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प्रेम प्रसंग

Published: Aug 05, 2015 11:53:00 pm

क्षमा करें। हम प्रिय नायिका, कृष्ण की प्रेयसी, वृषभान
दुलारी, बृजवासियों की चहेती राधारानी की बात नहीं

Suicides

Suicides

क्षमा करें। हम प्रिय नायिका, कृष्ण की प्रेयसी, वृषभान दुलारी, बृजवासियों की चहेती राधारानी की बात नहीं कर रहे। हम तो अपनी “अच्छी” सरकार में खेती-बाड़ी मंत्री राधामोहन की चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने राज्यसभा के एक सांसद के जवाब में उत्तर दिया कि देश में किसानों की आत्महत्या की वजह उनके प्रेम प्रसंग, नामर्दी और दहेज के मामले हैं। कसम से उनकी ऎसी हाजिर जवाबी से हम हैरान हैं।


किसानों के बारे में ऎसी सपाट टिप्पणी किसी मंत्री ने नहीं की होगी। मंत्री का यह उत्तर “अधिकारिक” है इसलिए यह माना जा सकता है कि सरकार किसानों के बारे में क्या राय रखती है। वाह मंत्री जी। आपकी साफगोई सुन कर हमारा मन भी आत्महत्या करने का हो रहा है।


वाह री संसद। हमने एक से एक शातिर मंत्री देखे लेकिन ऎसे बेमिसाल जवाब अब सुनने को मिले हैं । मजे की बात इस पर सबसे कड़ी प्रतिक्रिया भाजपा की छोटी बहन शिवसेना ने ही की है।


सेना सुप्रीमो ने साफ-साफ कहा – यह देश का दुर्भाग्य है कि राधामोहन जैसे लोग देश के कृçष्ा मंत्री हैं। उद्धव के इस बयान से हम सौ फीसदी सहमत हैं। अब तो मानना ही पड़ेगा कि मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में छांट-छांट कर मंत्री भरे हैं। काश आज कोई इस देश के किसानों की दशा देखने वाला तो हो। कभी हमारे नेताओं ने सोचा है कि किसानों के नौजवान बेटे मौका मिलते ही पहला काम कृçष्ा कर्म को त्यागने का क्यों करते हैं? एक जमाने में अपने देश में एक कहावत प्रचलित थी- उत्तम खेती, मध्यम कारोबार और नीच चाकरी। लेकिन आज की पीढ़ी नौकरी को प्राथमिकता देती है और खेती- बाड़ी को ठुकरा रही है।


पहले हम भी हर शहरी की तरह मानते थे कि किसान तो मजे करते हैं। वाह क्या जोरदार जीवन बिताते हैं। हरियाली के बीच रहते हैं। जमकर दूध-छाछ पीते हैं और दही, घी, फल-सब्जी डटकर खातेे हैं।


गांव का जीवन कितना अच्छा है। जैसे-जैसे समझ बढ़ी वैसे-वैसे पता चला कि फिल्मों में हरे-भरे सरसों के खेतों में हीरो-हीरोइन को प्रेम गीत गाते देखने और एक किसान की जिन्दगी जीने में जमीन-आसमान का फर्क है। हमें तो यह समझ नहीं आया कि राधे के इस उत्तर का आधार क्या है? निस्संदेह उन्हें यह जानकारी अफसरों ने किसानों की आत्महत्या के कारणों का पता लगाकर ही दी होगी।


अपनी बला टालने के लिए मंत्री और अफसर कैसे-कैसे नायाब उत्तर बना लेते हैं, यह इस बात का ताजा उदाहरण है लेकिन क्या मंत्री की बुद्धि कहीं घास चरने चली जाती है। इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि सरकार को किसानों की वास्तविक परेशानी तो दिखलाई ही नहीं दे रही। माना कि हमारे प्रधानमंत्री बहुत व्यस्त रहते हैं।

उन्हें दुनिया के कई देशों के बड़े नेताओं से राब्ता कायम करने से समय मिले तो पहली फुरसत में वे इन मंत्री महोदय को “कृषि रत्न” की मानद उपाधि से अलंकृत करें। उनके जवाब को कृषि प्रधानभारत की सरकार का सर्वश्रेष्ठ उत्तर करार दिया जाना चाहिए। – राही

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