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कोरोना : स्वास्थ्य सेवाओं को बड़ी चुनौती

locationनई दिल्लीPublished: Apr 08, 2020 06:07:02 pm

Submitted by:

Prashant Jha

कोरोना के खतरे में अधिकांश आबादी द्वारा साफ-सफाई का ध्यान रखा जा रहा है लेकिन वास्तविक लाभ तभी होगा, जब यह आदत खतरा टल जाने के बाद भी बरकरार रहे।
 

Coronavirus

कोरोना : स्वास्थ्य सेवाओं को बड़ी चुनौती

योगेश कुमार गोयल

लोगों में स्वास्थ्य के स्तर को सुधारने तथा स्वास्थ्य को लेकर प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाने वाला विश्व स्वास्थ्य दिवस इस बार कोरोना महामारी के संक्रमण के डर के बीच ७ अप्रेल को ही निकला है। कोरोना संकट ने दुनिया भर में लोगों को बेचैन कर दिया है। वह भी ऐसे वक्त में जब दुनिया के तमाम देश स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से लगातार तरक्की कर रहे हैं। लेकिन कोरोना जैसे वायरस के सामने जब अमरीका जैसा विकसित देश को भी खुद को बेबस पाता है तो लगता है कि अभी भी जन-जन तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तो स्वयं यह भी मानता है कि दुनिया की कम से कम आधी आबादी को आज भी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। विश्वभर में अरबों लोगों को स्वास्थ्य देखभाल हासिल नहीं होती। करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं तथा स्वास्थ्य देखभाल में से किसी एक को चुनने पर विवश होना पड़ता है।

जन-स्वास्थ्य से जुड़े कुछ वैश्विक तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो हालांकि टीकाकरण, परिवार नियोजन, एचआईवी के लिए एंटीरिट्रोवायरल उपचार तथा मलेरिया की रोकथाम में सुधार हुआ है लेकिन चिंता की स्थिति यह है कि अभी भी दुनिया की आधी से अधिक आबादी तक आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच नहीं है। विश्वभर में 80 करोड़ से भी ज्यादा लोग अपने घर के बजट का कम से कम दस फीसदी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर खर्च करते हैं। यही नहीं, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर बड़ा खर्च करने के कारण दस करोड़ से ज्यादा लोग अत्यधिक गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। चिंता की स्थिति यह है कि पिछले कुछ दशकों में एक ओर जहां स्वास्थ्य क्षेत्र ने काफी प्रगति की है, वहीं कुछ वर्षों के भीतर एड्स, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के प्रकोप के साथ हृदय रोग, मधुमेह, क्षय रोग, मोटापा, तनाव जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे में स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियां निरन्तर बढ़ रही हैं।

अगर भारत की बात की जाए तो आर्थिक दृष्टि से देश में पिछले दशकों में तीव्र गति से आर्थिक विकास हुआ है लेकिन कड़वा सच यह भी है कि तेज गति से आर्थिक विकास के बावजूद इसी देश में करोड़ों लोग कुपोषण के शिकार हैं। भारत में ग्रामीण तथा कमजोर आबादी में सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का विस्तार करने के उद्देश्य से ‘आयुष्मान भारत कार्यक्रम’ की शुरूआत की जा चुकी है। इस कार्यक्रम के तहत देश की जरूरतमंद आबादी को अपेक्षित स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।

हालांकि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को देखा जाए तो देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की बड़ी कमी है। यहां डॉक्टरों तथा आबादी का अनुपात संतोषजनक नहीं है, बिस्तरों की उपलब्धता भी बेहद कम है। देश में सवा अरब से अधिक आबादी के लिए महज 26 हजार अस्पताल हैं अर्थात् 47 हजार लोगों पर सिर्फ एक सरकारी अस्पताल है। देशभर के सरकारी अस्पतालों में इतनी बड़ी आबादी के लिए करीब सात लाख बिस्तर हैं। सरकारी अस्पतालों में करीब 1.17 लाख डॉक्टर हैं अर्थात् दस हजार से अधिक लोगों पर महज एक डॉक्टर ही उपलब्ध है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमानुसार प्रति एक हजार मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। कुछ राज्यों में तो स्थिति यह है कि 40 से 70 हजार ग्रामीण आबादी पर केवल एक सरकारी डॉक्टर ही उपलब्ध है।


आज की भाग-दौड़ भरी तेज रफ्तार जिंदगी में अधिकांश लोग जाने-अनजाने में ही अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कामकाज के साथ अपने स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखें ताकि जिंदगी की यह रफ्तार पूरी तरह दवाओं पर निर्भर होकर न रह जाए। बेहतर होगा, अगर व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा समय योग या व्यायाम के लिए निकाला जाए और भोजन में ताजी सब्जियों, मौसमी फलों और फाइबर युक्त हैल्दी डाइट का समावेश किया जाए। बहरहाल, कोरोना ने लोगों की जीवन शैली को बदलने का प्रयास किया है। कोरोना के खतरे को देखते हुए अधिकांश आबादी द्वारा साफ-सफाई का ध्यान रखा जा रहा है लेकिन इसका वास्तविक लाभ तभी होगा, जब यह आदत कोरोना का खतरा टल जाने के बाद भी बरकरार रहे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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