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संस्थाओं के बीच टकराव से और गहराएगा पाक में संकट

Published: Jul 28, 2022 07:32:25 pm

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Patrika Desk

पाकिस्तान की स्थिति विस्फोटक हो सकती है। काबुल और इस्लामाबाद दोनों ही, आतंकी राजधानियां बन रही हैं, जो दूसरे देशों के लिए भी खतरा है। पाकिस्तान में संस्थाओं के बीच टकरावों ने दक्षिण एशिया में भू-रणनीतिक खतरों को और भी बदतर किया है।

संस्थाओं के बीच टकराव से और गहराएगा पाक में संकट

संस्थाओं के बीच टकराव से और गहराएगा पाक में संकट


अरुण जोशी
दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार

पाकिस्तान में विभिन्न संस्थाओं के बीच बार-बार टकराव उसकी अपनी ही निर्मित आपदा के भंवर में फंसने से जुड़ा है। जैसा कि पिछले कुछ महीनों में देखा गया। खासतौर पर अगस्त 2021 में अमरीका द्वारा अफगानिस्तान छोडऩे और पाकिस्तान की मदद से काबुल में तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद यह टकराव ज्यादा दिखा है। नवीनतम संघर्ष न्यायपालिका और संघीय सरकार के बीच चल रहा है। दोनों पंजाब के मुख्यमंत्री के चुनाव को लेकर आमने-सामने हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पाकिस्तान मुस्लिम लीग – कायद के परवेज इलाही को मुख्यमंत्री बनाया गया है। इससे पहले पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री हमजा शहबाज थे, जो कि पीएम शाहबाज शरीफ के बेटे हैं। हमजा को सुप्रीम कोर्ट ने पद से हटा दिया है। विडंबना यह है कि पंजाब के नए मुख्यमंत्री परवेज इलाही को राष्ट्रपति ने शपथ दिलाई, न कि राज्यपाल ने, जैसा कि प्रथा है।
राजनीतिक रूप से यह पीएमएल-एन के गढ़ पंजाब में संघीय सरकार में अग्रणी भागीदार के लिए एक बड़ा झटका था। पूरा विवाद पंजाब विधानसभा के डिप्टी स्पीकर दोस्त मजारी के पाकिस्तान मुस्लिम लीग-कायद सदस्यों के वोटों की गिनती नहीं करने के फैसले के कारण हुआ, जो हमजा के प्रतिद्वंद्वी परवेज इलाही के पक्ष में गए थे। इससे राजनीति के सारे समीकरण एकदम बदल गए थे। यह पाकिस्तानी राजनीति में एक विशिष्ट पहेली को दर्शाता है। पीएमएल-एन और गठबंधन सरकार के बाकी सहयोगियों ने मामले की सुनवाई के लिए पूर्ण पीठ का गठन नहीं करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का विरोध किया। यह सिर्फ गतिरोध नहीं है, बल्कि संस्थानों की टक्कर है। टकराव की बड़ी तस्वीर तो और परेशान करने वाली है। सरकार मुख्यमंत्री के चुनाव के मुद्दे पर न्यायपालिका से प्रतिरोध रणनीति को अपना ही रही है, तो दूसरी ओर विपक्षी पीटीआइ के इमरान खान सेना को लपेट रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सेना गठबंधन सरकार का पक्ष ले रही है। इमरान ने अप्रेल में अविश्वास प्रस्ताव मामले में सेना पर उनके खिलाफ काम करने का भी आरोप लगाया था। अब यह संघर्ष बहुआयामी हो गया है। सरकार सेना से लड़ रही है, विपक्ष सेना से झगड़ रहा है और प्रधानमंत्री शहबाज की गठबंधन सरकार के भीतरी लोग, खासकर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सेना को पीछे से ड्राइविंग भूमिका देने का विरोध कर रही है। जैसे-जैसे टकराव बढ़ रहा है, पाकिस्तान के हालात ज्यादा मुश्किल भरे होते जा रहे हैं। दो अरब डॉलर के बेलआउट ऋण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ इस्लामाबाद की बातचीत के नतीजे अभी नहीं मिले हैं। चीनी हुकूमत के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है, क्योंकि बीजिंग राजनीतिक संदर्भों में अर्थव्यवस्था को नियंत्रित कर रहा है। साथ ही बलूचिस्तान, सिंध में भी राजनीतिक स्तर पर बेचैनी का माहौल है। सरकार और विपक्ष भी चुनाव को लेकर संघर्ष में हंै। पीटीआइ जल्द चुनाव चाहती है क्योंकि वह पंजाब उपचुनाव में 20 में से 15 सीटों पर पार्टी को मिली जीत की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है, लेकिन सरकार चुनाव में देरी करना चाहती है। अगस्त 2023 में चुनाव प्रस्तावित है। सरकार चाहती है कि सेना प्रमुख, जो नवंबर में जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह लेंगे, उसकी अपनी पसंद के होंगे।
तहरीक-ए-तालिबान के साथ बातचीत करने से पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पाकिस्तान अति-कट्टरपंथी टीटीपी की मांगों को स्वीकार करके शांति कायम करने के प्रयास कर रहा है। सेना के खिलाफ जनता में व्यापक आक्रोश है। इन हालात के चलते पाकिस्तान की स्थिति विस्फोटक हो सकती है। काबुल और इस्लामाबाद दोनों ही, आतंकी राजधानियां बन रही हैं, जो दूसरे देशों के लिए भी खतरा है। पाकिस्तान में संस्थाओं के बीच टकरावों ने दक्षिण एशिया में भू-रणनीतिक खतरों को और भी बदतर किया है।
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