की दौर में भविष्य की कोई चिंता नहीं कर रहे और प्राकृतिकता को छोडक़र आधुनिकता की तरफ भाग रहे हैं। कुछ जगह यह जरूरी भी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम पुराना सब कुछ छोड़ दें। आज लोग कुछ करने की जगह मशीनरी पर निर्भर होते हुए काम में आराम चाहते हैं। इस कारण कई बीमारी पनप जाती हैं। आप ने सही लिखा कि जब तक प्रकृति से खिलवाड़ नही छोड़ेंगे तब तक ऐसे एक नहीं कई वायरस आते रहेंगे।- सोम क्लोसिया, समाजसेवी, राजगढ़

जीने की कला सीखें
‘आ, भारत लौट चलें’ आलेख के माध्यम से गुलाब कोठारी ने एक तरह से जीने की कला बताई है। उन्होंने बताया कि किस तरह से पहले भोजन किया जाता था, कपड़े पहने जाते थे। किस तरह से भोग विलासिता की वस्तुओं से दूर थे। अब दोबारा से इसी तरह का जीवन जीने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि भोजन किस तरह किया जाना चाहिए। आज जो भोजन किया जा रहा है, वह एक जहर के समान है, जिसकी वजह से मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। आज प्रकृति से छेड़छाड़ की जा रही है। इसी के गंभीर परिणाम लोगों को भुगतने पड़ रहे हैं। कोरोना जैसी गंभीर बीमारी इसी के परिणाम है। आज भी नहीं सुधरे तो जीवन और कठिन हो जाएगा। – दीपक सलूजा, मेडिकल व्यवसायी, बैतूल

चमक-दमक से नाता तोड़ें
गुलाब कोठारी ने अपने अग्रलेख के माध्यम से आधुनिकता की चमक धमक को छोडक़र अपनी संस्कृति व सामाजिकता का अनुसरण करने का आह्वान किया है। उन्होंने अपने अग्रलेख के माध्यम से जीवन के मूल्यों को पहचानने के लिए प्रेरित किया है। – तीरथ प्रसाद मिश्रा, सेवानिवृत्त शिक्षक, शहडोल

जागरुक करने वाला आलेख
हमें अपनी प्राचीन संस्कृति को अपनानी पड़ेगी, तभी हम बीमारियों पर विजय पा सकते हैं। गुलाब कोठारी जी द्वारा लिखा गया लेख स्वास्थ्य की दृष्टि से हमें जागरूक करने वाला है। अगर हम अन्न के साथ मन का भी प्रयोग करें, तो स्वस्थ रहेंगे –डॉ रतन सूर्यवंशी, दतिया

सामयिक चिंतन से जुड़ा आलेख
अपनी माटी, रहन-सहन और प्रकृति के महत्व को विस्तार से समझता गुलाब कोठारी का आलेख सामयिक चिंतन है। यह सत्य से साक्षात्कार करवाने वाला है। हमें यह सोचना ही होगा कि हमारा खान पान ही श्रेष्ठ है। प्रकृति से खिलवाड़ करने के बजाए समृद्ध करना ही होगा। इस समय यह आलेख निश्चित रूप से लोगों को प्रकृति के पास जाने को प्रेरित करेगा। – अशोक शर्मा, जिला पुरातत्व अधिकारी, मुरैना

स्वस्थ रहने की सीख
‘आ, भारत लौट चलें’में गुलाब कोठारी जी का आलेख सराहनीय है। लॉकडाउन के दौरान खाने पीने को लेकर लोगों में संकट की स्थिति निर्मित हो गई है। लोग भारतीय खाद्य पदार्थ जो अनादि काल से हम खाते आ रहे थे, उन्हें धीरे धीरे कर पीछे छोड़ दिया था। मौका है भारतीय शुद्ध व्यंजन को जीवन में फिर अपनाने का जिससे हमारा स्वास्थ्य और देश स्वस्थ रहे। गुलाब कोठारी जी का आलेख लोगों को स्वस्थ रहने की सीख दे रहा है। – ओमप्रकाश सिंह भदोरिया, पूर्व विधायक, मेहगांव

आध्यत्मिक जीवन शैली की जरूरत
भारत की प्राचीन संस्कृति में प्रकृति के अनुरूप सात्विक अन्न, विचार और आध्यात्मिक जीवनशैली पर बल दिया गया है। पत्रिका के अग्रलेख में कोठारी जी ने बिल्कुल सटीक टिप्पणी कर यह स्पष्ट किया है कि विकास की अंधी दौड़ में पुराने संस्कारों की उपेक्षा हम पर भारी पड़ी है। रासायनिक खाद से युक्त भोजन का असर न केवल हमारे शरीर बल्कि मन पर पड़ा है, बल्कि इसका नतीजा है कि शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हुआ है। लेख में यह सुझाव स्वागत योग्य है कि भारत को अपनी पुरानी जड़ों अर्थात प्राकृतिक जीवन शैली की ओर लौटना होगा। तभी हम कोरोना जैसी महामारी का सामना कर पाएंगे।- रविन्द्र सिंह कुशवाहा, – छिंदवाड़ा

प्रकृति से मिलाने होंगे कदमताल
‘आ, भारत लौट चलें’ शीर्षक से छपा गुलाब जी कोठारी का यह आलेख मानव को प्रकृति से जोडऩे के नियम बता रहा है। यदि समय रहते प्रकृति से कदम ताल मिला कर नहीं चले तो ऐसे कई अदृश्य वायरस पराई धरती से आएंगे। हमें डराएंगे और घरों में कैद कर जाएंगे। एक दौर में जगतगुरु की उपाधि से नवाजा जाने वाला भारत देश न जाने किस गुमनामी में खोकर अपनी ही प्रकृति की ताकत को भूलता जा रहा है। हमें समझना होगा, आगे आना होगा और प्रकृति से जोडकर महामारी को मुंहतोड़ तोड़ जवाब देना होगा। – आनंद स्वरूप मलतारे, खरगोन

बेहद ज़रूरी अग्रलेख
अपने अग्रलेख ‘आ, भारत लौट चलें’ में गुलाब कोठारी जी ने भारत की उस संस्कृति का स्मरण कराया है, जिसे आज दुनिया के सभी देशों द्वारा अपनाए जाने की ज़रूरत है। सादा और प्राकृतिक भोजन, स्वच्छता और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना ही कोरोना आपदा से हमें बचा सकती है। कोठारी जी का आह्वान महत्वपूर्ण है कि कृत्रिम रसायनों के नुकसान के इस कठिन समय में आज अपनी मूल संस्कृति की ओर लौटना ज़रूरी है।- डॉ. शरद सिंह, वरिष्ठ लेखिका, सागर

पीछे देखें आगे बढ़ें
भारतीय संस्कारों से परे हम और हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण में लगा है। हम इंडिया वाले कहलाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। एसी, फ्रिज, माइक्रोवेव के बिना गुज़ारा नहीं। कृत्रिम नमक, शक्कर और रासायनिक पदार्थों से युक्त फलों, अनाजों का सेवन करते हैं। हमें चाहिए कि कम से कम कोरोना संकट से तो कुछ सीख लें और अपनी जड़ों की तरफ लौट कर भारतीयता को फिर से अपना लें।
भारतीयता हमें सच्चा भारतवासी बना कर हर आपदा से सुरक्षित रखने का महती काम करेगी। अग्रलेख में कोठारी जी ने इसी बात को अपनी हृदयग्राही शैली में को समझाया है। –डॉ. वर्षा सिंह, साहित्यकार, सागर

सर्वमान्य सत्य तो यही है कि हमें अपनी प्रकृति के अनुसार ही जीवन शैली पर आगे बढ़ना सर्वोत्तम है। किसी संस्कृति की नकल कर हम पिछलग्गू ही साबित हो रहे हैं। सही है ‘जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन’ कहावत दैनिक जीवन में खरी उतरती है।- विशाल सैनी, सागर

भारतीय दर्शन में ज्ञान को ही अहमियत
भारतीय दर्शन ने विज्ञान को ज्ञान का अंश मानते हुए ज्ञान को ही अहमियत दी है। प्रकृति व अध्यात्म पर आधारित उसी ज्ञान की ओर लौटने का एक अवसर कोरोना वायरस ने हमें दिया है। इस पर मनन व मंथन के साथ अनुसरण होना चाहिए।
प्रखर, सीकर
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प्रकृति से विमुख होने का नतीजा
प्रकृति से विमुख होने का नतीजा ही कोरोना महामारी है। भारतीय संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों के प्राचीन मूल्यों की ओर लौटने का यह आह्वान और अवसर दोनों है।
सुभाष ढाका, सीकर
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कोई लौटा दे पुराना भारत
गुलाब कोठारी ने बिल्कुल सटीक व सत्य लिखा कि हम लॉक डाउन के दिनों में हमारे पुरातन रहन-सहन व खान-पान को ही अपना लें। हमारा भारत पहले ऐसा नहीं था जो हमें इस समय दिखाई दे रहा है। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है जिसका कारण खान-पान ही है। महिलाओं को चाहिए कि वे रसोई में इन दिनों पूरी तरह सात्विक भोजन पकाए जिससे हम अपनी जड़ों की ओर लौट सके। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं कह चुके हैं कि इन दिनों भारतवासियों को आयुर्वेद उत्पाद लेने चाहिए। इस समय नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाने की आवश्यकता है। आइए, हम इसकी शुरुआत अपने आप से ही करें।
-कांता अग्रवाल गायत्री परिवार, अलवर।
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फिर कहानियां सुनाए
गुलाब कोठारी ने बिल्कुल समाज को सही दिशा दिखाने वाला अग्रलेख लिखा है। इस समय अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को घर में रहकर कहानियां सुनाए। हमारी पुरातन संस्कृति के बारे में बताए। अग्रलेख में हमें नई दिशा मिली है कि हम सोच रहे थे लॉकडाउन में हम क्या करें? हम अपने समय का सदुपयोग कैसे करें? सही अर्थों में इसका जवाब यह अग्रलेख ही दे रहा है। वर्तमान में हम अपने आपको भूल गए हैं। क्या हमारे जीवन का यही पुरुषार्थ है। हमें सत्संग व मनन के साथ अपने भीतर झांककर देखना होगा।
-रामस्वरूप वर्मा, नारायण सेवा संस्थान, अलवर।
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युवा भी प्रेरणा लें
अग्रलेख पढक़र युवाओं को भी प्रेरणा मिलेगी। इस लॉकडाउन में युवा यह सोचने को मजबूर हो गए हैं कि हम इतनी भागदौड़ किसके लिए कर रहे हैं। इतनी कमाई में समाज के लिए मैं क्या कर रहा हूं, अपने देश को इसके बदले में क्या दे रहा हूं। हमारे देश के युवाओं में पढ़-लिखकर अच्छी पढ़ाई कर विदेशों में जॉब करने की होड़ लगी है। कोठारी जी ने बहुत अच्छा लिखा है कि भारत का अतीत गौरवमयी है।
– आशीष तनेजा, युवा व्यवसायी, अलवर
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प्रकृति के साथ जीना सीखें
आज के युग में खाने-पीने में रसायन और कीटनाशक हमारे भोजन, हवा और पानी में इस तरह घूल गया है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से घटी है। इसी कारण हर साल किसी न किसी नई बीमारी से संघर्ष करना पड़ता है। इसमें बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गंवा देते हैं। कोविड-19 का संकट बहुत व्यापक स्तर पर है। इसका संबंध भी सीधा रोग प्रतिरोधक क्षमता से है। राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने अपने आलेख में भारत की प्राचीन खानपान पद्धति का हवाला देकर प्रेरणा देने का प्रयास किया है। हम इस आपदा से सबक लेकर वापस प्रकृति के साथ जीना सीखें ताकि जीवन मूल्यवान बना रहे। सरकारों को भी इससे प्रेरित होकर ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो परंपरागत खेती को प्रोत्साहित करें।
प्रियंका मित्तल, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कोटा
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समाज में जागृति आएगी
विश्वव्यापी कोविड-19 के संकट ने मानव जाति को अपनी जीवनशैली और खानपान पर सुधार के लिए विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। यदि इस संकट के बाद भी हमने सबक नहीं लिया तो यह बड़ी भूल साबित होगी। डॉ. गुलाब कोठारी ने अपने आलेख में यह बताने का प्रयास किया है कि मनुष्य का जीवन किस तरह का हो, उसकी खानपान और दैनिक दिनचर्या किस तरह की होनी चाहिए। निश्चित रूप से रसायन और कीटनाशकों से बचने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस आलेख से समाज में जागृति आएगी ऐसा मेरा मानना है।
-सोहनलाल शर्मा, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, कोटा
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हमारी ही गलतियों का परिणाम
वैश्विक महामारियां हमारी ही गलतियों का परिणाम है। अधिक उपभोक्तावाद के चलते हमने हमारे जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में भारी परिवर्तन किया है। इससे हमारा शरीर ही नहीं बल्कि मन भी रोगग्रस्त होने लगा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में संपूर्ण मानवता ही खतरे में पड़ जाएगी।
– शुभांगिनी, गृहिणी, जोधपुर
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जनसंख्या विस्फोट के साथ हमने खेती और उपभोग करने के तरीकों में बहुत बदलाव किया है। इसका परिणाम है कि आज हम सभी प्रकार की सुविधाएं जल्दी प्राप्त करना चाहते हैं। शरीर के श्रम का त्याग कर दिया है और मन को अनियंत्रित होने का अवसर दिया है। भारतीय परंपरा को अपनाए रखना ही हमारे अस्तित्व को बचाने में सहायक हो सकता है।
– प्रह्लाद सिंह, शिक्षक,जोधपुर
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सामूहिक प्रयास करने होंगे
कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन की स्थिति के नकारात्मक पहलू तो सबके सामने है लेकिन इसका क्या सकारात्मक पक्ष हो सकता इस बारे में पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने आ, भारत लौट चले शीर्षक से अग्रलेख में बहुत अच्छी तरह समझाया है। ये अवसर मिला है जिससे हम पुन: प्रकृति मित्र के रूप में सामने आ सकते है। लॉकडाउन के कारण प्रदूषण से लेकर शहरी जीवन की अन्य जीवन समस्याओं से छुटकारा महसूस हो रहा वो लॉकडाउन नहीं रहने पर भी महसूस हो इसके लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
डॉ. भरत वैष्णव, व्याख्याता, राजकीय महाविद्यालय, चित्तौडगढ़़
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सारगर्भित और समयानुकुल
‘आ, भारत लौट चलें…’ वास्तव में सारगर्भित और समयानुकुल अग्रलेख है। खाद्य और अखाद्य का फर्क समझ में नहीं आ रहा है। भोजन को हमने त्याग दिया है और केवल खा रहे है। क्या खा रहे है,इससे कोई मतलब नहीं। जीभ चटोरी, मन बावरा और भूख व तृष्णा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। भोजन तो पूजा है। जब शरीर की जरूरत हों तब भोजन करें, ये मनमर्जी से दिनभर खाना ठीक नहीं। मुंह को कूड़ेदान बना दिया है। कुछ न कुछ अंदर रहना चाहिए, ऐसा क्यों? पेट को खाली रहने का अवसर ही नहीं दे रहे। जरूरी है उपवास करें। खाने के समय इतर गतिविधियों को त्याग दें। घर का देसी खाएं। भारत की जलवायु के अनुरूप हमारा खान-पान होना चाहिए, ये अमरीकी हॉट डॉग की धरती नहीं है।
– सुनील जोशी, शिक्षक, बाड़मेर
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भारत की ओर लौटने का गुरुमंत्र
आज का आलेख पढक़र मन प्रसन्न हुआ। खान-पान पर ध्यान देने के लिए एक पूरी सीरिज चलनी चाहिए। क्या खाएं, कितना खाएं,कैसे खाएं। कोरोना के इस दौर में आग्रह है कि अखबार में यह रेसिपी भी आ जाए कि आज यह बनाएं। शहरीकरण में ढल चुकी महिलाएं इसको समझती नहीं है। समाचार-पत्र पढक़र परिवार में प्रोत्साहित होकर आने वाले दिनों में कई देसी सब्जियां घरों में पकेगी। भारत की ओर लौटने का गुरुमंत्र कोरोना ने दिया है। नि:संदेह लोगों के पता चला है कि अब तक वे फालतू खर्च और फालतू खाद्य में उलझे हुए थे। इस पर यदि अब भी नियंत्रण होता है तो आने वाले समय में हम और सुरक्षित और ताकतवर होंगे।
– देवीसिंह जुडिय़ा, किसान, बाड़मेर
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हमारी संस्कृति ही हमारी धरोहर
हमारी संस्कृति ही हमारी धरोहर है और जीवन पद्धति भी। प्रकृति मां की गोद में स्वच्ïछंंदता में हम पले बढ़े हैं। विकास के अंंधानुकरण से हम अपने शरीर को प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुकूल नहीं बना रहे हैं, तो दोष हमारा ही है। महामारी की आहट, दस्तक व प्रवेश के दौरान यदि यह इस बात का आम आदमी मंथन करें तो देर नहीं हुई है।
-अमिता व्यास, गृहणी, जैसलमेर
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जैसा अन्न खावे, वैसा मन पावें
रसायन का खाद्य सामग्री में समावेश हमें कहीं न कहीं शारीरिक दुर्बलता की ओर धकेल रहा है। जैसा अन्न खावे, वैसा मन पावें..। यह बात सर्व विदित है। भोजन को श्रद्धा का केन्द्र माना जाता है, इसके कई मायने हैं। शुद्धता के नाम पर कई नवाचार किए गए हैं, लेकिन आज भी रोगों से लडऩे की क्षमता हम विकसित नहीं कर पा रहे हैं। दोष हमारा ही है कि हम विदेशी दासता व संस्कृति माने जीवन जीने के तरीके के आदी हो चुके हैं।
-मेघराज परिहार, सामाजिक कार्यकर्ता, जैसलमेर
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मंथन कर बदलाव करें
संकट के इन हालात में हम अपने खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा आदि पर मंथन कर अगर कई सुखद बदलाव करें तो जीवन आनंददायक हो सकता है। वास्तव में हमने स्थान व मौसम के आधार पर भोजन करना छोड़ दिया है। गुलाब कोठारी का आलेख हमें बीते समय की अच्छाई को पुन: जीवन में स्थापित करने की सीख मिलती है।
– राजीव चोटाला, हनुमानगढ़।
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सेहतमंद जीवन गुजारना हो लक्ष्य
सबसे प्रेम और सबके सहयोग की भावना हम छोड़ चुके हैं। ज्यादा बुद्धिमान हो गए हैं और बुद्धि में प्रेम नहीं होता। गुलाब कोठारी के लेख से हमें यह सबक मिलता है कि भूतकाल में जो जीवन हमारे बुजुर्ग व्यतीत कर गए, उसे हम लॉकडाउन में अपनाए तो कई तरह की परेशानियों से निजात पा सकते हैं। भोग की बजाय सुखी व सेहतमंद जीवन गुजारना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
– निपेन शर्मा, हनुमानगढ़।
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उम्रभर झेलना होगा
यह सही है कि कोरोना वायरस की महामारी ने रसायनयुक्त खान पान को त्याग कर पुरानी व्यवस्था को लौटने का संकेत दिया है। गुलाब कोठारी ने अपने आलेख में एक-एक बात वर्तमान घट रही चुनौतियों को अपने शब्दों में पिरोया है। अब भी हम पुराने खान-पान और दिनचर्या को नहीं अपनाएंगे तो लॉकडाउन उम्रभर झेलना होगा।
– ओमप्रकाश, व्यापारी श्रीगंगानगर
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मुहिम बनानी होगी
गुलाबजी के आलेख में यह बात सही लिखी है कि दो सप्ताह के लिए फ्रीज, माइक्रोवेव, एयरकंडीशनर जैसे विलासता के उपकरणों का उपयोग नहीं करें ताकि वर्तमान पीढ़ी को पचास साल पुराने देश के रहन-सहन के बारे में पता चल सके। यदि इसे मुहिम बना दी जाएं तो पूरे देश में बिजली की बचत भी हो सकेगी और युवाओं को बिना विलासता उपकरण रहने का मौका भी मिल जाएगा।
– साहिल गर्ग, दुकानदार श्रीगंगानगर
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प्रकृति का आनंद उठाना भूले
भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग प्रकृति का आनंद उठाना भूल चुके हैं, जबकि एक यही कदम हमें स्वस्थ बनाने में कारगर साबित होता है। सरकार को चाहिए कि वह मिलावट खोर के खिलाफ सख्त कदम उठाए, ताकि बाजार में बिक रहे नकली और मिलावटी खाद्य पदार्थ खाकर लोग बीमार नहीं पड़े। पत्रिका के प्रबंध संपादक गुलाब कोठारी, जो प्रकृति और स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करते रहते हैं। धन्यवाद के पात्र हैं।
– कमलेश गौड़ गृहणी बीकानेर।
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संस्कृति और संस्कारों से जोडऩे वाला
गुलाब जी का आलेख ‘आ, भारत लौट चलें’ हमें अपनी संस्कृति और संस्कारों से जोडऩे की प्रेरणा देने वाला है। अगर हम इन बातों को अपना लें तो हमारा जीवन स्वर्ग के समान हो सकता है।
जगदीश बिश्नोई शिक्षक,पाली
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मूल्यों को फिर से अनुभव करना होगा
आलेख में उन मूल्यों का समावेश किया गया है जो वर्तमान में हर भारतीय को अपनाने की जरूरत है। हमें इन मूल्यों को फिर से अनुभव करना चाहिए जो हमारी विरासत हुआ करते थे। सात्विक वृत्ति को अपनाने से हमारा जीवन और आने वाला समय नई दिशा की ओर मुड़ जाएगा। गुलाब जी कोठारी का आलेख इसी बात को दर्शाने वाला है।
मनीष कुमार, शिक्षक,पाली

 

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