व्यंग्य राही की कलम से
ऐतिहासिक गुलाबी नगरी, जिसे श्रद्धालुजन छोटी काशी भी कहते हैं आजकल एक विशाल गोशाला बना हुआ है। शहर के सभी व्यस्त बाजारों में आप मजे से गो दर्शन कर सकते हैं। जौहरियों के लिए प्रसिद्ध बाजार या फिर चौड़े-चौड़े रास्तों वाला मार्केट, शानदार मिर्जा इस्माइल रोड हो या नई-नई कॉलोनियों के बाजार गऊ माता हर स्थान पर मिल जाएंगी। पुराने शहर की सड़कों पर सांड विचरण करते नजर आ जाएंगे। अब कल की ही बात लो।
हम जिस जगह रहते हैं वह गरीबों की सी बस्ती है और सरकार की मेहरबानी से वहां अभी पक्की सड़कें नहीं बनी हैं सो वर्षा काल में भांति-भांति खरपतवार और घास उस तरह उग आई है जैसे कुर्सीधारी पार्टी में अचानक कार्यकर्ता उग आते हैं। हमारी बस्ती में दर्जनों गाय-सांड चरने चले आते हैं और देखते-देखते सम्पूर्ण सड़कें गोबर और गोमूत्रमयी हो चली हैं। उनकी गंध से भांति-भांति के कीट पतंगे और मक्खी मच्छर हो रहे हैं। ये मच्छर मानव शरीर में अपने डंक चुभो कर नाना प्रकार की बीमारियां फैला कर उसे इस भवसागर में जीवनमरण के चक्र से मुक्ति दिला रहे हैं।
समझ नहीं आ रहा कि गोमाताओं के इस विशेष अनुग्रह का हम क्या करें। राजधानी में सरकार की ठीक नाक के नीचे सरकारी गोशाला में हजारों गायें कीचड़ कादे में फंस कर तड़प-तड़प कर मर गईं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी दिखती रही। बड़ी सरकार ने सरकारी कारकूनों को तड़ी पिलाई तो सब काम पर जुटे।
अब एक मजेदार खेल देखिए। जब से गोशाला के हाल बिगड़े तब से सरकारी गोरक्षकों ने आवारा गायों को पकडऩा बंद कर दिया और देखते- देखते राजधानी एक विशाल गोशाला में बदल गई। अब तो ये हाल है कि घर से निकलते हैं तो घर वाली हमारे स्कूटर पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और माथे पर तिलक लगा कर ऐसे विदा करती है जैसे पहले युद्ध लडऩे बलिदानी सूरमा जाते थे।
Home / Prime / Opinion / गऊ माता हर स्थान पर