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भ्रष्टाचार पर ‘राज’ परस्ती

Published: Feb 19, 2021 07:22:58 am

Submitted by:

Gulab Kothari

पिछले तीन-चार दिन के राजस्थान के समाचार कह रहे थे कि सरकार खाएगी, खाने देगी तथा खाने-खिलाने वालों को प्रमोशन, वेतन वृद्धि, तमगे मिलते रहेंगे।

Rajasthani got official language status, brought government act

राजस्थानी को मिले राजभाषा का दर्जा, सरकार एक्ट लाए – विधायक गर्ग

– गुलाब कोठारी

पिछले तीन-चार दिन के राजस्थान के समाचार कह रहे थे कि सरकार खाएगी, खाने देगी तथा खाने-खिलाने वालों को प्रमोशन, वेतन वृद्धि, तमगे मिलते रहेंगे। किसी के विरुद्ध गलतियों के चलते कार्रवाई शुरू हो भी गई हो, कोर्ट में भेज दिया गया हो तो साथी अधिकारियों की कमेटी रिपोर्ट बदल देगी। गुनाह माफ कर दिया जाएगा। पत्रिका में पिछले दिनों प्रकाशित समाचारों की बानगी देखिए-
प्रश्न तब उठता है जब वर्ष 2019-20 के बजट भाषण में जीरो टॉलरेन्स (भ्रष्टाचार के मुद्दों पर) की घोषणा के बाद यह हो रहा है। क्या ये सब जीरो टॉलरेन्स की परिभाषा में नहीं आते? इसका एक चित्र यह भी है कि विपक्ष के राजेन्द्र राठौड़, कालीचरण सर्राफ, प्रतापसिंह सिंघवी के साथ ही सत्ता पक्ष के भी भरतसिंह व रमेश मीणा ने विधानसभा में भ्रष्टाचार पर ही प्रश्न लगा रखे हैं। अध्यक्ष ही तय करेंगे कि चर्चा होगी या नहीं।
ऐसा क्यों रहा है कि कुछ ही अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई होती है? कुछ को समन ही नहीं ‘सर्व’ हो पाते, कुछ को लम्बे समय तक पुलिस पकड़ती ही नहीं। ऐसे भी चित्र पत्रिका में छपे हैं (मध्यप्रदेश में) कि अपराधी मंच पर है और पुलिस पहचानती ही नहीं। पिछले चार साल में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार एसीबी ने सत्ताईस अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई की और सजा कितनों को हुई?
पिछली वसुन्धरा सरकार ने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। काला कानून तक विधानसभा में पहुंच गया था। वर्तमान सरकार ने उस दौरान के अपराधियों की फाइलें भी नहीं खोलीं। इसका खुला संदेश यही था कि जिसको जितना मिले, चलेगा। सरकार कानूनी कार्रवाई की स्वीकृति नहीं देगी।
राजस्थान में तो सरकार ने खान विभाग के संयुक्त सचिव बीडी कुमावत सहित 17 अधिकारियों को माफ कर दिया है। राज्य सरकार पर पिछले साल सियासी संकट आया, उस समय अधिकारियों पर ज्यादा उदारता दिखाई गई। एकल पट्टा प्रकरण में तत्कालीन आरएएस अधिकारी निष्काम दिवाकर को राहत देने का निर्णय राज्य सरकार ने कर लिया है, लेकिन कोर्ट की अनुमति बाकी है। इसी तरह आइएएस नीरज के. पवन के खिलाफ 2017 व निर्मला मीणा के खिलाफ 2018 से अभियोजन स्वीकृति नहीं दी है। इन सहित 37 प्रमुख अधिकारियों को कार्मिक विभाग को मुकदमा चलाने की अनुमति देनी है, जिनमें आरएएस व आरपीएस भी शामिल हैं। इनके अलावा राजस्थान के 214 अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मिलना बाकी है। जबकि केन्द्र सरकार व दूसरे राज्यों के 17 अधिकारी व कर्मचारियों पर भी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है। आरएएस अधिकारी निशुकुमार अग्रिहोत्री के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति तो 2016 से अटकी हुई है। देखा जाए तो पुलिस पर कार्रवाई का दारोमदार है लेकिन जोधपुर में एक एसआइ, उदयपुर व नागौर में एक-एक एएसआइ को थानाधिकारी बनाने तक की सिफारिश की गई जिनका सर्विस रिकॉर्ड भी साफ नहीं है।
वैसे तो आरोप तय होने के बाद ही सेवा पर असर होता है, लेकिन लंबे समय तक आरोप ही तय नहीं होते इसलिए पदोन्नति हो जाती है। इसी वजह से केट के आदेश से आइएएस रविशंकर श्रीवास्तव 23 फरवरी 18 को सुपर टाइम स्केल से मुख्य सचिव वेतन शृंखला में पदोन्नत हो गए।
खान महाघूसकांड में पकड़े गए अशोक सिंघवी को दो मार्च 18 को मुख्य सचिव वेतन शृंखला में पदोन्नति दी गई जो लंबित मुकदमे से प्रभावित रहेगी। वहीं नीरज के. पवन मामला लंबित रहते हुए ही 31 दिसंबर 18 को चयन वेतन शृंखला से सुपर टाइम स्केल में पदोन्नत कर दिए गए। पिछले चार साल में आइएएस नीरज के.पवन, निर्मला मीना व भारती दीक्षित के साथ हाल ही आइएएस इन्द्र सिंह व आइपीएस मनीष अग्रवाल पर भी एसीबी ने कार्रवाई की। पिछले सालों में आइएएस नीरज के. पवन, निर्मला मीना, इन्द्र सिंह, अशोक सिंघवी, जीएस संधू व लाल चंद असवाल को गिरफ्तार किया। आइपीएस राजेश मीना, सतवीर व मनीष अग्रवाल भी गिरफ्तार हुए।
कोरोना काल में जिस प्रकार सरकारी विभागों की गतिविधियां चर्चा में आईं, उससे लगा कि सरकार सोच-विचार कर ऐसा कर रही है। कालेधन की समानान्तर व्यवस्था चल रही है। सख्त कानूनों के बाद कहां से पैदा हो रहा है यह! हर दल की सरकार काले धन के लिए ही कार्य करने लगी है। अधिकारियों को सजा देने से मार्ग स्वत: ही बन्द हो जाता है। एक बहुत बड़ा प्रश्न सामाजिक बहस में उठना चाहिए कि सम्पूर्ण राजस्व को सरकारें पूरी तरह चट कर जाएं, खर्च के लिए उधार और लें, विकास के लिए ‘शून्य’ राजस्व शेष रहे, तो क्या लोकतंत्र में इसको ‘जनता के लिए’ कहा जा सकता है? किस बात का राजस्व और किस बात की सरकारें? हर विकास के लिए उधार! कौन और कैसे चुकाएगा?
दो दिन पूर्व हाईकोर्ट का एक फैसला आया है कि अपात्र, निकायों में आयुक्त नियुक्त नहीं किए जाएंगे। माई लॉर्ड! क्या यह संभव नहीं कि आप ऐसे समाचारों पर तथ्यों के आधार पर स्व: प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेने की छूट प्रत्येक न्यायाधीश को स्वीकृत कर दे दें? सरकार के विरूद्ध कोर्ट में जाना आम आदमी के बस का नहीं है। आज एक डर यह भी बैठने लगा है कि सरकार विरोधी मामलों में फैसलों का स्वरूप भी बदलने लगा है। आज तो लोग यहां तक कहने लगे हैं कि यह सरकार अपना अन्तिम कार्यकाल मानकर चल रही है। वैसे जनता को दोनों ही दलों ने निराश किया है। चाहे सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की। भ्रष्टाचार को पनाह देने के मामले में दोनों एक जैसे हैं। जनता जाए तो कहां जाए। उसके पास तो एक ही विकल्प है। सरकारी खजाने में राजस्व पहुंचाते रहो ताकि खाने वाले खाते रहें। जयपुर के रामगढ़ बांध का ही अकेला प्रमाण काफी है।
न्यायालय में एक सेल ऐसा होना चाहिए जो भ्रष्टाचार के समाचारों का तुरन्त आकलन करे, तथ्य जुटाए और कोर्ट इस आधार पर सरकारों को नोटिस जारी करे। अपराधियों को माफ करना अपराध को भी माफ करना है और यह न्यायपालिका की अवमानना भी है। जनता गूंगी है, युवा दिशाहीन है, लोकतंत्र खतरे में है। अंग्रेज कुछ तो दे गए थे, ये केवल लेते हैं।

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