देशप्रेम की भावना जाग्रत करें
वर्तमान परिवेश में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने व योजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए देशप्रेम की भावना जरूरी है। जब तक देश के कर्णधार जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों में यह भावना नहीं पैदा होगी तब तक हम चीन जैसे देश को टक्कर नहीं दे पाएंगे। भगवानदास एरन, अध्यक्ष, अग्रवाल पंचायत न्यास, उज्जैन
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भगवान भरोसे किसान
कोठारी ने माफिया राज के साथ किसानों के दर्द को बयां किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसान भगवान भरोसे ही हैं। मैदानी स्तर पर न तो योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो रहा है और न ही किसानों तक उनका लाभ ही पहुंच रहा है। अधिकारी मैदान में जाएं तो उन्हें जमीनी हकीकत का अंदाजा हो।
भानु प्रताप सिंह, अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, शहडोल
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नदियों से अवैध खनन करने वाले माफिया, भूमाफिया और सूदखोर माफिया कहीं न कहीं राजनीतिक पार्टियों से जुड़े होते हैं। सत्ता परिवर्तन के साथ अपने नए आकाओं की तलाश करते हैं, जो इन्हें इस कार्य में संरक्षण दें। अग्रलेख इसी मिलीभगत की कुश्ती को उजागर करता है।
अजय उदासीन, बुरहानपुर
सब तय प्रक्रिया से
न्यायालय के फैसलों पर अमल नहीं करने के कई मामले आते रहते हैं। लेकिन न्यायालय के आदेशों का पालन कराने या खुद पहल कर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई के मामले कम ही मिलते हैं। इससे कहीं न कहीं लगता है कि सब कुछ तय प्रक्रिया से चल रहा है। जिसे जो करना है, करता जा रहा है। कोई डर किसी को नहीं रहा है।
जनक सिंह तोमर, मुरैना
हमारे सिस्टम में भ्रष्टाचार गहराई से उतर चुका है। कोई भी सरकारी महकमे का काम बिना लेन-देन संभव नही है। समूचा तंत्र इतना भ्रष्ट हो चुका है कि भ्रष्टाचारी किसी भी मौके पर पैसा कमाने से नहीं चूकते। कोरोना में भी क्वरैंटाइन के नाम पर अच्छा खासा भ्रष्टाचार किया जा रहा है। मनरेगा तो भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण है।हमारा देश इसीलिए पिछड़ भी रहा है ।- कमल किशोर, बरसनी
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इच्छा शक्ति की कमी
– पूरण सिंह राजावत, जयपुर
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अफसरों पर ही ठीकरा न फोड़ें
नेताओं की करतूतों से आज कौन बेख़बर है। जितनी दूरी सूर्य से पृथ्वी तक की है उतनी दूरी नेता अपने कर्त्तव्य, मूल्यों आदि से बना कर रखते हैं। चुनाव का समय आने पर न जाने नेताओं के मुख पर दिखावे की संवेदना क्यों उभर आती है और फिर यही संवेदना चुनावों के पश्चात कोसों दूर चली जाती है। इतिहास गवाह है कि हर बार नेता अपने हित के लिए जो भी कृत्य करना पड़े उसको अंजाम देते हैं; इसके लिए अफसरों पर दबाव बनाना, उनको धमकियां देना इत्यादि रास्ते अपनाते हैं । दरअसल आवश्यकता है नेताओं को मानवीय मूल्यों से अवगत कराने की, उन्हें अपने कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने की । भ्रष्टाचार का सारा ठीकरा अफसरों के सिर पर फोड़ देना उचित नहीं।
सभी के अंतर्मन की पीड़ा
राजस्थान पत्रिका के मुख पृष्ठ का आलेख ‘मिलीभगत की कुश्ती’ निसंदेह पत्रिका की बेबाक, निर्भीक एवं चिंतनशील पत्रकारिता का उदाहरण है । सरकारों-अफसरों की मिलीभगत, अकर्मण्यता एवं समाज-राष्ट्र के प्रति उदासीनता को गुलाब कोठारी ने अपने अंतर्मन की पीड़ा से उकेरा है । निश्चित ही सभी के मन की पीड़ा है। इससे संकल्प के साथ स्वयं से संबंधित क्षेत्र में जवाबदेहीता व् सजगता से कार्य करने एवं अन्य से कार्य करवाने को बल मिलेगा ।
प्रशांत जोशी, वाया ईमेल
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सरकारों को जागृत करने का प्रयास
सटीक व समसामयिक लेखन के लिए आभार। जनहित के लिए प्रतिबद्धता के साथ लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मीडिया की जो उत्कृष्ट भूमिका हो सकती है इसका निर्वहन राजस्थान पत्रिका कर रही है इसके लिए बधाई ।पत्रिका की निष्पक्ष आवाज़ ही इसकी लोकप्रियता का कारण है। पत्रिका समय समय पर सरकारों को शब्दों की ध्वनि से जागृत करता रहा है
गिरिराज काबरा , राजसमन्द
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इलाज कौन करेगा ?
भ्रष्टाचार जब नीचे से ऊपर तक पहुँच गया हो तो इसका इलाज कौन करेगा ? कोरोना संक्रमण के दौर में भी लोग भ्रष्टाचार करने से नहीं चूक रहे। दिल्ली में तो कोरोना के कारण संकट में आये लोगों के लिए सरकार ने सूखा अनाज व मसाले आदि बांटे तो तीन मंजिला भवन व कार मालिकों तक को कतार में लगे देखा गया । बाल किशन यादव, बीकानेर ।
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भ्रष्टाचार की जड़ें गहराई पत्रिका में गुलाब कोठारी का अग्रलेख ‘मिलीभगत की कुश्ती ‘ सटीक , यथा र्थ कटु सत्य पर आधारित है। प् रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं लेकिन इससे पहले भ्रष्टाचार का जड़ से खत्म होना जरुरी है। पूरे कुँए में भांग घुली है. पक्ष-विपक्ष बारी-बारी से इसी कुंए से पानी पीते हैं. चाहे जितना ज़ोर लगा लो कोई फर्क नहीं पड़ना क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरा गई है। – कुमार जयंत बाहेती, जयपुर।
भ्रष्टाचार का मूल कारण हमारी चुनाव प्रणाली है। हर चुनाव में धन का अत्यधिक खर्च होता है और उस खर्च को वापस लाने के लिए राजनीतिज्ञ ही सरकारी अफसरों से भ्रष्टाचार करवाते हैं। और , जो अफसर नही करते उनका हाल सबको ज्ञात है। चुनाव करने में जो आवश्यक खर्चे हैं उनके अलावा और कोई खर्चा नहीं होना चाहिए। समस्त राजनितिक दल जो चंदा लेते हैं उन्हें लेखा जोखा सार्वजानिक करना चाहिए। यह चंदा भी केवल डिजिटल माध्यम से ही लिया जाए .
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समाज को संस्कारित करने की आवश्यकता समाज का प्रत्येक वर्ग अपनी सुख सुविधाओं के बदले भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। नेताओ के टिकट और मंत्री पद के लिए पार्टी फंड में धन देने की बातचीत के वीडिओ वायरल होते हैं। अपात्र होते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वालों की ख़बरें भी आती रहती है । नैतिकता के पतन के इस वातावरण में भी हमारे आसपास अनेक ईमानदार लोग अपवाद स्वरूप जरूर हैं. वास्तविकता तो यह है कि पूरे समाज को संस्कारित करने की आवश्यकता है।