मास्को को रोकने के लिए अमरीका और अन्य नाटो सदस्यों ने गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी दी है। यह उपाय कितना पर्याप्त होगा, स्पष्ट नहीं है। रूस पहले ही इस सदी में यूरोपीय सीमाओं का उल्लंघन कर चुका है (जॉर्जिया, 2008 और यूक्रेन, 2014) और पूर्व सोवियत संघ के ‘रुके हुए संघर्ष’ को बरकरार रखा है।
तो क्या रूस वास्तव में यूक्रेन पर चौतरफा हमले की योजना बना रहा है? हो सकता है कि पुतिन खुद अपने अंतिम उद्देश्य के बारे में नहीं जानते हों। अपने लाभों का विश्लेषण करने के लिए बाइडन को उनकी यह चुनौती सिर्फ यूक्रेन की बजाय व्यापक ‘राजनीतिक टोह’ लेने के मकसद से हो सकती है। तो क्या पश्चिमी जगत संकल्प के अभाव का ही प्रदर्शन करेगा? क्या इसके सदस्य कुछ क्षेत्रों या कुछ मसलों को कम प्राथमिकता का बता कर अलग-थलग होना शुरू कर देंगे?
राजनीति से गायब क्यों है साफ हवा का मुद्दा
इतनी ऊंची बाजी पुतिन के लिए जोखिम भरी है, पर वह इस भय से दांव लगाने को तैयार हो सकते हैं कि रूस की दीर्घकालिक संभावनाएं आज की तुलना में कमजोर हैं। इस रिपोर्ट के बीच कि यदि रूस यूक्रेन पर कब्जा कर लेता है तो बाइडन प्रशासन बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाने के अलावा विद्रोह का समर्थन कर सकता है, क्या वाइट हाउस या यूरोप तब कोई कदम उठाएंगे जबकि यूक्रेन पर कब्जा ‘सिर्फ’ आंशिक होगा?या पश्चिम सामूहिक रूप से यह कहते हुए राहत की सांस लेगा कि ‘और भी ज्यादा बुरा हो सकता था’ और वह कुछ नहीं करेगा? पुतिन इस परिदृश्य पर दांव लगा सकते हैं। तब यूरोप-अमरीका क्या करेंगे? अमरीका और नाटो को नाटो की पूर्वी और रूस की पश्चिमी सीमाओं के बीच ‘ग्रे जोन’ (जहां यह स्पष्ट नहीं हो कि यह स्वीकार्य है या नहीं) देशों के लिए तत्काल रणनीति विकसित करनी चाहिए।
जर्मनी और यूरोपीय संघ पर यह कहने के लिए दृढ़ता से दबाव डाला जाना चाहिए कि रूस से नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन तब तक संचालित नहीं होगी जब तक रूस की मौजूदगी पर आपत्ति जताने वाले देशों से पुतिन सभी सैनिक वापस नहीं बुला लेते। अमरीका और नाटो को चाहिए कि वे कीव को लेकर फिर से विफल न हों।
यदि ऐसा हुआ तो नाटो और उसके संपूर्ण सामूहिक रक्षा क्रियाकलापों को खत्म करने का पुतिन का रोडमैप आकार ले लेगा। उनके पास न केवल रणनीति है, जो पश्चिम के पास नहीं है, बल्कि उन्होंने खुद को कुशल रणनीतिकार भी साबित कर दिया है। वह अभी भी दांव लगा रहे हैं। इसे बदले जाने की जरूरत है।