scriptसंस्कृति नहीं बेचें | Culture and Market | Patrika News

संस्कृति नहीं बेचें

locationजयपुरPublished: Jun 01, 2020 12:52:50 pm

Submitted by:

Gulab Kothari

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि कोरोना के कारण उद्योगों के कामकाज में गिरावट आई है, वह अस्थाई है।

gulab kothari, Gulab Kothari Article, gulab kothari articles, hindi articles, Opinion, rajasthan patrika article, rajasthanpatrika articles, religion and spirituality, special article, work and life

gulab kothari, Gulab Kothari Article, gulab kothari articles, hindi articles, Opinion, rajasthan patrika article, rajasthanpatrika articles, religion and spirituality, special article, work and life

– गुलाब कोठारी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि कोरोना के कारण उद्योगों के कामकाज में गिरावट आई है, वह अस्थाई है। ऐसी कमजोर इकाइयों को कई विदेशी कम्पनियां खरीदने को लालायित दिखाई दे रही हैं। आज उद्योग-धंधे तुरन्त से शुरू होने की स्थिति में भी नहीं हैं। अत: इनके औने-पौने दामों में बिक जाने की भी संभावना बलवती होती जा रही है। भारत सरकार ऐसे प्रस्तावों पर अपनी स्वीकृति नहीं देगी और स्वीकृति के बिना खरीद-बेच प्रभावी नहीं होगा।

भारत सरकार ने विकास के नाम पर विदेशी निवेश को अनेक प्रकार से आकर्षित किया है। कई क्षेत्रों में, निजी कम्पनियों में अलग-अलग प्रतिशत के निवेश की अनुमति दे डाली। अंग्रेजीदां अधिकारियों में और यहां तक कि नई पीढ़ी के उत्तराधिकारियों में पैसे के बाद कोई सोचने का विषय नहीं रह जाता। वे माटी के साथ अपने व्यक्तित्व को देख नहीं पाते। उनके लिए तो विदेशों में जाकर बस जाना ज्यादा सुखदपूर्ण अनुभव होगा। उनके पूर्वजों के सपनों, त्याग-संघर्ष की कथाओं का भी चित्र लगाने से अधिक महत्व नहीं है। जैसे आजादी के संघर्ष की कथा आज पुस्तकों में बन्द हो गई। क्या यही विकास की परिभाषा है और धन के बदले संस्कृति को द्रौपदी बनाने का ही शिक्षा का लक्ष्य है?

आज देश में इस विदेशी निवेश की छाया में क्या शेष बचा है। सारे ब्राण्ड देश को लूटने में लगे हैं। व्यापारिक परिदृश्य भी विदेशों के पक्ष में है। संचार माध्यम, अमेजॉन, गूगल, एपल आज किस गति से हमारा धन समेट रहे हैं। खुदरा व्यापार चरमरा रहा है। विदेशी दूतावासों ने सिद्ध कर दिया है कि देश का हर स्तर पर बैठा जिम्मेदार बिकाऊ है। प्रतिभाएं बाहर जा रही हैं। रुपए का जिस प्रकार अवमूल्यन हो रहा है और डॉलर की मांग जिस तरह बढ़ रही है, व्यक्ति डॉलर के लिए अपने सारे सिद्धान्त बेचने को तैयार बैठा है। शिक्षा ने धन के आगे सबको घुटने टेकना सिखा दिया। जिस गति से विदेशी निवेश हो रहा है, चाहे सीधा या शेयर-मार्केट में, इस देश का स्वामित्व खोखला हो जाएगा। आने वाली पीढिय़ों के लिए क्या रह पाएगा!

निजी क्षेत्र ही बचा है, जिसमें कुछ दर्द का सम्बन्ध है। सार्वजनिक क्षेत्र तो ‘गरीब की जोरू सबकी भाभी’ की तरह है। जो आता है, अपना हिस्सा लेकर चला जाता है। विज्ञान के विकास की, वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद की पट्टी पढ़ाकर चला जाता है। देने का भाव तक समाप्त हो गया। थोड़ा बहुत जो निजी क्षेत्र में है, उसके संरक्षण के लिए तो सरकार को अलग से नीति बनानी चाहिए।

विदेशी धन का आना अच्छी बात तब तक ही है जब तक उसका देशी कामकाज पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। व्यापार छोटे ना हों तथा भविष्य में विकास के अवसर नई पीढ़ी के लिए हम सुरक्षित रख सकें। सारी-सारी नीतियां आज की आज फल भोगने के लिए बनाई जाती हैं। पीढ़ी का चिन्तन ही नहीं रह गया है। माली बीज तो बोता है, फल आने वाली पीढिय़ां खाती हैं। तभी बाग भी सुरक्षित रह पाता है। आज तो माली खुद जन्म-जन्मों के भूखे हैं। पेट भी नहीं भरता। इसलिए पूर्वजों की कमाई दौलत को भी फूंक जाने में हिचक नहीं है। धन तो वैसे भी आना-जाना है। आज व्यापार में न मूल्य है, न ही सांस्कृतिक पहचान। सब पश्चिम की तरह मुक्त हो जाना चाहते हैं। वेतन गिरवी रखकर ऐशो-आराम से जीना चाहते हैं। पेट के आगे न देश दिखाई देता है, न आत्मिक धरातल।

एक संस्थान में सौ साल का इतिहास उसके व्यापार से नहीं आंक सकते। दो-चार पीढिय़ों के जीवन की यात्रा होती है। अचानक कोई आकर धन-बल से 40 प्रतिशत, 50 प्रतिशत हिस्सा कर लेता है, तब उसके लिए तो संस्थान एक निर्जीव वस्तु ही है। लाभ तो बंटेगा ही, निदेशक मण्डल के नीति निर्धारक बदल जाएंगे। वे हमारे जनप्रतिनिधियों को प्रभावित करके देश की उद्योग नीतियों को प्रभावित करते रहे हैं। इतिहास गवाह है।

वित्त मंत्री की घोषणा स्वागत योग्य है। विदेशी निवेश बड़े उपक्रमों के निर्माण में ऋण के आधार पर किया जा सकता है। मालिकाना हक (शेयर) के जरिए नहीं। कर्ज भी उसी प्रोजेक्ट की आय से चुकाने की व्यवस्था की जाए। निजी क्षेत्र में विदेशी निवेश देश की पहचान, नई पीढिय़ों के लिए अवसर तथा भावनात्मक जुड़ाव के लिए बड़ा खतरा ही साबित होगा।

इसके साथ-साथ शिक्षा का पाश्चात्यीकरण, मैकाले का स्वरूप भी तुरन्त बदल देने की आवश्यकता है। आज लक्ष्मी के आगे नारायण (विष्णु रूप मानव) छोटा पड़ गया। शक्तिहीन विष्णु ही प्रलय का पर्याय है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो