देश में सूखे का संकट है। ऐसे में तय है कि इसकी ज्यादा मार खेती और किसानों पर होगी। किसानों की हालत पहले से ही खराब है। इस पर सूखे की मार देश में कई समस्याओं का जन्म देगी। चारा, पानी के संकट से लेकर भुखमरी तक फैलेगी। किसानों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित होगी। हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती और किसानी है। सूखे का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर आएगा। तीसरी तिमाही की जीडीपी की विकास दर घटकर 6.6 प्रतिशत रह गई। पहली तिमाही में यह दर 8.8 फीसदी थी। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार विकास दर में गिरावट की वजह डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में कमी के साथ ग्रामीण मांग में सुस्ती रही है। सूखे का प्रभाव ज्यादा बढ़ेगा तो यह स्थिति विकास दर के लिए खतरनाक होगी। इस आशंका से भी मुंह नहीं फेरा जा सकता है कि देश में किसानों की आत्महत्याएं बढ़ेंगी। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पहले से ही किसानों की आत्महत्या के मामलों में शीर्ष पर हैं। सोचना होगा कि आखिर ऐसे हालात से निपटने के लिए क्या स्थायी इंतजाम किए जाएं। आजादी के इतने सालों बाद भी हमारा दो-तिहाई इलाका असिंचित है। हर साल बड़ी आबादी को सूखा और बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ रही है। क्या हमें फिर नदी जोड़ो जैसे अभियान के बारे में नहीं सोचना चाहिए? मध्यप्रदेश में नर्मदा-शिप्रा लिंक से इसकी शुरुआत भी हुई है। लेकिन, देश में ऐसे प्रयासों में गति लाने की जरूरत है। हमें सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के लिए गंभीरता से काम करना होगा, समस्या के साथ समाधान की ओर निरंतर बढऩा होगा। समस्या विकराल हो रही है तो समाधान भी व्यापक स्तर पर खोजा जाना चाहिए। इसके लिए समयबद्ध योजना बनाई जाए। देश की अर्थव्यवस्था तभी मजबूत होगी, जब किसान और किसानी मजबूत होंगे।