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भ्रष्टाचार की जड़ें सभी जगह गहरी, सक्षम नेतृत्व ही उपाय

locationनई दिल्लीPublished: Jun 26, 2020 06:22:53 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

‘मिलीभगत की कुश्ती’ पर प्रतिक्रियाएं
राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित तमाम राज्यों में अफसरशाही में फल फूल रहे भ्रष्टाचार और इसके लिए सरकारों को जवाबदेह ठहराते पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘मिलीभगत की कुश्तीÓ को प्रबुद्ध पाठकों ने सराहा है। उन्होंने कहा है कि भ्रष्टाचार की जड़ें सभी जगह गहरी हैं। सक्षम राजनीतिक नेतृत्व ही इसे रोक सकता है। अफसरों को संवेदना का पाठ पढ़ाने के कोठारी के सुझाव को पाठकों ने अच्छा फार्मूला बताया है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से

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संवेदना का पाठ पढ़ाना अच्छा फार्मूला
कोठारी ने राजस्थान के सन्दर्भ देते हुए अफसरशाही के रवैये और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया है। ये जड़ें सभी जगह गहरी हैं। भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए अफसरों को संवेदना का पाठ पढ़ाना और गांव में भेजने का फार्मूला अच्छा है।
राजेन्द्र आचार्य, भोपाल
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हकीकत समझाने वाला अग्रलेख
अग्रलेख लोगों को हकीकत समझाने वाला है। इससे जहां सरकार सचेत होगी तो आम लोग भी सरकारी अफसरों के तौर तरीके समझ सकेंगे। अफसरशाही हमेशा ही हावी रही है, उस पर लगाम लगाने के लिए सक्षम राजनीतिक नेतृत्व जरूरी है, जिसका अभाव खलता है।
राजेश चौरसिया, भोपाल
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भ्रष्टाचार के पोषकों पर वार
कोठारी ने भ्रष्टाचार के पोषकों पर वार किया है। उनकी जड़ों को कुरेदा है। यह बिलकुल सही है कि आज भ्रष्टाचार की बेल ऊपर से नीचे को आ रही है। क्या मजाल कि बिना मंत्री-मुख्यमंत्री की सहमति के अधिकारी पत्ता भी हिला दें। देश से यदि भ्रष्टाचार को मिटाना है तो एक बार फिर से हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना होगा। राजनीति का भी शुद्धिकरण करना होगा।
रामस्वरूप दीक्षित, वरिष्ठ साहित्यकार, टीकमगढ़
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तंत्र का भय जरूरी
भ्रष्टाचार को रोकने के लिए तंत्र का भय होना जरूरी है। अफसरशाही पर नियंत्रण जरूरी है ताकि स्थिति बेलगाम न हो जाए। राजस्थान में माफिया राज इसलिए हावी है क्योंकि अफसरशाही पर नियंत्रण नहीं है।
महेंद्र नायक, प्रोफेसर, छतरपुर
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जनप्रतिनिधि भी जिम्मेदार
अफसरशाही अब दीमक बन चुकी है। उसका उद्देश्य व्यवस्था देना नही बल्कि अपनी व्यवस्था करना है। रिश्वत मिलने पर व्यवस्था के आदेश जारी होते हैं। लेकिन इसमें यह भी जोडऩा होगा कि जनप्रतिनिधि भी जिम्मेदार हैं। जनप्रतिनिधियों ने भी अफसरों को इसलिए खुला छोड़ रखा है जिससे उनके सफेद कलफ की कोठरी में धन लक्ष्मी की बारिश होती रहे।
सत्येंद्र तिवारी, लेक्चरर, सतना
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मध्यप्रदेश में भी भ्रष्टाचार को शह
मध्यप्रदेश में भी भ्रष्टाचार को पूरी शह मिल रही है। वर्षों बाद कांग्रेस सरकार आई, लेकिन भ्रष्टाचार की कोई फाइल नहीं खुली। अब भाजपा की सरकार आई है। तय है कि भ्रष्टाचार के किसी मामले पर से पर्दा नहीं उठाया जाएगा, जबकि हकीकत में कोई ऐसा विभाग बचा नहीं है, जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला ना हो।
अजय जायसवाल, उपाध्यक्ष, संयुक्त व्यापार मंडल सिंगरौली
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देशप्रेम की भावना जाग्रत करें
वर्तमान परिवेश में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने व योजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए देशप्रेम की भावना जरूरी है। जब तक देश के कर्णधार जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों में यह भावना नहीं पैदा होगी तब तक हम चीन जैसे देश को टक्कर नहीं दे पाएंगे। भगवानदास एरन, अध्यक्ष, अग्रवाल पंचायत न्यास, उज्जैन
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भगवान भरोसे किसान
कोठारी ने माफिया राज के साथ किसानों के दर्द को बयां किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसान भगवान भरोसे ही हैं। मैदानी स्तर पर न तो योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो रहा है और न ही किसानों तक उनका लाभ ही पहुंच रहा है। अधिकारी मैदान में जाएं तो उन्हें जमीनी हकीकत का अंदाजा हो।
भानु प्रताप सिंह, अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, शहडोल
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माफिया तलाश लेते हैं नए आका
नदियों से अवैध खनन करने वाले माफिया, भूमाफिया और सूदखोर माफिया कहीं न कहीं राजनीतिक पार्टियों से जुड़े होते हैं। सत्ता परिवर्तन के साथ अपने नए आकाओं की तलाश करते हैं, जो इन्हें इस कार्य में संरक्षण दें। अग्रलेख इसी मिलीभगत की कुश्ती को उजागर करता है।
अजय उदासीन, बुरहानपुर

सब तय प्रक्रिया से
न्यायालय के फैसलों पर अमल नहीं करने के कई मामले आते रहते हैं। लेकिन न्यायालय के आदेशों का पालन कराने या खुद पहल कर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई के मामले कम ही मिलते हैं। इससे कहीं न कहीं लगता है कि सब कुछ तय प्रक्रिया से चल रहा है। जिसे जो करना है, करता जा रहा है। कोई डर किसी को नहीं रहा है।
जनक सिंह तोमर, मुरैना
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मौका नहीं चूकते धन कमाने का
हमारे सिस्टम में भ्रष्टाचार गहराई से उतर चुका है। कोई भी सरकारी महकमे का काम बिना लेन-देन संभव नही है। समूचा तंत्र इतना भ्रष्ट हो चुका है कि भ्रष्टाचारी किसी भी मौके पर पैसा कमाने से नहीं चूकते। कोरोना में भी क्वरैंटाइन के नाम पर अच्छा खासा भ्रष्टाचार किया जा रहा है। मनरेगा तो भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण है।हमारा देश इसीलिए पिछड़ भी रहा है ।- कमल किशोर, बरसनी
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इच्छा शक्ति की कमी
पत्रिका में गुलाब कोठारी का आलेख ‘मिली भगत की कुश्ती सर्वत्र फैले भ्रष्टाचार पर सटीक चोट है । मुख्यमंत्री जी की स्वीकारोक्ति इसे प्रमाणित करती है किंतु यह भी सत्य है कि यदि मुख्यमंत्री की दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सकती है । अफसर हो या फिर चाहे ऊँचे ओहदे पर बैठे नेता, एक-दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं । सरकार एसीबी को चेतावनी के साथ उसकी कार्यप्रणाली पर सजगता से निगरानी करें तभी समाज में फैला भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है ।
– पूरण सिंह राजावत, जयपुर
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अफसरों पर ही ठीकरा न फोड़ें
नेताओं की करतूतों से आज कौन बेख़बर है। जितनी दूरी सूर्य से पृथ्वी तक की है उतनी दूरी नेता अपने कर्त्तव्य, मूल्यों आदि से बना कर रखते हैं। चुनाव का समय आने पर न जाने नेताओं के मुख पर दिखावे की संवेदना क्यों उभर आती है और फिर यही संवेदना चुनावों के पश्चात कोसों दूर चली जाती है। इतिहास गवाह है कि हर बार नेता अपने हित के लिए जो भी कृत्य करना पड़े उसको अंजाम देते हैं; इसके लिए अफसरों पर दबाव बनाना, उनको धमकियां देना इत्यादि रास्ते अपनाते हैं । दरअसल आवश्यकता है नेताओं को मानवीय मूल्यों से अवगत कराने की, उन्हें अपने कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने की । भ्रष्टाचार का सारा ठीकरा अफसरों के सिर पर फोड़ देना उचित नहीं।
-सुनील बलिया, ईमेल से

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लूटने का लाइसेंस

मिलीभगत की कुश्ती’ शीर्षक आलेख में गुलाब कोठारी ने राजस्थान में बढ़ते भ्रष्टाचार व शासन की कमज़ोरी को उजागर किया है। राज्य में बजरी माफिया, भू माफिया, मादक पदार्थ माफिया ,खनन माफिया सब ओर फैले हुए हैं। ना तो मुख्यमंत्री ने खुद माना है राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. राज्य में 19 अफसरों के मुकदमे वापस ले लिए तो क्या इनको लूटने का लाइसेंस दिया हुआ था?
– गोपाल अरोड़ा, जोधपुर

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सभी के अंतर्मन की पीड़ा
राजस्थान पत्रिका के मुख पृष्ठ का आलेख ‘मिलीभगत की कुश्ती’ निसंदेह पत्रिका की बेबाक, निर्भीक एवं चिंतनशील पत्रकारिता का उदाहरण है । सरकारों-अफसरों की मिलीभगत, अकर्मण्यता एवं समाज-राष्ट्र के प्रति उदासीनता को गुलाब कोठारी ने अपने अंतर्मन की पीड़ा से उकेरा है । निश्चित ही सभी के मन की पीड़ा है। इससे संकल्प के साथ स्वयं से संबंधित क्षेत्र में जवाबदेहीता व् सजगता से कार्य करने एवं अन्य से कार्य करवाने को बल मिलेगा ।
प्रशांत जोशी, वाया ईमेल

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सरकारों को जागृत करने का प्रयास
सटीक व समसामयिक लेखन के लिए आभार। जनहित के लिए प्रतिबद्धता के साथ लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मीडिया की जो उत्कृष्ट भूमिका हो सकती है इसका निर्वहन राजस्थान पत्रिका कर रही है इसके लिए बधाई ।पत्रिका की निष्पक्ष आवाज़ ही इसकी लोकप्रियता का कारण है। पत्रिका समय समय पर सरकारों को शब्दों की ध्वनि से जागृत करता रहा है
गिरिराज काबरा , राजसमन्द
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इलाज कौन करेगा ?
भ्रष्टाचार जब नीचे से ऊपर तक पहुँच गया हो तो इसका इलाज कौन करेगा ? कोरोना संक्रमण के दौर में भी लोग भ्रष्टाचार करने से नहीं चूक रहे। दिल्ली में तो कोरोना के कारण संकट में आये लोगों के लिए सरकार ने सूखा अनाज व मसाले आदि बांटे तो तीन मंजिला भवन व कार मालिकों तक को कतार में लगे देखा गया । बाल किशन यादव, बीकानेर ।

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भ्रष्टाचार की जड़ें गहराई

पत्रिका में गुलाब कोठारी का अग्रलेख ‘मिलीभगत की कुश्ती ‘ सटीक , यथा र्थ कटु सत्य पर आधारित है। प् रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं लेकिन इससे पहले भ्रष्टाचार का जड़ से खत्म होना जरुरी है। पूरे कुँए में भांग घुली है. पक्ष-विपक्ष बारी-बारी से इसी कुंए से पानी पीते हैं. चाहे जितना ज़ोर लगा लो कोई फर्क नहीं पड़ना क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरा गई है। – कुमार जयंत बाहेती, जयपुर।
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मूल कारण हमारी चुनाव प्रणाली


भ्रष्टाचार का मूल कारण हमारी चुनाव प्रणाली है। हर चुनाव में धन का अत्यधिक खर्च होता है और उस खर्च को वापस लाने के लिए राजनीतिज्ञ ही सरकारी अफसरों से भ्रष्टाचार करवाते हैं। और , जो अफसर नही करते उनका हाल सबको ज्ञात है। चुनाव करने में जो आवश्यक खर्चे हैं उनके अलावा और कोई खर्चा नहीं होना चाहिए। समस्त राजनितिक दल जो चंदा लेते हैं उन्हें लेखा जोखा सार्वजानिक करना चाहिए। यह चंदा भी केवल डिजिटल माध्यम से ही लिया जाए .
प्रदीप इंजीनियर , भोपाल
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समाज को संस्कारित करने की आवश्यकता

समाज का प्रत्येक वर्ग अपनी सुख सुविधाओं के बदले भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। नेताओ के टिकट और मंत्री पद के लिए पार्टी फंड में धन देने की बातचीत के वीडिओ वायरल होते हैं। अपात्र होते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वालों की ख़बरें भी आती रहती है । नैतिकता के पतन के इस वातावरण में भी हमारे आसपास अनेक ईमानदार लोग अपवाद स्वरूप जरूर हैं. वास्तविकता तो यह है कि पूरे समाज को संस्कारित करने की आवश्यकता है।
– अनिल भार्गव , गुना

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