सरकार ने रिटन्र्स में पासपोर्ट नंबर देना जरूरी रखा है लेकिन विदेश यात्राओं और इसके खर्च का ब्यौरा देना जरूरी नहीं। यानी कोई व्यक्ति विदेश यात्रा पर कितना खर्च कर रहा है, उसका खर्च कौन उठा रहा है, वह विदेश गया तो क्यों, जानकारी देना जरूरी नहीं रह गया। क्या ऎसे आदेशों से कालेधन पर रोक लग पाएगी? अथवा कालेधन का अंदेशा और बढ़ेगा? इनकम टैक्स रिटन्र्स में विदेश यात्राओं का ब्यौरा व खर्च की जानकारी हटाने का औचित्य समझ से परे जान पड़ता है।
नए नियम के अनुसार तो कोई भी व्यक्ति साल में कितनी भी बार विदेश जाए, कितना भी खर्च करे, सरकार को बताने की जरूरत नहीं। रिटन्र्स में जानकारी देने से उस पर झूठी जानकारी नहीं देने का दबाव तो रहता था। अब वह भी हट गया।
बड़े-बड़े उद्योगपतियों अथवा धन्नासेठों की बात छोड़ दी जाए तो दो नंबर की कमाई करने वाला आम भारतीय इस कमाई को विदेश यात्राओं अथवा ऎश-आराम का जीवन बिताने पर ही खर्च करता है। उसकी न तो इतनी सामथ्र्य होती है कि वह इस रकम को विदेशी बैंक खातों में जमा करे और न इतना साहस होता है कि वह इससे सम्पत्ति जुटा सके। ऎसे हालात में दो नंबर की कमाई को दो नंबर के तरीके से लुटाने की सोच पैदा होती है।
सरकार का मकसद इनकम टैक्स रिटन्र्स भरना आसान बनाना तो हो सकता है लेकिन इसके ये मायने नहीं कि विदेश यात्राओं की जानकारी देने का कॉलम ही समाप्त कर दे। रिटन्र्स में विदेश यात्राओं का ब्यौरा देने की अनिवार्यता का विरोध करता कौन है? जाहिर है विरोध करने वाले लोग वे ही होते हैं जो दो नंबर के पैसे से जाते हैं।
कालेधन को लेकर कुछ सालों से देश में बड़ी बहस चल रही है। हर सरकार इस पर अंकुश लगाने के दावे करती है और वादे भी। लेकिन हकीकत में क्या हो रहा है, सबको दिखता है। केन्द्र की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार रोकने व कालाधन वापस लाने को बड़ा मुद्दा बनाती रही है लेकिन इस तरह के फैसलों से उसकी नीयत पर संदेह होता है।जनता भी जानती है कि कालाधन रातों-रात वापस नहीं लाया जा सकता लेकिन ऎसे उपाय तो कर सकते हैं जिससे भ्रष्टों में भय पैदा हो।
नए फरमानों से तो रही-सही उम्मीद भी डूबती नजर आ रही है। चुनाव से पहले भाजपा नेताओं की कथनी और सत्ता में आने के बाद करनी में रात-दिन का बदलाव दिख रहा है। जनता को आम आदमी के “अच्छे दिनों” की उम्मीद थी न कि भ्रष्टाचारियों के “अच्छे दिनों” की।